आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर ने चीड़ के पत्तों से बनाया पैकेजिंग पेपर

कमाई के साथ प्लास्टिक कचरे से मिलेगा छुटकारा

सबसे ज्यादा प्लास्टिक का इस्तेमाल पैकेजिंग के लिए किया जाता है। जिन्हें एक बार इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है, जो प्रकृति के लिए ठीक नहीं है। आईआईटी रुड़की की रिसर्च टीम ने प्लास्टिक पैकेजिंग का विकल्प पहाड़ों में पाए जाने वाले चीड़ के पत्तों से निकाला है। रिसर्च टीम ने महीनों की रिसर्च के बाद चीड़ के पत्तों से पैकेजिंग पेपर बनाने का तरीका ढूंढ निकालना है। ये रिसर्च ‘एक तीर से दो शिकार’ करने जैसा साबित हुआ है। एक तरफ कई शोधकर्ता प्लास्टिक पैकेजिंग का दूसरा विकल्प ढूंढ रहे हैं, वही दूसरी तरफ उत्तराखंड और हिमाचल सरकार चीड़ के पत्तों के कारण जंगल में आग लगने से बचने का कोई उपाय ढूंढ रही थी और ये रिसर्च दोनों बातों के लिए फायदेमंद साबित हुआ है। खास बात तो ये है कि चीड़ से बने पैकेजिंग में फल और सब्जियों को पैक करने पर इनकी लाइफ बढ़ेगी। इसके अलावा पेड़ का इस्तेमाल किए बिना पेपर बनाने का भी एक नया विकल्प मिला है। इसके कमर्शियल प्रोडक्शन होने से पहाड़ में रहने वाले लोगों को रोजगार भी मिलेगा।

कचरे से कुछ बेहतर खोज करने का इरादा था
आपको बता दें उत्तराखंड सहित सभी पहाड़ी इलाकों में चीड़ के पत्ते, यानी पाइन नीडल्स सबसे बड़ा फारेस्ट वेस्ट है। सिर्फ वेस्ट ही नहीं ये पहाड़ी जंगलों के लिए काफी नुकसानदेह भी है। इसके कारण ही जंगल में आग लगने का खतरा बढ़ जाता है। इससे निजात पाने के लिए उत्तराखंड सरकार कई तरह के रिसर्च पहले से करवा रही थी। इसी परेशानी को सुलझाने के लिए आईआईटी रुड़की के डिपार्टमेंट ऑफ पेपर टेक्नोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कीर्तिराज गायकवाड़ और उनके शोधछात्र अविनाश कुमार ने पाइन नीडल्स पर तकरीबन 5 महीने शोध करने के बाद इससे पेपर बनाने का अनोखा तरीका खोजा है। प्रोफेसर कीर्तिराज गायकवाड़ ने बताया, “मैं और मेरी टीम कचरे से कुछ उपयोगी बनाने पर शोध कर रही थी। हमने तय किया था कि हम वेस्ट से पेपर बनाने का तरीका खोजेंगे। संयोग से उत्तराखंड सरकार चीड़ के पत्तों का समाधान ढूंढ रही थी और हमने भी चीड़ के पत्तों पर रिसर्च किया और वो सफल भी रहा।”

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार 2018-19 में भारत में 33 लाख टन सिर्फ पैकेजिंग वेस्ट निकला था। कीर्तिराज गायकवाड़ बताते हैं, हमारे देश में प्लास्टिक कचरे को लगातार अनदेखा किया जा रहा है। प्लास्टिक नेचर के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है और इसका समाधान इको – फ्रेंडली पैकजिंग से ही किया जा सकता है। चीड़ के पेपर बनाने से सबसे ज्यादा पहाड़ी जंगलों में आग लगने का खतरा कम होगा। इसके अलावा पेपर बनाने के लिए पेड़ नहीं काटने होंगे। सबसे खास बात ये है कि चीड़ के पत्तों में सेल्यूलोज कंटेंट 31% होता है और पेपर की मजबूती के लिए सेल्यूलोज कंटेंट ही जिम्मेदार होता है। इस तरह चीड़ के पत्तों से बने पैकेजिंग पेपर बहुत मजबूत होगा और प्लास्टिक पैकेजिंग का बेहतर विकल्प।”
चीड़ के पत्तों से बने पेपर ‘एथिलीन गैस’ सोखने की क्षमता रखते हैं। दरअसल फल – सब्जियां पेड़ से टूटने के बाद एथिलीन गैस छोड़ती हैं, जिससे इनकी राइपनिंग जल्दी होती है। चीड़ के पत्तों से बने पैकेजिंग में अगर ये उपज रखे गए तो इनकी आयु बढ़ेगी। इसके अलावा ये पैकेजिंग प्लास्टिक का बेहतर और प्राकृतिक विकल्प है। अगर इस प्रोसेस पर पेपर का कमर्शियल प्रोडक्शन शुरू हो जाए तो पेड़ काटने से बचेंगे। साथ ही इस पेपर को बनाने में किसी कैमिकल का इस्तेमाल नहीं किया गया यानी ये पूरी तरह से इको फ्रेंडली है।
प्रोफेसर गायकवाड़ कई सालों से ‘वेस्ट से वेल्थ’ बनाने के आइडिया पर काम कर रहे हैं। वो कनाडा से पोस्ट डॉक की रिसर्च पूरी करने के बाद जनवरी 2020 में आईआईटी रुड़की, ज्वॉइन किये। प्रोफेसर गायकवाड़, मुख्य रूप से पैकेजिंग के क्षेत्र में ही काम करते हैं। 2019 में उन्हें इस क्षेत्र में किए गए रिसर्च के कारण साइंस टेक्नोलॉजी मंत्रालय की तरफ से ‘डीएसटी इन्सपायर फैकल्टी ’ चुना गया था। इसके साथ ही साल 2016 में ऑक्सीजन अब्सॉर्बिंग पैकेज डेवलप करने के लिए उन्हें अमेरिकी यूथ साइंटिस्ट पुरस्कार भी मिला था। प्रोफेसर गायकवाड़ कहते हैं, ‘यहां आने के बाद मैंने उत्तराखंड के जंगलों में लगने वाली आग के बारे में बहुत पढ़ा। जिसका सबसे बड़ा कारण पाइन नीडल है। तभी से इसके कमर्शियल यूज पर रिसर्च करने का मन बनाया। मैंने और मेरी टीम ने इस पर कुछ महीने लगातार रिसर्च की और नतीजा आपके सामने हैं।’
प्रोफेसर गायकवाड़ की ये रिसर्च कई फील्ड के लिए फायदेमंद साबित हुई है। इसका इस्तेमाल फल – सब्जियों की पैकेजिंग के अलावा कैरी बैग, डिलीवरी बॉक्स, कॉस्मेटिक प्रोडक्ट की पैकेजिंग, स्ट्रॉ और पेपर शीट सहित कई जगहों पर किया जा सकता है। प्रोफेसर गायकवाड़ बताते हैं कि सस्टेनेबल पैकेजिंग के कई फायदे हैं। ये बहुत मजबूत, टिकाऊ, इको फ्रेंडली और केमिकल फ्री होते हैं। कई कंपनी ऐसे ही पेपर की तलाश में थीं और हमारे शोध के बाद कई बड़ी ई -कॉमर्स कंपनियां और स्टार्टअप हमारे साथ मिल कर काम करना चाहते हैं, लेकिन अभी हमने निर्णय नहीं लिया है। हमारे लिए सबसे पहले देश है तो हम जो भी निर्णय लेंगे, वो हमारे लोगों को फायदा पहुंचने वाला होगा। प्रोफेसर गायकवाड़ कहते हैं कि मैं अपने इस रिसर्च का श्रेय आईआई रुड़की के डायरेक्टर अजीत कुमार चतुर्वेदी को देना चाहता हूं, जिन्होंने मुझे कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया और हर संभव मदद की।
(साभार – दैनिक भास्कर)

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