काश! जली हुई पार्वती का त्वचा प्रत्यारोपण करा पाते

डॉ. वसुंधरा मिश्र

शहर से दूर नई कॉलोनी में बैंक के मैनेजर अवधेश सिंह ने जमीन लेकर घर बनवाया जो हमारे घर से चार कदम बाद ही था। उनके तीन लड़के और तीन ही लडकियां थीं। हमलोग दो बहनें और एक भाई थे। कॉलोनी में अभी घर बन ही रहे थे।कुल मिलाकर रहने वाले चार – पांच ही परिवार थे। बच्चों में हम लोगों में अधिक अंतर न था कोई दो तीन साल छोटे- बड़े। वे दिन बहुत सुंदर थे। कोई चिंता नहीं थी। हमलोग साथ में खेलते – कूदते कब बड़े हो गए, पता नहीं चला।अवधेश सिंह की एक बीच वाली लड़की पार्वती पढ़ने में पीछे ही रह गई लेकिन दूसरी दोनों बहनों में सबसे सुंदर थी। बड़ी बहन अनिता का विवाह हो गया अब पार्वती के विवाह की बात उठने लगी और वह भी एक सुंदर और पैसे वाले पति के सपने देखने लगी। उसकी मां ने उसके लिए दहेज भी अच्छा खासा इकट्ठा कर दिया था। हम लोगों के लिए तो बहुत खुशी की बात थी। उसका पति भी बैंक में ही नौकरी करता था। पार्वती अपने पति पर जान छिड़कती थी। लड़का होने के बाद जब पहली बार अपने मायके आई तो वह कुछ उदास सी लगी। उसके आने के बाद उसके पति ने उसे फोन तक नहीं किया। दो महीने, फिर चार महीने, दिन बीत रहे थे। एक दिन उसका पति आया और अपने बेटे को लेकर चला गया। पार्वती कहती थी कि पति अपनी बड़ी भाभी का ही अधिक सुनता है। वह अपने आपको कोसती रहती। पति उसे पसंद नहीं करता था। बेटा भी उससे दूर हो गया। पार्वती धीरे-धीरे मानसिक अवसाद से ग्रस्त होती चली गई। मेरी बड़ी बहन कविता से हर बात शेयर करती। पार्वती सीधी-सादी और सरल लड़की थी। चालाकी तो जानती ही नहीं थी। अचानक एक दिन नहाने के लिए बाथरूम में गई और पानी की जगह किरासन तेल से नहा लेती है और फिर माचिस की तीली। धू धू कर पार्वती जलने लगी। उसकी मां धुंआ देख चिल्लाने लगी। दोपहर के समय उस समय कोई पुरुष या बड़ा कोई न था।किस्मत से उस काले दिन मेरी बड़ी बहन कविता थी। मेरी मां ने उसे भेजा कि देख कर आओ क्या हो गया?
कविता ने देखा पार्वती काली हो गई है और उसके बाल और छाती कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। केवल आंखों से देख रही थी। किसी तरह आनन- फानन में कविता ने हिम्मत कर उसकी मां को साथ लेकर उसे अस्पताल में भर्ती कराया। डॉक्टरों ने बताया कि बहुत अधिक जल गई है। बचने का चांस नहीं है।
किसी ने इस अनहोनी के बारे में नहीं सोचा था। पुलिस ने उसका बयान लिया। उसका पति भी आया। बचाने की कोशिश की लेकिन पार्वती नहीं बची।
आज से 25-30 साल पहले तो त्वचा प्रत्यारोपण के बारे में जानकारी ही नहीं थी। बहुत जला हो तो फर्स्ट डिग्री बर्न कहलाता है । सेकेंड और थर्ड डिग्री तक जला हो तो अस्पताल ले जाना जरूरी होता है है। घाव अगर 3 इंच से बड़ा हो तो इसे डॉक्टर ही बता सकेगा। समान्य घाव भरने में तीन से छ दिन लगते हैं। जेनोड्राफ्ट यानि सुअर की त्वचा या बायोसिंथेटिक स्किन कृत्रिम त्वचा मंहगी होने के कारण बहुत कम उपयोग में लाते हैं।
जेनोग्राफ्ट सिर्फ मानव ही दान में दे सकता है। ये जानकारी किसे रहती है? हमारे देश में जनसाधारण बहुत सी बातें जानते ही नहीं हैं क्योंकि स्वास्थ्य, शिक्षा और नेत्र दान, अंग दान आदि के विषयों में जागरूकता कम है। महिलाओं को अभी तक अपने अधिकारों का ही ज्ञान नहीं है। भारत के शहर, गांव और कस्बों और कबीलों की संस्कृति और सोच में लाख हाथ का अंतर है।
वैसे तो भारत में त्वचा प्रत्यारोपण के प्रयोग की बात प्राचीन काल में सुश्रुत संहिता में 3000 ईसा पूर्व नाक को ठीक करने की कला राइनोप्लासटिक प्रचलित थी। विश्व युद्ध में अंग- भंग के कारण प्लास्टिक सर्जरी की बहुत सी चुनौतियां थीं।
त्वचा मानव शरीर का सबसे बड़ा अंग है जो भीतर के अंगों का आवरण है। स्पर्श की संवेदना से युक्त है। पार्वती की सुंदरता और संवेदनशीलता की जब याद आती है तो उसका बेवस चेहरा मेरी आंखों के सामने घूमने लगता है। आज तक न जाने कितनी ही पार्वती जली हैं या अधजली घूम रही हैं या फिर चोटें लगी होगीं। मन की वेदना भरे न भरे, तन को तो दूसरे की त्वचा काआवरण दिया जा सकता है, यह भी आज के युग में बहुत बड़ी बात है।
आज त्वचा दान देकर समाज के कल्याण के लिए बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं। व्यक्ति के मरने के छः घंटे बाद भीतरी त्वचा निकाली जा सकती है। 0.3 मिमि मोटाई के साथ जांघ, पैर और पीठ से एपीडर्मी और डर्मी (त्वचा की पर्तें) के कुछ हिस्से को निकाला जाता है। मृत व्यक्ति के चेहरे, छाती या शरीर के ऊपरी हिस्सों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाता है। मृत व्यक्ति के पास डोनर कार्ड न होने के बावजूद परिजन ही त्वचा दान करने का निर्णय लेते हैं। एड्स, एच. आई वी, हेपटाइटिस, टी.बी, स्किन कैंसर आदि से पीड़ित व्यक्ति दान नहीं कर सकते।
आज सुंदरता के लिए प्लास्टिक सर्जरी बहुत होने लगी है। मुबंई के सायन अस्पताल में सन् 2000 में शल्यक्रिया की विभागाध्यक्ष डॉ माधुरी गोरे ने स्किन बैंक खोला जो सच में चुनौतीपूर्ण था।
आज भी कोई अंगदान या शरीर दान देने में उत्सुकता नहीं दिखाता है जबकि किसी को किडनी, लीवर आदि की आवश्यकता पड़ती रहती है जो जीवित व्यक्ति दान देते हैं। त्वचा दान बहुत ही सरलता से दिया जा सकता है क्योंकि यह मरने के बाद दिया जाता है।किसी न किसी दुर्घटना में सत्तर प्रतिशत महिलाएं जलती हैं और एक्सीडेंट में कितने ही लोगों का अंग- भंग हो जाता है। यदि दान करने की इच्छा बने तो रुपया पैसा तो लोग बहुत करते हैं लेकिन अपने पास इतना है जिससे हम किसी की मदद कर सकते हैं। ऊतक दान प्रपत्र फार्म भरना पड़ता है जो टीएच ओए के अनुसार दिल्ली में स्थित राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण की वेबसाइट पर भरना पड़ता है।
काश! मरने के बाद हम अपनी त्वचा दान देकर न जाने कितनी ही पार्वतियों को बचा पाते। उनकी आंखों की चमक लौटा पाते।

(त्वचा प्रत्यारोपण के प्रति जागरूकता हेतु लेख)

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