दस हजार रुपये में शुरू की मोतियों की खेती, आज कमाते हैं लाखों

नयी दिल्ली : महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के रहने वाले संजय गंडाते एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता पारंपरिक खेती करते थे। संजय ने कुछ साल सरकारी नौकरी की तैयारी की। सफलता नहीं मिली तो मोतियों की खेती करना शुरू किया। पिछले 7 साल से वे मोतियों की फार्मिंग (Pearl Farming) और मार्केटिंग का काम कर रहे हैं। भारत के साथ ही इटली, अमेरिका जैसे देशों में भी उनके मोतियों की डिमांड है। अभी इससे वे सालाना 10 लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं। 38 साल के संजय बताते हैं कि मेरा लगाव बचपन से मोतियों से रहा है। गांव के पास ही नदी होने से अक्सर हम अपने दोस्तों के साथ सीपियां चुनने जाते थे। हालांकि कभी इसके बिजनेस के बारे में नहीं सोचा था और कोई खास जानकारी भी नहीं थी। कुछ साल सरकारी टीचर बनने की तैयारी की, लेकिन जब सिलेक्शन नहीं हुआ तो प्लान किया कि कहीं कंपनी में काम करने से अच्छा है खेती बाड़ी की जाए।
नौकरी नहीं मिली तो मोतियों की खेती शुरू की
संजय पारंपरिक खेती नहीं करना चाहते थे। वे कुछ नया करने का प्लान कर रहे थे। तभी उन्हें ख्याल आया कि जो सीपें उनके गांव की नदी में भरपूर मात्रा में उपलब्ध हैं, उनसे वे कुछ तैयार कर सकते हैं क्या? इसके बाद वे पास के कृषि विज्ञान केंद्र पहुंचे। वहां से संजय को पता चला कि इन सीपियों की मदद से मोती तैयार किए जा सकते हैं। हालांकि इसकी प्रोसेस के बारे में उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं मिली।
संजय कहते हैं कि सीपियों से मेरा लगाव था ही इसलिए तय किया कि अब जो भी नफा-नुकसान हो अपने पैशन को ही प्रोफेशन में बदलेंगे। इसके बाद उन्होंने इस संबंध में गांव के कुछ लोगों से और कुछ पत्र-पत्रिकाओं के जरिए जानकारी जुटाई। फिर नदी से वे कुछ सीपी लेकर आए और किराए पर तालाब लेकर काम शुरू कर दिया। तब उन्होंने ज्यादातर संसाधन खुद ही डेवलप किया था। इसलिए उनकी लगात 10 हजार रुपए से भी कम लगी थी।
शुरुआत में घाटा हुआ, लेकिन हार नहीं मानी
संजय चूंकि नए-नए थे। उन्हें इसका कोई खास तौर तरीका पता नहीं था। इसके चलते उन्हें शुरुआत में नुकसान उठाना पड़ा। ज्यादातर सीपियां मर गईं। इसके बाद भी उन्होंने इरादा नहीं बदला। उन्होंने इसकी प्रोसेस को समझने के लिए थोड़ा और वक्त लिया। इंटरनेट के माध्यम से जानकारी जुटाई। कुछ रिसर्च किया। और फिर से मोतियों की खेती शुरू की। इस बार उनका काम चल गया और काफी अच्छी संख्या में मोती तैयार हुए। इसके बाद संजय ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। धीरे-धीरे वे अपने काम का दायरा बढ़ाते गए। आज उन्होंने घर पर ही एक तालाब बना लिया है। जिसमें अभी पांच हजार सीपियां हैं। इनसे वे एक दर्जन से ज्यादा डिजाइन की अलग-अलग वैराइटी की मोतियां तैयार कर रहे हैं।
संजय कहते हैं कि मैं अपने उत्पाद किसी कंपनी के जरिए नहीं बेचता हूं। मिडिलमैन का रोल खत्म कर दिया है। क्योंकि इससे सही कीमत नहीं मिलती और वे लोग औने-पौने दाम पर खरीद लेते हैं। इससे बचने के लिए मैं खुद ही मार्केटिंग करता हूँ। वे कहते हैं कि हमने सोशल मीडिया से मार्केटिंग की शुरुआत की थी। आज भी हम उस प्लेटफॉर्म का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। साथ ही हमने खुद की वेबसाइट भी शुरू की है। जहां से लोग ऑनलाइन शॉपिंग कर सकते हैं। कई लोग फोन के जरिए भी ऑर्डर करते हैं। उसके बाद हम कूरियर के जरिए उन तक मोती भेज देते हैं। वे 1200 रुपए प्रति कैरेट के हिसाब से मोती बेचते हैं।
फार्मिंग के साथ प्रशिक्षण भी देते हैं
संजय ने अपने घर पर ही मोतियों की खेती का एक ट्रेनिंग सेंटर खोल रखा है। जहां वे लोगों को इसकी पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते हैं। उन्होंने इसके लिए अभी 6 हजार रुपए फीस रखी है। लॉकडाउन से पहले महाराष्ट्र के साथ ही बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों से लोग उनके पास ट्रेनिंग के लिए आते थे। उन्होंने एक हजार से ज्यादा लोगों को अब तक ट्रेंड किया है। वे पूरी तरह से व्यावहारिक प्रशिक्षण देते हैं।

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