दिन में भी ख्वाब

डॉ. वसुंधरा मिश्र

जब भी बंद करती हूँ आँखों को
ख्वाब चोरी हो जाते हैं
खुली आँखें सपने देख नहीं पातीं
मस्तिष्क मन पर हावी रहता है
चाँद सितारों सी इस झिलमिलाती दुनिया में
मैं भी भावों की नाव पर सवार
ख्वाबों के विशाल कैनवास पर
बड़े-बड़े लक्ष्यों को भेदती रही
कुछ अंधेरे में चल गए
कुछ तो पहुंँचे ही नहीं
ठंडे बस्ते में पड़े रहे
सब कहते हैं
आदमी का काम है ख्वाब देखना
पूरा करना भगवान का
बैठे – बैठे ख्वाबों का पहाड़ बनाया
पुल भी बनाए
कई टूटे, कई पर पानी फिरे
सोचा कुछ, होता कुछ
कभी शेख चिल्ली की कहानी लगती
कुछ करना है तो ख्वाब चुनना
वहाँ भी पुलाव पकाते रहे
एक ख्वाहिश पे दम टूटा
एक पे मन टूटा
हौसला मत हार मेरे प्यारे
नहीं तो कहर टूट पड़ेगा
चुनौतियों का सामना करना है
बहुत हाथ पैर मारे
कान पकड़ उठक बैठक भी किए
एक पैर पर खड़े भी रहे
ख्वाब कब कोई और चुरा कर ले गया
हम भी अडे़ रहे
हमारा ख्वाब हमारा है
पूरी लगन से एकचित्त हो लगे रहे
कई सालों का अनुभव काम आया
मेहनत और अक्ल दोनों पक्षों का हाथ रहा
ख्वाब में सबसे जुड़े रहे
हम जब सबके साथ मिले
सोच के पंखों से उड़ने लगे
अब दिन में भी ख्वाबों के ख्याल में रहते हैं

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