‘निहायत जरूरी मनुष्य विमर्श है स्त्री विमर्श’

डॉ. विजया सिंह आलोचना के क्षेत्र में अपनी जमीन मजबूत कर रही हैं। पुस्तक समीक्षा में रुचि। फिलहाल रानी बिड़ला गर्ल्स कॉलेज में अध्यापन कर रही हैं। वे शुभ सृजन युवा मार्गदर्शक समूह की मेंटर भी हैं। डॉ. विजया सिंह से साहित्य, साहित्यिक विमर्श समेत विभिन्न विषयों पर बात हुई, प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश – 

स्त्री-विमर्श को आप किस रूप में देखती हैं?
मुझे लगता है कि स्त्री विमर्श निहायत जरूरी मनुष्य विमर्श है जो समानता पर आधारित समाज के निर्माण के लिए वैचारिक और व्यवहारिक स्तर पर क्रियाशील है। इसकी दरकार स्त्री और पुरुष दोनों को है ताकि वे तयशुदा भूमिकाओं के परम्परागत सामान्यीकरण से आगे बढ़ सके। नए विकल्पों को अपना सकें। तभी स्वतंत्रता और वास्तविक समानता का सौंदर्य दिखेगा।

साहित्य में स्त्री रचनाकारों की स्थिति पर आप क्या कहेंगी?
साहित्य के क्षेत्र में स्त्री रचनाकारों की बढ़ती संख्या ने स्त्री की पक्षधरता मजबूत की है। उन्होंने स्त्री
के बेहद निजी किन्तु राजनीतिक अनुभवों को व्यक्त कर साहित्य को निश्चित रूप से संपन्न किया है। स्त्री रचनाकारों ने न केवल स्त्री बल्कि समस्त मानवता के हित में अपनी लेखनी चलायी है। स्त्री रचनाकारों ने उन सभी अनुभवों से समाज को परिचित कराया है जो अब तक प्रतिबंधित थे।

आपके समय में जो वातावरण स्त्रियों को लेकर था और आज जो परिवेश है, उसे लेकर आप क्या सोचती हैं?

‌समय के साथ निश्चित रूप से स्त्रियां आगे बढ़ रही हैं। शिक्षा और आधुनिक जनसंचार माध्यमों ने उसकी गतिशीलता और जागरूकता बढ़ाई है। आज के परिवेश में उनके आगे चुनौतियाँ पहले से भी अधिक हैं। सबसे बड़ी समस्या उपभोक्तावाद से जुड़ी है। उसे सजग होकर वस्तुवादी नजरिये का विरोध करना होगा जो उसे मात्र देह में बदल देना चाहती है। आज की स्त्री जानती है कि उसकी अस्मिता का सम्बन्ध उसकी भूमिका से है, चेहरे और रूप की प्रशंसा उसे अंततः छोटा बनाती है। परंपरागत पितृसत्ताक व्यवहारों और तयशुदा भूमिकाओं से इतर उसे नए सम्बन्ध और व्यवहार तलाशने होगें। ये कुछ भी आसान नहीं होगा लेकिन इससे निजी और सामाजिक विकास के नए रास्ते खुलेंगे।

कविता आज एक आसान अवसर बन गयी है मशहूर होने का, और इससे गुणवत्ता प्रभावित हो रही है , क्या आप यह मानती हैं?
सभी ने नहीं तो भी अधिकांश रचनाकारों ने अपने रचनात्मक जीवन का आरंभ कविता लेखन से किया। यह भी कहना उचित है कि कविता लिखने का चलन बढ़ा है। इसी क्रम में ऐसा लिखा जा रहा है जिसका उद्देश्य हो सकता है कि रचना करने के अलावा कुछ और हो। फिर भी कविता लेखन को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। यह केवल अभिव्यक्ति ही नहीं संवाद और संप्रेषण का भी माध्यम है। इससे नयी प्रतिभाओं को सामने आने का अवसर मिलता है।

क्या गद्य साहित्य उपेक्षित है, विशेष रूप से आलोचना?
बिलकुल नहीं। हाँ, रफ़्तार कम हो सकती है किंतु आलोचना उपेक्षित नहीं है।

पुस्तक समीक्षा और अनुवाद को प्रोत्साहित करने के लिए क्या किया जा सकता है?
‌ इन दोनों को गंभीरता से लिया जाना जरूरी हैं। इन दोनों का अलग-अलग महत्व है। एक ओर अच्छी, प्रभावी पुस्तक समीक्षा पढ़ने के लिए प्रेरित करती है वहीं दूसरी ओर अनुवाद भाषा और संस्कृति की फिसलनों से होते हुए विराट पाठक वर्ग को सम्मोहित किये रहते है। यानी दोनों जरूरी हैं। नयी भाषा नीति अनुवाद के महत्व को समझते हुए एक अलग और विशेष साहित्य के रूप में इसके विकास के कई प्रावधान करती है। आगे इसकी जमीनी हकीकत सामने आएगी। पुस्तक समीक्षा भी गंभीरता के साथ की जानी चाहिए ताकी पुस्तकों का सजग पाठक वर्ग तैयार हो सके।

आप युवाओं को क्या सन्देश देना चाहेंगी?
किताबों से दोस्ती करें और खुद से प्यार करें।

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