वर्ष 2021-22 में सामाजिक क्षेत्र पर व्यय 71.61 लाख करोड़ रुपये रहाः समीक्षा

नयी दिल्ली । केंद्र एवं राज्य सरकारों का सामाजिक सेवा क्षेत्र पर सम्मिलित व्यय वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 71.61 लाख करोड़ रुपये हो गया। यह वर्ष 2020-21 में 65.24 लाख करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से 9.8 प्रतिशत अधिक है।
गत सोमवार को संसद में पेश वर्ष 2021-22 की आर्थिक समीक्षा के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में सामाजिक सेवाओं पर सरकारों का व्यय बढ़ा है। सामाजिक सेवाओं के तहत शिक्षा, खेल, कला एवं संस्कृति, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा, परिवार कल्याण, जलापूर्ति एवं स्वच्छता, आवास, शहरी विकास, श्रम एवं श्रमिक कल्याण, सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण, पोषण, अनुसूचित जाति एवं जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों का कल्याण और प्राकृतिक आपदाओं में दी जाने वाली राहत आती है।
आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, वर्ष 2021-22 में केंद्र एवं राज्य सरकारों का सामाजिक सेवाओं पर व्यय 71.61 लाख करोड़ रुपये रहने का बजट अनुमान है। इसमें शिक्षा क्षेत्र पर सर्वाधिक 6.97 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए जबकि स्वास्थ्य पर 4.72 लाख करोड़ रुपये खर्च हुए।
वहीं वित्त वर्ष 2020-21 में सामाजिक सेवा क्षेत्र पर सरकारी व्यय 65.24 लाख करोड़ रुपये रहा था। इसमें शिक्षा क्षेत्र पर 6.21 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए थे जबकि स्वास्थ्य क्षेत्र पर 3.50 लाख करोड़ रुपये व्यय किए गए थे।
आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, ‘‘महामारी ने कमोबेश सभी सामाजिक सेवाओं को प्रभावित किया है, फिर भी स्वास्थ्य क्षेत्र पर इसकी सर्वाधिक मार पड़ी। स्वास्थ्य क्षेत्र पर व्यय महामारी से पहले के वर्ष 2019-20 में 2.73 लाख करोड़ रुपये रहा था, लेकिन वर्ष 2021-22 में इसके 4.72 लाख करोड़ रुपये रहने का बजट अनुमान है। इस तरह इस मद में खर्च करीब 73 फीसदी तक बढ़ गया है। वहीं शिक्षा क्षेत्र पर व्यय इसी अवधि में करीब 20 प्रतिशत बढ़ा है।’’
समीक्षा के मुताबिक, महामारी के दौरान बार-बार लगाए गए लॉकडाउन एवं बंदिशों का शिक्षा क्षेत्र पर पड़े वास्तविक प्रभाव का आकलन कर पाना मुश्किल है क्योंकि इस बारे में समग्र आधिकारिक आंकड़े 2019-20 के ही उपलब्ध हैं। इससे यह नहीं पता चल पाता है कि कोविड-19 की पाबंदियों ने शिक्षा से जुड़े रुझानों पर किस तरह असर डाला है।
महामारी की पहली लहर में बच्चों एवं युवाओं को संक्रमण से बचाने के लिए सभी स्कूलों एवं कॉलेज को बंद कर दिया गया था। बाद में बंदिशें थोड़ी कम हो गईं लेकिन अब भी शिक्षा की निरंतरता एक चुनौती बनी हुई है।

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