सुख दु:ख का साथ

-श्वेता गुप्ता

ग़म कि सीहाई अब धुंधली हुई जाई रे,
खुशियों की बारिशों ने अब ली अंगड़ाई रे।

सुख-दुःख का खेल उसने यह कैसा रचाया रे,
सुख के पीछे-पीछे भाग देख, दुःख पीछे आया रे।

उदासी की चादर अब छोटी हुईं जाई रे,
खुशियों की बादल अब फैली चलीं जाई रे।

कर हवाले, उसके सहारे, फिर देख, वह कैसा रास रचाता रे,
हर सवाल का जवाब, खड़ा वो, तुझे कैसे समझाता रे।

ग़म कि सीहाई अब धुंधली हुई जाई रे,
खुशियों की बारिशों ने अब ली अंगड़ाई रे।

शुभजिता

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