सूख जाएगा माउंट एवरेस्ट! 2000 साल में चोटी पर जमी बर्फ सिर्फ 25 साल में पिघल गयी

वॉशिंगटन : दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट एवरेस्ट पर स्थित सबसे ऊंचे ग्लेशियर पर जमी दशकों पुरानी बर्फ हर साल तेजी से पिघल रही है। इसके लिए मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार हैं। एक नए अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है। अध्ययन के नतीजों को एक चेतावनी की तरह लिया जा सकता है कि पृथ्वी के कुछ उच्चतम बिंदुओं पर ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के चलते जलवायु परिवर्तन के भयावह परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों में बार-बार हिमस्खलन और जल स्रोतों का सूखना जैसी आपदाएं शामिल हैं। इन पर पर्वत श्रृंखलाओं में करीब 1.6 अरब लोग पीने, सिंचाई और जल विद्युत के लिए निर्भर हैं। दक्षिण कर्नल ग्लेशियर पर बर्फ को जमने में करीब 2000 साल लगे और सिर्फ 25 साल में यह पिघल गई। इसका मतलब है कि यह बनने की तुलना में लगभग 80 गुना तेजी से पिघल रहा है।
वैज्ञानिकों ने उच्चतम ग्लेशियरों को किया नजरअंदाज
शोधकर्ताओं ने नेचर पोर्टफोलियो जर्नल क्लाइमेट एंड एटमॉस्फेरिक साइंस में प्रकाशित अध्ययन में तर्क दिया है कि जबकि ग्लेशियरों के पिघलने का व्यापक रूप से अध्ययन किया गया है, वैज्ञानिकों ने धरती के उच्चतम बिंदुओं पर स्थित ग्लेशियरों पर बहुत कम वैज्ञानिक ध्यान दिया गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ मेन के छह वैज्ञानिकों और पर्वतारोहियों सहित एक टीम ने 2019 में ग्लेशियर का दौरा किया था और 10 मीटर लंबे (लगभग 32 फीट) बर्फ के टुकड़े से नमूने एकत्र किए थे।
पृथ्वी के दूरस्थ ग्लेशियरों तक पहुंचा जलवायु परिवर्तन
उन्होंने डेटा इकट्ठा करने के लिए दुनिया के दो सबसे ऊंचे स्वचालित मौसम स्टेशन भी स्थापित किए जिनका मकसद इस सवाल का जवाब खोजना था कि क्या मानव से जुड़े जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी के सबसे दूर स्थित ग्लेशियर प्रभावित हैं? इस खोज का नेतृत्व करने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ मेन में जलवायु परिवर्तन संस्थान के निदेशक पॉल मेवेस्की ने कहा, ‘इस सवाल का जवाब हां है और खासकर 1990 के दशक के आखिर से।’
25 साल में पिघल गई 180 फीट बर्फ
शोधकर्ताओं ने कहा कि नतीजे न सिर्फ इस बात की पुष्टि करते हैं कि मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन पृथ्वी के उच्चतम बिंदुओं पर पहुंच गया है बल्कि यह उस महत्वपूर्ण संतुलन को भी बाधित कर रहा है जो बर्फ से ढकी सतह प्रदान करती है। शोध से पता चला है कि बर्फ का पिघलना 1950 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ होगा लेकिन 1990 के दशक के बाद से बर्फ का नुकसान सबसे तेजी से हो रहा है। एक बार जब ग्लेशियर की बर्फ उजागर हो गई तो सिर्फ 25 साल में यह लगभग 55 मीटर (180 फीट) तक पिघल गयी।
(साभार – नवभारत टाइम्स)

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