गोलगप्पा कभी फुलकी, कभी पानीपूरी, द्रौपदी की रसोई से मगध तक, मनभावन फुचका

भारत में स्ट्रीट फूड की गजब विविधता पाई जाती है. यहां पानी पूरी से लेकर आलू टिक्की, तरह-तरह की पकौड़ियां, मोमोज, दही भल्ले, धनिया आलू आदि खूब लोकप्रिय हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में गोलगप्पों के लिए अलग तरह का पानी और फिलिंग को पसंद किया जाता है। कोई गोलगप्पों में आलू भरता है, कोई चने तो कोई मटर, हर चीज का स्वाद बिल्कुल अलग होता है। एक-दो प्लेट पानी पूरी खा लेने के बाद वो आखिरी वाली सूखी पापड़ी का स्वाद भी मुंह में पानी ले आता है। पानी पूरी का शाब्दिक अर्थ है “पानी की रोटी” इसके मूल के बारे में बहुत कम जानकारी है पानी पूरी शब्द 1955 में , और गोल्गप्पा शब्द को 1951 में दर्ज किया गया । पौराणिक कहानियों में गोलगप्पे का इतिहास महाभारत से समय से दिखाया गया है। पहली बार द्रौपदी ने पांडवों के लिए गोलगप्पे बनाए थे. द्रौपदी जब विवाह के बाद ससुराल पहुँची तो कुंती ने उन्हें परखने के लिए एक काम सौंपा था। चूंकि पांडव उस वक्त वनवास पर थे और मांगकर खाते थे तो घर में ज्यादा भोजन नहीं होता था। ऐसे में कुंती यह परखना चाहती थीं कि उनकी बहू द्रौपदी अपने घर-बार को संभालने में कितनी कुशल हैं इसलिए कुंती ने द्रौपदी को थोड़ा आटा और कुछ बची हुई सब्जियां दी थीं और कहा था कि इसी में से सभी पांडवों का पेट भरना है। तब द्रौपदी ने कुछ ऐसा बनाने का सोचा जिससे सभी पांडवों का पेट भर जाए. द्रौपदी को गोलगप्पे बनाने का उपाय सूझा। गोलगप्पे से सभी पांडवों का पेट आसानी से भर गया इसे देखकर मां कुंती बहुत खुश हुईं थी। तब कुंती ने द्रौपदी को अमरता का वरदान दिया था ।

पाटलिपुत्र से है संबंध
प्राचीन भारत के 16 महाजनपद में से एक था मगध साम्राज्य, जिसकी राजधानी थी पाटलीपुत्र। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पानीपुरी सबसे पहले मगध काल में बनाई गई थी। ये उसी दौर में बनाया गया था, जब कतरनी चावल से चूड़ा, तिलवा, लिट्टी चोखा आदि बनाए जा रहे थे। जिस बुद्धिमान खानसामे ने पानीपुरी बनाई उसका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया है।
ग्रीक इतिहासकार मेगस्थनीज और चीनी बौद्ध यात्री फाहियान एवं ह्वेनसांग ने लिखा है कि पानी पूरी सबसे पहले गंगा के किनारे बसे मगध साम्राज्य में बनाई गयी थी। ऐतिहासिक कहानियों में गोलगप्पे का संबंध मगध काल से बताया है। कहते हैं कि ‘फुल्की’ पहली बार मगध में ही बने थे। फुल्की गोलगप्पे का दूसरा नाम है। हालांकि इन्हें पहली बार किसने बनाया था इसके बारे में इतिहास में कोई जानकारी नहीं है लेकिन ये हो सकता है क्योंकि गोलगप्पे में पड़ने वाली मिर्च और आलू दोनों मगध काल यानि 300 से 400 साल पहले भारत आए थे। बिहार में गोलगप्पे को फुलकी कहा जाता है जिससे लगता है कि मगध काल में भी आलू का चटपटा मसाला बनाकर गोलगप्पे खाए जाते थे।

गोलगप्पे और उसका पानी घर में बनाया जाए तो वजन कम करने में मदद मिल सकती है। एक गोलगप्पे में सिर्फ 36 कैलोरी होती है। 6 गोलगप्पों की 1 प्लेट में 216 कैलोरी होती है। दरअसल, गोलगप्पे का तीखा पानी पीने के बाद घंटों तक भूख नहीं लगती है। ऐसे में वजन घटाने में काफी मदद मिल सकती है लेकिन इसके लिए आपको गोलगप्पे और उसका पानी, दोनों ही घर पर तैयार करने होंगे। घर वाले गोलगप्पे कम तेल में बनाए जाते हैं इसलिए वो नुकसान नहीं करते हैंय़ वजन कम करना है तो सूजी के बजाय आटे के गोलगप्पे बनाएं।
(स्त्रोत साभार – जी न्यूज, एबीपी न्यूज, नवभारत टाइम्स)

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