जापान के मंदिर से मिले कलश में थीं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियां?

क्‍यों नहीं हुआ डीएनए टेस्‍ट, परिजन उठा रहे सवाल
कोलकाता: जापान की राजधानी टोक्यो स्थित रेनकोजी मंदिर के मुख्य पुजारी द्वारा जापानी भाषा में लिखे गए एक पत्र के अनुवाद से पता चला है कि मंदिर ने भारतीय अधिकारियों को उन अस्थियों की डीएनए जांच की अनुमति दी थी जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बताई जाती हैं। पत्र का नया अनुवाद उस दावे को खारिज करता है कि मंदिर इस मामले में मौन रहा, जिससे न्यायमूर्ति एमके मुखर्जी आयोग की जांच के बाद उसके इस निष्कर्ष पर संदेह पैदा कर दिया है कि ये अस्थियां नेताजी की नहीं थीं।
भारत सरकार को 2005 में टोक्यो के मुख्य पुजारी के जापानी भाषा में लिखे गए पत्र के नए अनुवाद से खुलासा हुआ है कि न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग को इन अस्थियों की डीएनए जांच की अनुमति मिली थी। पत्र लिखने वाले रेनकोजी मंदिर के मुख्य पुजारी पर अस्थि कलश के संरक्षण की जिम्मेदारी है। ऐसा माना जाता है कि इस कलश में बोस की अस्थियां हैं।
आयोग के अनुसार अस्थियां नेताजी की नहीं थीं
कोई कारण बताए बिना पत्र के इस हिस्से का अनुवाद नहीं किया गया था और बोस के लापता होने पर न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट के साथ साक्ष्य के तौर पर एक अंग्रेजी संस्करण संलग्न किया गया था, जिसमें लिखा था, ‘मंदिर अधिकारियों के मौन रहने के कारण… आयोग (डीएनए जांच के मुद्दे पर) आगे नहीं बढ़ सका।’ आयोग ने बाद में इसका उपयोग यह निष्कर्ष निकालने के लिए किया कि ये अस्थियां नेताजी की नहीं थीं, जिससे इन अटकलों को बल मिलता है कि वह विमान हादसे में बच गए थे और संन्यासी बन गए या रूस की किसी जेल में उन्हें कैदी के रूप में रखा गया। महान स्वतंत्रता सेनानी के भाई शरत बोस की पोती माधुरी बोस ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट में विसंगतियां पाए जाने और न्यायमूर्ति मुखर्जी की जांच रिपोर्ट के आधिकारिक अंग्रेजी संस्करण से जापानी भाषा में लिखे पत्र के कई पैराग्राफ का मिलान नहीं होने के बाद हमने हाल में इसका फिर से इसका नया अनुवाद शुरू किया।’
जापानी भाषा के एक विशेषज्ञ के नये अनुवाद से पता चलता है कि पत्र के छोड़े गए अंश में 427 वर्ष पुराने बौद्ध मंदिर ‘रेनकोजी मंदिर’ के मुख्य पुजारी निचिको मोचिजुकी ने लिखा था, ‘मैं जांच में अपना सहयोग देने के लिए सहमत हूँ। पिछले साल (2004) में (जापान में नियुक्त भारतीय राजदूत) (एम.एल.) त्रिपाठी के साथ बैठक में इसी पर सहमति बनी थी।’ पीटीआई-भाषा द्वारा इस अनुवाद को स्वतंत्र रूप से प्रमाणित नहीं किया जा सका है।

डीएनए जांच क्यों नहीं की गई?
राष्ट्रमंडल सचिवालय और संयुक्त राष्ट्र में काम कर चुकीं माधुरी ने बोस बंधुओं पर किताबें भी लिखी हैं। उन्होंने कहा, ‘हमें समझ नहीं आ रहा कि इस अनुमति को पहले सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया या डीएनए जांच क्यों नहीं की गई।’ मुखर्जी आयोग ने 2006 में संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला था कि आजाद हिंद फौज में नेताजी के करीबी विश्वासपात्रों सहित चश्मदीदों के बयान के उलट नेताजी की मृत्यु विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी और यह भी कहा गया था कि जापान के मंदिर में मिली अस्थियां नेताजी की नहीं हैं। आजाद हिंद फौज के कर्नल हबीब-उर-रहमान सहित चश्मदीदों ने कहा था कि नेताजी की मृत्यु अगस्त 1945 में ताइपे में एक विमान दुर्घटना में हुई थी।

ऐसा अवधारणाएं रही हैं कि दुर्घटना में वह बच गए थे या वह उस विमान में सवार थे ही नहीं, जो दुर्घटनाग्रस्त हुआ था। यह भी एक परिकल्पना है कि वह एक साधु बन गए या रूस के किसी जेल में बंद थे। इस रिपोर्ट के परिणामस्वरूप इन्हीं अवधारणाओं को बल मिला। हाल में एक फिल्म भी आई थी, जिसमें यह दिखाया गया था कि संभवत: वह गुमनामी बाबा थे, जबकि कई समाचारों से संकेत मिलता है कि हो सकता है कि उन्हें साइबेरिया में रूसी नेता जोसेफ स्टालिन ने कैद करवाया हो।
‘जापान का मंदिर डीएनए जांच चाहता था’
माधुरी बोस ने कहा, ‘हमें मुखर्जी आयोग पर बहुत विश्वास था और हमें आशा की एक किरण नजर आई थी कि नेताजी के लापता होने के बारे में सच्चाई अंतिम रिपोर्ट के साथ सामने आएगी… हालांकि रिपोर्ट में कई स्पष्ट विसंगतियों ने हमें इसपर फिर से गौर करन के लिए मजबूर किया।’ उन्होंने कहा क‍ि हमने पाया कि जापान का मंदिर डीएनए जांच चाहता था और हमने (भारत ने) कभी (जाँच) नहीं की। मुख्य पुजारी के पत्र के जिस हिस्से को आधिकारिक अनुवाद से हटा दिया गया था, उसमें यह भी लिखा है कि जापानियों के युद्ध हारने के बाद अमेरिका-ब्रिटेन के कब्जे के दौरान परिस्थितियां गंभीर थीं, फिर भी मंदिर के अधिकारियों ने नेताजी की अस्थियों को संरक्षित करने का जोखिम भरा कार्य किया, जिसकी एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल और जापान के विदेश मंत्री ने मांग की थी। इस प्रतिनिधिमंडल में ”कर्नल रमन (हबीब-उर-रहमान), श्री (एसए) अय्यर और श्रीमती (सती) सहाय’ शामिल थे।
पत्र में आगे कहा गया है क‍ि इसलिए, मेरा दृढ़ विश्वास है कि ये वही अवशेष हैं। निस्संदेह सुभाष चंद्र बोस की अस्थियां। मोचिजुकी ने यह भी कहा कि उनके दिवंगत पिता, तत्कालीन मुख्य पुजारी (अस्थि कलश को) अपने पास लेकर सोते थे ताकि कोई उससे छेड़छाड़ नहीं कर सके या उसे नुकसान नहीं पहुंचा सके।
नेताजी की बेटी अनिता फाफ, एक प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी और नेताजी के बड़े भाई के बेटे द्वारका नाथ बोस एवं उनके एक अन्य भतीजे अर्धेंदु बोस सहित बोस परिवार के तीन सदस्यों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अक्टूबर 2016 और दिसंबर 2019 में पत्र लिखकर उन्हें रेनकोजी से प्राप्त अस्थियों की डीएनए जांच कराने का आदेश देने का अनुरोध किया था। हालांकि, माधुरी बोस ने कहा कि परिवार को इसकी डीएनए जांच के लिए” अब तक कोई जवाब नहीं मिला, जिससे कि नेताजी के गुम होने या इन अस्थियों का रहस्य सुलझ सके।
(साभार – नवभारत टाइम्स)

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