प्रेम कुमार को प्रदान की गई डॉक्टरेट उपाधि

कोलकाता ।  वैश्विक स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा ने अपने रजत जयंती अवसर पर 08 जनवरी 2022 को पंचम दीक्षांत महोत्सव का आयोजन किया। यह कार्यक्रम कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए तथा भारत सरकार के निर्देशानुसार मुख्यतः ऑनलाइन आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने प्रेम कुमार को डॉक्टरेट उपाधि प्रदान की।

            प्रेम कुमार मूलतः उत्तर प्रदेश के कासगंज जनपद के छोटे से गाँव ‘नमेंनी’ के निवासी हैं। उनका परिवार एक निम्नमध्यवर्गीय कृषक परिवार रहा है। जो कि नब्बे के दशक में कृषि के लिए पर्याप्त जमीन के अभाव तथा जीविका की तलाश में दिल्ली शहर की ओर पलायन कर गया और वहीं बस गया। दिल्ली की आजादपुर मंडी में उनके पिता ने पल्लेदारी, दिहाड़ी मजदूरी की, तथा विभिन्न कॉलोनियों की गलियों में सब्जियों की फेरी लगाकर अपने परिवार का पालन-पोषण किया। प्रारम्भ से ही परिवार की  स्थिति अत्यंत दयनीय थी, इसलिए प्रेम कुमार ने कक्षा दस से ही पार्ट टाइम काम करना शुरू कर दिया था, जो कि दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे बड़े शैक्षणिक संस्थान से स्नातकोत्तर होने तक जारी रहा। जीवन के तमाम संघर्षों का सामना करते हुए भी शिक्षा के प्रति उनकी लगन उत्तरोत्तर बढ़ती ही रही। यही कारण रहा कि स्नातकोत्तर करते समय ही उन्होंने यूजीसी नेट की परीक्षा दी और जेआरएफ सहित उतीर्ण हुए। दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने के उपरांत आगे की शिक्षा प्राप्त करने की चाह में प्रेम कुमार महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यलय, वर्धा, महाराष्ट्र चले गए। यहाँ से उन्होंने पहले प्रो. कृष्ण कुमार सिंह के निर्देशन में ‘प्रेमचन्द की कहानियों में हाशिये का समाज’ विषय पर एम. फिल. हिंदी की उपाधि, तथा अब डॉ. अशोक नाथ त्रिपाठी के निर्देशन में ‘नई कविता के कवि आलोचकों का तुलनात्मक अध्ययन’ विषय पर पी-एच. डी. तुलनात्मक साहित्य की उपाधि प्राप्त की है। बताते चलें कि प्रेम कुमार एक मेधावी छात्र रहे हैं जिन्होंने जाति व्यवस्था में अत्यंत निम्न व आर्थिक रूप से अत्यंत पिछड़े होने को कभ-भी अपनी कमजोरी न बनने दिया। उन्होंने साहित्यिक और सामाजिक विषयों पर दर्जनों लेख लिखे, प्रपत्र वाचन किए जो कि कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी कविताओं में व्यक्त स्वर समतामूलक समाजव्यवस्था का पक्षधर है।

            प्रेम कुमार कहते हैं कि, मेरे माता-पिता ने स्वयं अभावपूर्ण जीवन जीते हुए भी शिक्षा के महत्व को जाना-समझा और मुझे पढ़ाया। एक सहायक प्रोफेसर के रूप में किसी संस्थान में सरकारी नौकरी पाकर स्वर्गीय पिता के सपने को साकार करना ही वे अपने जीवन का लक्ष्य मानते हैं। यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। वे ज्योतिबाराव फुले, सावित्रीबाई फुले, महात्मा गांधी, छत्रपति साहू जी, बोधिसत्व बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर, स्वामी विवेकानन्द, भगत सिंह आदि महापुरुषों से अत्यंत प्रभावित हैं। इस प्रभाव को उनके लेखन में स्पष्टतः देखा जा सकता है। अपने गुरुजनों डॉ. अशोक नाथ त्रिपाठी, प्रो. अवधेश कुमार, प्रो. कृष्ण कुमार सिंह, प्रो. प्रीति सागर, डॉ. रामानुज अस्थाना, डॉ. उमेश कुमार सिंह, डॉ. बीर पाल सिंह यादव, डॉ. सुनील कुमार, डॉ. रूपेश कुमार सिंह का वे विशेष आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने उनके भीतर वैचारिक समझ विकसित की। प्रेम कुमार से डॉ. प्रेम कुमार बनने पर रजनीश कुमार ‘अम्बेडकर’, गिरहे दिलीप, लोकेश कुमार, मुकेश कुमार, अवतार सिंह, बंसराज आदि मित्रों ने सोशल मीडिया के माध्यम से बधाइयाँ दीं।

इस अवसर पर प्रो. कमलेश दत्त त्रिपाठी (कुलाधिपति, म. गां. अं. हिं. वि. वर्धा), डॉ. विनय सहस्रबुदधे (मुख्य अतिथि), डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ (विशिष्ट अतिथि, पूर्व शिक्षा मंत्री भारत सरकार), प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल (कुलपति, म. गां. अं. हिं. वि. वर्धा), प्रो. अवधेश कुमार (डीन, साहित्य विद्यापीठ, म. गां. अं. हिं. वि. वर्धा), श्री कादर नवाज़ खान (कुलसचिव, म. गां. अं. हिं. वि. वर्धा) तथा अन्य विद्वज्जन उपस्थित रहे।

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