बारूद पर बैठी दुनिया को एक शांतिदूत चाहिए

दुनिया इस समय ऐसे मोड़ पर खड़ी हैं जहाँ सब कुछ अनिश्चित लग रहा है। दुनिया बारूद के ढेर पर बैठी है, लोग मर रहे हैं, शिक्षा प्राप्त कर कुछ बनने के इरादे से परदेस जाने वाले युवाओं के सामने जीवन को बचा लेना ही चुनौती बन गया है। रूस और यूक्रेन की जंग का शिकार बन रहे हैं बच्चे, युवा, आम नागरिक। कुछ समय तक यूक्रेन और यूक्रेन की जनता पीड़ित लग रहे थे और वह पीड़ित हैं मगर गौर से देखने पर लग रहा है कि यूक्रेन कुछ और नहीं, अमेरिका के हाथ का खिलौना है, मोहरा है। असल युद्ध तो चिर प्रतिद्वंद्वी रूस और अमेरिका का ही है। यूक्रेन को बचाने की आड़ में पश्चिमी देश एक बार फिर से एक हो रहे हैं और भारत तटस्थता की स्थिति में है। यह वर्चस्व और साम्राज्यवाद के साथ रंगभेद की लड़ाई भी बनती जा रही है। भारतीय विद्यार्थियों को प्रताड़ित करना और यूक्रेन का नर्म लहजे में धमकी देना कि 20 हजार भारतीय छात्र यूक्रेन में हैं…इसका प्रमाण है। भारत की तटस्थता से नाराज यूक्रेन की पुलिस अब भारतीयों को निशाना बना रही है।
ऐसा लग रहा है कि रूस को रोकने और अकेला करने के लिए अब सारे देश एक होने लगे हैं और युद्ध का सीधा लाभ अमेरिका को होगा। रूबल कमजोर हो रहा है, डॉलर मजबूत हो रहा है। अमेरिका प्राकृतिक गैस का निर्यात बढ़ाने की तैयारी में है जबकि रूस का निर्यात घट रहा है। रूस की ताकत कम करने के लिए यह युद्ध अमेरिका की एक चाल भी हो सकता है। अगर उसे वास्तव में शांति की जरूरत थी तो वह तालिबान के हाथों में अफगानिस्तान की जनता को कभी न छोड़ता। एशियाई लोगों के प्रति यूरोप में रंगभेद का भाव अभी तक है मगर इन दो देशों की लड़ाई में पिस रहा है आम नागरिक और भारतीय। यह समय कदम फूँक – फूँक कर रखने का है मगर फिलहाल तो अपने बच्चों को सकुशल घर लाने का है।

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