भारत की धरोहर…. महाभारतकालीन इन्द्रप्रस्थ यानि आज का पुराना किला

कुछ जगहें ऐसी होती हैं जिनमें रहस्य भी छुपे हैं और संवेदना भी..मगर लोग महसूस कर पाते होंगे…यह कहना कठिन है। एक वक्त के बाद इमारतें खंडहर में तब्दील हो जाती हैं और वह जगह लोगों के मनोरंजन और वक्त बिताने की जगह बन जाती है। अफसोस है कि दिल्ली का प्राचीन ऐतिहासिक और पुराना किला भी ऐसी जगह बनता जा रहा है। कुछ लोग होते हैं जिनको किले के विशाल परिसर में दबे इतिहास के प्रति मोह और कौतुहल होता है खासकर महाभारत से इस किले का संबंध होना इस मोह को और बढ़ाता है मगर सबके आने का मकसद एक जैसा नहीं होता।

लोग यहाँ वक्त बिताने आते हैं और युवा जोड़ों के लिए तो यह भीड़ से दूर एक शरणस्थली है…आप हर दो कदम पर किले के विशाल परिसर में प्रेमिल मुद्राओं में देख सकते हैं…। फिलहाल किले में खुदाई चल रही है जो शीघ्र ही समाप्त होने वाली है। पुराने किले के बाहर और भीतर सँग्रहालय में इस किले के महाभारतकालीन होने का उल्लेख किया गया है। यहाँ दी गयी जानकारी के अनुसार पांडवों और कौरवों, दोनों की राजधानी यमुना नदी के तट पर स्थित थी।

महाभारत के युद्ध के उपरांत परिक्षित के बाद क्रमानुसार पाँचवें नरेश निचक्षु ने अपनी राजधानी को हस्तिनापुर से कौशाम्बी स्थानांतरित किया था पर इससे इन्द्रप्रस्थ का महत्व कम नहीं हुआ। इन्द्रप्रस्थ का नाम परवर्ती पुराणों में आता है मगर कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती और ऐसा प्रतीत होता है कि गुप्त काल तक आते – आते इसकी महत्ता खत्म होने लगी थी।

1955 में पुराना किला टीले पर उत्खनन हुआ और यहाँ स्थित लगभग 1 हजार ई.पू. प्राचीन बस्ती जिसमें धूसर मृदभांड का प्रयोग होता था, के प्रमाण प्राप्त हुए। इसके बाद 1969 में बृजवासी लाल, बालकृष्ण थापर और मुनीश चन्द्र जोशी में नेतृत्व में 4 वर्ष तक उत्खनन हुआ और पुरात्वविदों को मौर्य, कुषाण, परवर्ती गुप्त, राजपूत, दिल्ली सल्तनत और मुगल काल से संबंधित अवशेष प्राप्त हुए। यह महाभारत में व्याख्यायित स्थान है।

किला जिस टीले पर है, उसके नीचे इन्द्रप्रस्थ अथवा इन्दरपत बस्ती है। खांडवप्रस्थ के अतिरिक्त बागपत, तिलपत,सोनीपत और पानीपत, ये गाँव पांडवों ने माँगे थे। उत्तर – दक्षिण की ओर बहती यमुना, खांडवप्रस्थ के पूर्व में तथा अरावली पहाड़ की रिज नामक श्रृंखला के पश्चिम में थी। पुरात्विक उत्खनन से ज्ञात हुआ है कि यहाँ लगभग 1000 ई.पू. बस्ती बस चुकी थी और यह कोटला फिरोजशाह तथा हुमायूँ के मकबरे के बीच स्थित थी। इन्द्रप्रस्थ का जिक्र इतिहासकारों ने यहाँ तक कि अबुल फजल ने भी आइने अकबरी में किया है।

आश्चर्य की बात यह है कि ह्वेनसांग और मेगस्थनीज खामोश हैं मगर अलेक्जेन्ड्रिया के भूगोलशास्त्री टॉलेमी ने इन्द्रप्रस्थ के निकट दैदला नामक स्थान का उल्लेख किया है। किले की विद्यमान प्राचीर एवं अन्य इमारतें शेरशाह सूरी ने हुँमायूँ द्वारा 1533 में स्थापित दीनपनाह नामक शहर को ध्वस्त कर निर्मित की थीं। 1555 में फारस से लौटने के बाद मृत्यु पयर्न्त हुँमायूँ यही रहा। पुराना किला एक अनियमित आयत के रूप में बना है और इसके कोनों तथा पश्चिमी दीवार पर बुर्ज हैं। उत्तर, पश्चिम तथा दक्षिण की ओर किले के तीन प्रमुख द्वार हैं जिनके ऊपर छतरियाँ हैं। इनको क्रमशः तलाकी., बड़ा और हुमायूँ दरवाजा कहते हैं।

कहते हैं कि इसी पुस्तकालय में किताबों के बोझ ले लदा हुमायूँ सीढ़ियों से गिरा था और उसकी मृत्यु हो गयी थी

किले की भीतरी इमारतों में शेरशाह की मस्जिद तथा शेर मण्डल के नाम से प्रसिद्ध मंडप उल्लेखनीय है। प्रारम्भ में दुर्ग प्राचीर के चारों ओर एक खाई थी जो पहले यमुना से जुड़ी थी।इंद्रप्रस्थ बारहमासी नदी यमुना के किनारे है जो आज से लगभग 5000 साल पहले पांडवो की राजधानी के रूप में स्थापित की गयी थी।

सँग्रहालय में रखे गये पुरातन आभूषण

किले के भीतर एक कुंती मंदिर भी मौजूद है, ऐसा माना जाता है की कुंती जो पांडवो की माता थी यही रहा करती थीं। ऐसा भी माना जाता है की ये किला दिल्ली का पहला शहर हुआ करता था। शोधकर्ताओं ने इस बात की पुष्टि की है, 1913 तक एक गांव जिसे इंद्रपत कहा जाता था का अस्तित्व केवल किले की दीवारो के भीतर तक ही था।

यहाँ अब इन्द्रप्रस्थ और पांडवों के आधार पर खुदाई चल रही है

जब एडविन लुटियन द्वारा 1920s दशक के दौरान ब्रिटिश इंडिया की नई राजधानी के रूप में नई दिल्ली को तैयार किया तब उन्होंने केंद्रीय विस्टा, जिसे अब राजपथ कहा जाता है और पुराना किला को श्रेणी बध्य किया। भारत के विभाजन के वक्त, अगस्त 1947 के दौरान पुराना किला हुमायूँ के मकबरे के सबसे समीप था, जो नए पाकिस्तान से आये मुस्लिमो के लिए शरण शिविरों का स्थल बन गया था।

किले के पीछे की झील

इन सभी व्यक्तियों में 12,000 से अधिक सरकारी कर्मचारी थे जिन्हे पाकिस्तान की सेवा के लिए चुना गया था और 150,000 – 200,000 के बीच मुस्लिम शरणार्थियों थे, जो सितंबर 1947 तक पुराने किले में ही रहे जब भारत सरकार ने दो शिविरो का प्रबंध लिया था। पुराना किला कैंप सन 1948 की शुरुआत तक कार्यात्मक रूप से चलता रहा।

किले को संरक्षण की जरूरत है

किले के सँग्रहालय में उत्खनन से प्राप्त प्रागऐतिहासिक मृदभांड के अतिरिक्त तत्कालीन आभूषण और खुदाई स्थल के छायाचित्र व मानचित्र भी देखे जा सकते हैं। ये मृदभांड महाभारतकालीन बताये जा रहे हैं। यह तो तय है कि खुदाई को सही दिशा में ले जाने पर कई नये रहस्य खुलेंगे मगर किले को संरक्षित करने के लिए अधिक सख्ती और जागरुकता की जरूरत है जिससे लोग इसे गम्भीरता से लें।

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