महिलाओं को घरेलू हिंसा से लड़ना सिखा रहे हैं सिलीगुड़ी के अधिवक्ता राजेश

लक्ष्मी शर्मा

सिलीगुड़ी । सच ही कहा है किसी ने कि हमारे समाज में भले ही तरक्की कर ली हो हम विकास के बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं लेकिन समानता का अधिकार नाम मात्र का एक शब्द बनकर रह गया है। कहने को तो सब कुछ है लेकिन देखा जाए तो कुछ भी नही। शहर तरक्की कर गया सिनेमैक्स, थिएटर, बड़े बड़े मॉल खुल गए लोगों का रहन-सहन बदल गया पर मेरा जीवन वहीं का वहीं बल्कि दिन पर दिन भर से बदतर होता रहा । समझ में नहीं आ रहा था कि मैं कहां जाऊं किसके पास जाऊँ और किससे अपनी मन की बातें साझा करूँ ।
ऐसी ही बदहाली में मेरे जीवन के दिन गुजरते रहे , मैं उत्तर प्रदेश की रहने वाली हूँ, शादी जलपाईगुड़ी जिला में करीबन 12 साल पहले हुई थी । मैं यहां की भाषा से भी अपरिचित थी अनजान थी और न ही मुझे यहां के तौर तरीके नहीं आते थे । ऐसा लगता था जैसे मैं बिल्कुल ही नयी जगह पर आ गई हूँ । आने के बाद से पारिवारिक वातावरण बहुत ही खराब था जो शायद मेरे रहने के लायक भी नहीं था । सास की तानाशाही , पति हमेशा जले – कटे शब्द ही मुझे सुनाते थे । इन सब की मुझे अब आदत हो चुकी थी ।
प्यार के नाम पर कभी भी प्यार नहीं मिला। प्यार के नाम पर मिला तो अपमान और आज सम्मान और अत्याचार और काम करने के बदले में रोटी के टुकड़े। छोटे दो बच्चे होने के कारण मैं कुछ कर भी नहीं पा रही हूँ। मायके में मेरी मां थी तब तक बात भी कर लेती थी। उनके जाने के बाद तो किसी से बात भी नहीं कर सकती । मेरा जीवन जैसे नरक सा बन गया है, मायके वाले किसी भी तरह का कोई भी साथ नहीं देते कहते हैं, कि अब वही तेरा घर है। पति मेरे साथ मारपीट करते है।
कोई ऐसा नहीं था जिससे मैं मदद माँगती या मैं बताती कि मैं किस हालत में हूं। तभी मुझे किसी के माध्यम से हम जैसी महिलाओं के रहनुमा आज की तारीख में मेरे बड़े भाई राजेश अग्रवाल जी का नंबर मुझे मिला और मैंने उनसे फोन पर अपने बारे में डरते डरते सब कुछ बताया । उन्होंने मेरी सारी बात सुनी और कहा कि आप अकेली नहीं है । आप चिंता ना करें आज से आपका भाई आपके साथ है और उस दिन से लेकर आज तक मेरे लिए वह कानूनी लड़ाई लड़ते आ रहे हैं।
तो वही एक बड़े भाई की तरह घर पर आकर मेरी सास को मेरे परिवार वालों को मेरे पति को समझाते हैं। कहते हैं कि परिवार के साथ अच्छे से रहिए कभी धमकाकर तो कभी प्यार से । कभी समाज को बुलाकर आज मैं कह सकती हूं कि मेरे हक के लिए भी कोई है लड़ने वाला जिससे खून का रिश्ता तो नहीं है। लेकिन हां वह अभिभावक की तरह सिर पर जरूर खड़ा है जो मुझ जैसी बहनों के लिए हमेशा खड़े रहते है। यह कहानी घरेलू हिंसा से परेशान एक महिला की है जिन्होंने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर पत्रकार लक्ष्मी शर्मा से बात की । यह कहानी सिर्फ इसी महिला की नहीं है बल्कि ऐसी कई महिलाएं हैं जिनको सिलीगुड़ी के वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश अग्रवाल से सहायता मिली है ।
इस मामले के बारे में बात करने पर अधिवक्ता राजेश अग्रवाल ने कहा कि आज भी समाज कहीं ना कहीं बेटियों को लेकर अपनी वहीं पर संकीर्ण सोच के साथ जी रहा है । बेटी की शादी तो करनी है जरूर लेकिन उनकी विदाई नहीं की जानी चाहिए य, उन्हें कहीं न कहीं यह सोचना चाहिए कि बेटी उनके घर की है । उनकी एक जिम्मेदारी है कि उसके हर सुख- दुख में उसका साथ दें । अगर उसके साथ कुछ गलत हो रहा है तो वह आगे बढ़ कर उसका साथ दें और अन्याय होने से अपनी बेटी को बचाए।
क्या उनका फर्ज यही है कि वह शादी करके उसको छोड़ दें और वह जिंदगी भर तकलीफ में रहे और एक दिन अपनी जीवन लीला समाप्त कर ले ? अगर माता पिता अपनी बेटी का साथ दें तो कि नहीं हम तुम्हारे साथ हैं । तुम्हारे साथ कुछ भी गलत हो तुम हमें बोल सकती हो हमारे घर के दरवाजे तुम्हारे लिए खुले हैं तो वह शायद उस अन्याय का सामना करने में पूरी तरह से समर्थ हो और ससुराल वाले भी इसके मायके वाले तो इसके साथ हैं, तो अन्याय करने से पहले सोचेंगे ।

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