मित्रता पर दो कविताएं

पीयूष साव

अमूल्य संपत्ति वहीं है, जिसे लूट न कोई पाता है। एक रिश्ता धन ऐसा है, जो मित्रता कहलाता है?

अटूट विश्वास नींव इसकी है। अटल प्रेम पहचान जिसकी है

ऐसा जाता है यह जो सामान्य से परे है मित्र वही है जो संकट में साथ खड़े है:

मुख पर जो उत्तम – उत्तम कह जाते हैं,

पर पीछे निटक बड़े बनाते है;

सर्प से भी भयंकर चाल जो चल जाते हैं, वे कपटी मित्र कहाँ बन पाते है:

मित्रता रिश्ता ऐसा है,

जिसे हर जाते से जोड़ा जाता है,

और सबसे उत्तम मित्र, कृष्ण को माना जाता है;

एक दूजे का पूरक बन जाना स्वाभाव जिसका है, थोड़ा खट्टी – थोड़ी मीठी परिभाषा इसकी है।


 

मित्र किसे कहते हैं?

बिन बोले जो बात समझ लें,

मित्र उसे कहते हैं।

चेहरे की चमक में भी,

दिल का हाल समझ ले, मित्र उसे कहते है।

आपकी उत्सुकता को जो आपसे पहले जान ले ! नाराजगी को आपकी, देखते ही पहचान ले; मित्र उसे कहते है।

खुद पर आपका, और आप पर खुद का अधिकार बताएँ, मित्र उसे कहते हैं।

जो सुख में भी साथ निभाये : दुःख कठिनाइयों में हँसना सिखाये

कुछ कहने से न कतराए

मित्र उसे कहते हैं।

शुभजिता

शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।