लम्बे समय तक खलेगी रंगकर्मी अजहर आलम की कमी

राधा कुमारी ठाकुर

वर्तमान समय में जहां लोग अपनी जीविका के अलावा और कुछ नहीं सोचते वहां एक व्यक्ति अपने मन में रंगमंच सजा रहा था अलग ही अपने विचारों की दुनिया में रंगकर्म का नया इतिहास बना रहा था। अजहर आलम एक ऐसा नाम जो सिर्फ रंगमंच के नाम से ही हमारे कानों में गूंज उठता है। भारतीय रंगमंच को अपने रंगकर्म से रंग देने वाले अजहर आलम की आंखें न जाने कितनी बार कलाकारों को रोज देखतीं, चाय की प्याली में चुस्की लेतीं, स्क्रिप्ट देखते हुए खाना खाती, सेट की दीवारें और रातों के स्वप्न में संवाद करते दो किरदार।

रंगमंच हमारे समाज की बहुत पुरानी संस्कृति है जिसे इन्होंने और अधिक उभारा। रंगमंच के प्रति इतना सक्रिय व्यक्तित्व मैंने आज तक नहीं देखा था। अज़हर आलम ने अपने रंगकर्म से रंगमंच को एक नयी दिशा दी है। रंगमंच के प्रति इनके योगदान का दायरा इतना बड़ा है कि उसे समेटना मुश्किल है। ये एक अच्छे निर्देशक , प्रतिभाशाली अभिनेता, उम्दा कलाकार, एक शानदार सेट डिजाइनर एवं निर्देशक थे।
उन्होंने कई नाटक लिखे जैसे रूहें ,चाक, ,नमक की गुड़िया, गैंडा ,सुलगते ,चिराग ,सवालिया निशान, चेहरे, पतझड़ इन सभी नाटकों का प्रकाशन इंडियन नेटबुक्स से हुआ जो महानगर के आनंद प्रकाशन में और ऑनलाइन भी उपलब्ध है।
हाल ही में 2020 में नाटक रूहें के लिए नेमीचंद जैन नाट्य लेखन सम्मान, 2007 में पश्चिम बंग नाट्य अकादमी, संस्कृति विभाग, पश्चिम बंगाल सरकार के द्वारा नाटक सवालिया निशान के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का, 2001 में नमक की गुड़िया के लिए सर्वश्रेष्ठ नाटककार का पुरस्कार मिला। 30 से ज्यादा नाटकों का निर्देशन तथा 70 से ज्यादा नाटकों में अभिनय किया।

कोरोना हमसे बहुत कुछ छीन ले गया और अजहर आलम जैसा शानदार रंगकर्मी भी। कोरोना काल के दौरान अचानक एक ऐसी दुर्घटना घटी जिसमें अजहर आलम हमसे दूर हो गए पर इतना दूर भी नहीं कि हम उनको महसूस ना कर सके उनकी रूह रंगमंच पर सदैव एक दम भर साँस भरती रहेगी। जिस लिटिल थेस्पियन की शुरुआत 1994 मैं अजहर आलम और उमा झुनझुनवाला ने एक साथ मिलकर की थी, उसका काम उनकी जीवन संगिनी उमा झुनझुनवाला ने रुकने नहीं दिया और लगातार जुटी रहीं। उषा गांगुली की रंगकर्मी के बाद हिन्दी नाटकों को लोकप्रिय बनाने की दिशा में अगर कोई नाम याद आएगा तो वह उमा झुनझुनवाला एवं अजहर आलम का होगा। लिटिल थेस्पियन द्वारा कई कार्यशालाएं आयोजित की गयीं, कहानी और कविताओं का अभिनयात्मक पाठ हुआ और हाल ही में जश्न -ए- अज़हर का आगाज़ भी हुआ जो दो चरणों में समाप्त हुआ।

इसी के बीच अजहर आलम की स्मृति में मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना हुई। इसके कई उद्देश्य रहे- नाटक और रंगमंच में विशेष उपलब्धि के लिए प्रतिवर्ष एक व्यक्तित्व को पुरस्कार ,रंगमंच विषय पर काम करने वाले शोधार्थी को फेलोशिप देना अज़हर आलम लेक्चर और सेमिनार का आयोजन ,नाटक और रंगमंच या आलेखों का प्रकाशन ,प्रत्येक महीने की 20 तारीख को अज़हर आलम की स्मृति में अनाथ और जरूरतमंद बच्चों के साथ कार्यशाला का आयोजन तथा अज़हर आलम मंच के निर्माण का आयोजन। इस वर्ष का रंग सम्मान गत 18 फरवरी 2022 को जश्न-ए- अज़हर नाट्य उत्सव के प्रथम दिन अकादमी ऑफ़ फाइन आर्ट्स में बंगाल के विख्यात रंगकर्मी रूद्र प्रसाद सेन गुप्त को दिया गया तथा अज़हर आलम मेमोरियल फैलोशिप की घोषणा भी हुई जिस का विषय है – 21वीं सदी के नाटककार और अज़हर आलम और दूसरा पश्चिम बंगाल का हिंदुस्तान रंगमंच और अज़हर आलम |
अजहर आलम की कलात्मकता का स्तर इतना उठ चुका था जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भविष्य में भारतीय रंगमंच का स्तर कितना ऊंचा उठता और अपनी स्मृतियों और संदेशों में लोग अजहर आलम को संजो रहे हैं।

एस. एम. अजहर आलम को कुछ ऐसे याद किया गया

इसी क्रम में पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी अपने शोक संदेश में लिखा है – रंगमंच पूरी दुनिया में रहा है। बहुत प्राचीन काल से ही इसकी स्पष्ट तात्कालिक था। इसका वास्तविक स्वरूप होने के कारण यह अपने गहन सामाजिक प्रभाव के साथ सबसे महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति का वाहन रहा है। यह अपने दुःख – सुख में समाज का आईना भी रहा है। अपनी दुविधा में भी नाटककार और निर्देशकों और अभिनेताओं के समर्पण और प्रतिभा का कारण है। रंगमंच एक असाधारण विधा है मेरी कामना है कि लिटिल थेस्पियन दिवंगत एस एम अज़हर आलम की रंगमंचीय जीवन की इस स्मृति को जारी रखें |
रंग समीक्षक श्री आनंद लाल का कहना है – अज़हर शब्द के कई अर्थों में से एक अर्थ है ‘प्रबुद्ध’ जो उनके व्यक्तित्व और काम पर हर मायने में फिट है वे विनम्र मृदुभाषी उदार थे सभी मानवतावादी मूल्यों को आत्मसात किया था।
प्रसिद्ध नाटककार रंग निर्देशक एवं अभिनेता निलॉय रॉय का कहना है – अज़हर आलम में के भीतर ही स्पेस बनाने की क्षमता थी जिसके कारण स्वाभाविक रूप से अभिनेताओं की ऊर्जा और क्षमता को बढ़ावा मिलता जहां विभिन्न विशिष्ट क्षणों के माध्यम से वे उस के दरमियान आसानी से यात्रा कर सकते थे यह आमतौर पर कल्पना और यथार्थ वाद के बीच का वह क्षेत्र है जिसे अज़हर आलम ने अपने काम में अपनाया |
प्रतिष्ठित रंग आलोचक श्रीमाल जी का कहना है- नाटकों के चयन से लेकर उसके निर्देशन तक में पाश्र्व में जैसे कोई आग चुपचाप धधकती रहती थी यह समय उन्हें संपूर्णता से याद करने का समय है उनके बारे में यह तथ्य भी बहुत महत्वपूर्ण है कि उन्होंने नाटक को सही अर्थों में प्रतिरोध की विधा के रूप में ढाला और हमेशा जन सरोकारों को प्रमुखता दी सकारात्मक उम्मीद की जा सकती है कि अज़हर भाई की स्मृति उन्हें और अधिक रचनात्मक बनाएगी |
रंग आलोचक ज्योतिष जोशी का कहना है __ साहित्य समाज और रंग जगत के लिए यह अपूरणीय क्षति है वे कुशल निर्देशक तो थे ही सधे हुए अभिनेता तथा नाटककार भी थे अभी हाल ही उनके नाट्य नटरंग प्रतिष्ठान द्वारा उनके लिखे नाटक रूहे के लिए नेमीचंद जैन स्मृति नाट्य लेखन पुरस्कार दिया गया था जो उनकी बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण है।
रंग समीक्षक रवींद्र त्रिपाठी जी कहते हैं _ अज़हर एक संपूर्ण रंग व्यक्तित्व थे यानी एक बहुत अच्छे नाट्य निर्देशक थे प्रतिभाशाली अभिनेता थे उम्दा नाटककार थे और शानदार रूपांतर कार थे और कुशल रंग संगठनकर्ता थे रंगमंच की एक बेहतरीन बुद्धिजीवी थे। भारतीय रंगमंच को उनकी अनुपस्थिति लंबे समय तक खलने वाली है।

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