वर्षा और हमारे भाव

– डॉ. वसुंधरा मिश्र

महिलाओं पर समाज परिवार और देश का दायित्व रहा है। बच्चों से लेकर परिवार, संस्कृति से लेकर संस्कार, शिक्षा से लेकर अच्छे नागरिक बनाने का कार्य सब कुछ महिलाओं पर होता है। तीज-त्यौहार रीति-रिवाज परंपराओं को महिलाएँ ही आगे बढ़ाती हैं। वसंत के समान ही वर्षा भी भारतीय साहित्य में सम्मान और गौरव का स्थान पाती रही है। हर भाषा के लोक गीत हैं, वैदिक ऋषियों ने मेघों के शक्तिशाली रूप का यशोगान उल्लसित कंठ से किया है।इंद्र मेघों के शक्तिशाली अधिपति रहे। समय के साथ उनका प्रभाव असफल होता गया और इंद्र देवता की छवि में कमी आती गई और बाद में उपेंद्र देवता ने भारतवर्ष में धर्म साहित्य शिल्प संगीत और कला के क्षेत्र को छा लिया।
घनों के राजा इंद्र रंगमंच से चुपचाप हट गए और घनश्याम वहाँ डट गए। हिंदू पुराणों के अनुसार यह घटना द्वापर युग में घटी थी। भागवत पुराण में इंद्र की पूजा रोककर गोवर्धन पूजा करवाई। इंद्र ने भी बदला लेने के लिए मूसलाधार वर्षा करवाई जिससे द्युलोक से भूलोक तक जल ही जल हो गया।
श्रावण का महीना उत्सव का महीना है। मानसूनी हवाएँ वारिश लाती हैं और तपती धरती को भीगो देती हैं। नागार्जुन की पंक्तियाँ हैं –
बादल को घिरते देखा है बहुत ही प्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं।
कन्हैयालाल सेठिया जी की पंक्तियाँ –
नीर भरी नदियाँ लहराते सागर उनमें प्यास बुझाते
किंतु गगन की एक बूंद हित चातक के नयनों में जल है।

वेदों से लेकर अभी तक न जाने कितने ही कवियों, साहित्यकारों और दार्शनिकों आदि ने वर्षा के प्रति अपने भावों को व्यक्त किया है। आषाढ़ से ही वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है। बंगाल में काल बैशाखी बैशाख से ही वारिश की दस्तक देने लगती है। कालिदास ने मेघदूत की रचना ही कर डाली जो विश्व में एक अनूठी और अद्भुत रचना है।
आषाढ़स्य प्रथम दिवसे मेघमाश्लिष्ट सानु ।
वप्र क्रीडा परिणत गज प्रेक्षणियम ददर्श।।
प्रथम श्लोक से ही मेघों को अपना संदेशवाहक मानते हुए अभूतपूर्व वर्णन किया है। बादल वही हैं जो प्रकृति जड़चेतन और पूरे ब्रह्माण्ड को अपनी शीतलता प्रदान करते हैं।
सावन और संगीत का अटूट रिश्ता है। सावन पर मेरी कविता को देखें – – –
मन का सावन–
सावन मन में बरसता है।
जब रस रंग और रास से मन पूर्ण होता है तो सावन होता है।
निश्छल और उन्मुक्त हँसी से चेहरा भरा हो तो सावन है।

चिंताओं की तमाम लकीरें जब पानी की तरह पारदर्शी हो जाए तो सावन है।
होठ पर जब बचपन के गीत आने लगें तो सावन है।
एक पैर से दूसरा पैर जब खेलने लगे तो सावन है।
पेड़ों की पत्तियों से गिरती बूदें जब शरीर को भिगो दें तो सावन है।
तन और मन के पोर पोर कुछ कहकर भी जब कुछ न कहें तो सावन है।
आसमान में सात रंगों का इंद्रधनुष दिखाई दे तो सावन है।
हमारे मन का मयूर जब नाचे तो सावन है।

यूँ ही तो कोई सावन नहीं मनाता है।

किसान अपनी लहलहाती फसलें देखकर झूम उठता है, तब सावन है

भारत ऋतुओं से फलता-फूलता है, त्योहार मनाता है, खुशियाँ मनाता है। तब सावन है

कोयल की कूंक जब सुनाई दे तो सावन है।

हर बच्चा वृद्ध और स्त्री के चेहरे पर सुकून हो तो सावन है
मजदूर जब त्योहार मनाए तो सावन है
कृषि के साथ कृष्ण बांसुरी बजाएं तो सावन हैं
क्रोधित वर्षा के नैनों की धारा जब बुझ जाएं तो सावन है
बाढ़ के खतरे न आएं पशु-पक्षी और मानव के जीवन सुरक्षित हों तो सावन है।
निराला कहते हैं – बादल गरजो
घेर घेर घोर गगन धाराधर ओ
ललित ललित काले घुंघराले
बाल कल्पना के से पाले
सूर तुलसी जायसी सभी ने पावस ऋतु का सुंदर सरस वर्णन किया है।
महादेवी वर्मा जी ने – – नीर भरी दुख की बदली
नागार्जुन – – मेघ बजे घन कुरंग
बादल को घिरते देखा है।
बूंदों की रिमझिम में संगीत का सरगम होता है। इस मौसम में हवा बादल पेड़ पपीहे सब झूमते गाते हुए से लगते हैं।
भक्ति संगीत और कविताओं में वर्षा ऋतु प्रकृति की सहचरी है। वर्षा मानव मन की अनुभूतियों की ही अभिव्यक्ति है।
यह उल्लास लोककंठ से बारहमासी कजरी झूलागीतों के रूपों में फूटता है। मेघ मल्हार का आदि राग कवि हृदय में भी गीत के रूप में उतरता है। सावन और संगीत का अटूट संबंध कई नवगीतों में मिलता है।
बरसात का प्रेम से चिर संबंध है। इस ऋतु में प्रणय की पुरानी स्मृतियाँ ताजा हो उठती हैं। विरह की वेदना तीव्र हो जाती है और मिलन की आतुरता बढ़ जाती है। बादलों का अत्याचार बाढ़ के रूप में तबाही भी लाता है। बाढ़ की त्रासदी के कई वर्णन मिलते हैं।
तुलसी के रामचरित मानस में सीता वियोग में राम को भी बादलों के गरजने से डर लगता है।
घन घमंड नभ गरजत घोरा,
प्रिया हीन डरपत मन मोरा।

सूर की गोपियाँ कृष्ण के वियोग में कहती हैं – –
निस दिन बरसत नैन हमारे,
सदा रहत पावस ऋतु इन पे जब से स्याम सिधारे।
कबीर की उलटवासी देखें –
बरसे कंबल भीजे पानी
कबिरा बादल प्रेम का
हम परि बरष्या आइ
अंतरि भीगी आत्मां हरि भयी बनराई
जायसी ने महाकाव्य पद्मावत में – – – नागमती की विरह की पीड़ा को इस प्रकार व्यक्त किया है। – –
चढ़ा असाढ़ गगन घन बाजा
साजा विरह दुंद दल बाजा **
सावन बरस मेह अति पानी
भरनी परिहौं बिरह झुरानी
वर्षा ऋतु सांस्कृतिक नवोन्मेष का बीजारोपण करता है।

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