सब्र

श्वेता गुप्ता

सब्र करो, सब कहते मुझसे,
पर कितना सब्र करू मैं?!

अधूरे रिश्ते,अधूरे वादे,
पर कितना डटी रहूं मैं?!
आंख मूंदे, सपने को सीते,
और कब तक हठ करू मैं?!
विरह की अग्नि में खुद को जलाकर,
और कब तक मरहम करू मैं?!

सब्र करो, सब कहते मुझसे,
पर कितना सब्र करू मैं?!

वक्त गुजरे, कोई उसको रोको,
और कब तक, परखती रहू मैं?!
हर कोई तेजी से बढ़ता,
और कब तक, विलंब करू मैं?!

सब्र करो, सब कहते मुझसे,
पर कितना सब्र करूं मैं?!

सब्र का बांध, अब टूटा जाए,
रिश्ते नाते, सब छूटा जाए,
किस्मत को आजमा ले तू,
सब्र छोड़, अपना ले तू ।

किस्मत का रोना छोड़, उठा हथियार, अब लिखता चल,
डटे रहे तू, मरहम लगाकर, विलंब न कर,
अब उठजा तू।
जीत निश्चित है, अब डर मत तू ।

सब्र करो ,सब कहते मुझसे,
अब और ,सब्र ना करे तू ।
अब और सब्र ना करे तू ।।

 

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