स्वतन्त्रता के लिए प्राण उत्सर्ग करने वाले शहीद सआदत खां

शहीद सआदत खां इन्दौर रियासत के महाराजा तुकोजीराव होलकर (द्वितीय) के फौजी थे। 10 मई 1857 का वह संकल्प भरा दिन जब पूरा देश भारत के अन्तिम मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ उठ खड़ा हो गया था। मेरठ में क्रांति की चिंगारी सुलग पड़ी जिसमें दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल आदि सभी को अपनी आगोश में जकड़ लिया।
दिल्ली में बहादुर शाह ज़फर, बेगम ज़ीनत महल, बख्त खान, झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई, बैरकपुर में मंगल पांडे, मेरठ में धनसिह गुर्जर, जगदीशपुर में बाबू कुंवर सिंह, रेवाड़ी में राव तुलाराम सिंह, बल्लभगढ़ में राजा नाहर सिंह, बड़कागढ़ में राजा विश्वनाथ शाहदेव कानपुर में नाना साहब – अज़ीमुल्ला खान, लखनऊ में बेगम हज़रत महल, बांदा स्टेट में नवाब अली बहादुर, फैज़बाद में मौलवी अहमदुल्लाह, इलाहाबाद में मौलवी लियाकत अली, बरेली में खान बहादुर, तो इन्दौर में महाराजा तुकोजीराव होलकर (द्वितीय) के फौजी एवं मालवा के पठान सआदत खां ने फिरंगियों के खिलाफ हल्ला बोल दिया।
जब फिरंगियों के खिलाफ मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर द्वारा क्रांति की तारीख तय कर दी गई तो पूरे देश में फिरंगियों के खिलाफ जंग शुरू हो गई। छावनियों और रेजीडेंसियो पर हमले हुए अंग्रेज़ इधर उधर भागते नज़र आ रहे थे और मारे जा रहे थे ।
इन्दौर रियासत की सुरक्षा हेतु सआदत खां ने महाराजा तुकोजीराव होलकर (द्वितीय) से अर्ज़ किया : हमने आपका नमक खाया है, ये एक अच्छा मौका आया है आप हमारे सर पर हाथ रखें, हम आपको महेश्वर, महू रेजीडेंसी का इलाका वापस दिलाकर रहेंगे और आपको अंग्रेज़ी शिकंजे से आज़ाद करा देंगे। अगर आप 1818 में हुए महाराजा मल्हार राव (तृतीय) के सुलहनामे के कारण ऐसा नहीं कर सकते तो आप अंग्रेज़ो को बता दीजिए कि मेरे सारे फौजी बागी हो गये हैं। बगावत की खबरें सुनकर इन्दौर खामोश ना रहसका और 1 जुलाई 1857 को सआदत खां ने क्रांति का बिगुल बजा डाला।
1 जुलाई 1857 को सआदत खां के नेतृत्व में क्रांति कि तोपें गड़गड़ा उठीं और सआदत खां, भागिरथ सिलावट, वंश गोपाल, भाई सरदार खां और अन्य साथी रेजीडेंसी जा पहुंचे। उस समय कर्नल एच• एम• डुरान्डु रेजीडेंसी कोठी में अपनी टेबल पर काम कर रहे थे।
सआदत खां रेजीडेंसी पहुंच कर्नल डुरान्डु से बात करना चाहा पर वह अनाप-शनाप बकने लगा जिसका उन्होंने विरोध किया। इस पर डुरान्डु ने तमंचे से उन पर वार किया जो उनके कान को छूता हुआ निकल गया। सआदत खां बचते हुए सीधे अपने घोड़े पर बैठना चाहा तो इसी बीच कर्नल ट्रेवर्स आ पहुंचा और धमकाते हुए तलवार से मुकाबला करना चाहा जिसमें एक गहरा घाव सआदत खां के गाल पर लगा जिससे वह लहुलुहान हो गये ।
अपने सरदार को लहुलुहान देख क्रांतिकारी भड़क गए। उधर सआदत खां ने यलगार भरी : ” तैयार हो जाओ फिरंगियों को मारने के लिए महाराज साहिब का हुक्म है ! कुछ घंटों की मुठभेड़ के बाद इन्दौर को अंग्रेजों से आज़ाद करा लिया गया। कुछ ही देर में पूरे शहर में खबर फैल गई और इसी जगह रेजीडेंसी में देखते देखते हज़ारों लोगों की भीड़ जमा हो गयी। सआदत खां ने सभी को संबोधित किया और क्रांति को आगे बढ़ाते हुए अपने कदम दिल्ली की ओर मोड़ दिये। यहां से मिली सफलता के बाद वह अपने साथियों के साथ दिल्ली की ओर कूच कर गए। दिल्ली में शहज़ादा फिरोज़शाह अपनी सेना के साथ सआदत खां की फौज में शामिल हो गए और सआदत खां की फौज अंग्रेजों को परास्त करती रही।
20 सितंबर 1857 को अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया और मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर को बंदी बना लिया गया। इस प्रकार क्रांति असफल हो जाती है और क्रांतिकारी समूह बिखर जाते हैं। इसके बाद अंग्रेज़ो द्वारा क्रांतिकारी नेताओं को ढूंढ ढूंढकर कालापानी, फांसी और तोपें से उड़ाने का काम करने लगे।
इसी बीच सआदत खां फरार हो जाते हैं और छुपते छुपाते बांसवाड़ा पहुंचे जातें हैं और वहां अपना नाम बदलकर अकबर खां के नाम से रहने लगते हैं। उनकी तलाश में 5,000 का इनाम घोषित किया जाता है, पर उनका पता नहीं चल पाता है।
17 साल बाद अर्थात 1874 में सआदत खां को उनके चेहरे के ज़ख्म के निशान की वजह से पहचान लिया जाता है और बांसवाड़ा में गिरफ्तार कर इन्दौर लाया जाता है और 1 अक्टूबर 1874 को सआदत खां को फांसी पर लटका दिया जाता है। सआदत खां की याद में इन्दौर लोकसेवा आयोग की कोठी के सामने ” स्मारक ” है जो हमेशा उनके योगदान को याद दिलाता रहेगा।

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