जानिए भारतीय नववर्ष का महत्व

आज से 2074 वर्ष पूर्व भारत में एक बहुत ही पवित्र राजा हुए थे जिनका नाम महाराजा विक्रम था, महाराजा विक्रम के नाम पर ही भारतीय वर्ष का नाम विक्रम वर्ष रखा गया था। यह वर्ष विक्रम वर्ष 2074 है। महाराजा विक्रम से पूर्व वर्ष भगवान कृष्ण के नाम पर था; इस प्रकार से यह 5,118 वाँ वर्ष है।
भारत के नव वर्ष की प्रणाली
नव वर्ष की प्रणाली ब्रह्माण्ड पर आधारित होती है, यह तब शुरु होता है जब सूर्य या चंद्रमा मेष के पहले बिंदु में प्रवेश करते हैं। आज, चंद्रमा मेष राशि में प्रवेश कर चुका है और दिन बाद अर्थात 13 अप्रैल को सूरज मेष राशि के पहले बिंदु में प्रवेश करेगा, जिस दिन हम बैसाखी मनाते हैं, यह भी एक नए साल का दिन है।
इस प्रकार में भारत के आधे भाग में नव वर्ष चंद्रमा के आधार पर मनाया जाता है और आधे भाग में सूर्य के आधार परमनाया जाता है, इनमें कोई समानता नहीं है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपनेअनुसार नव वर्ष मनाने के लिए स्वतंत्र है।पंजाब में बैसाखी, बंगाल में पोयला बैशाख) , उड़ीसा में पण संक्रांति, तमिलनाडु में पुथेंदू, असम में बिहू और केरल राज्यों में नव वर्ष सौर कैलेण्डर के अनुसार मनाया जाता है । इस दिन बैसाखी होती है। कर्नाटक में युगादि, महाराष्ट्र में गुड़ीपड़वा, आंध्र प्रदेश में उगादी और कई अन्य भारतीय राज्यों में आज के दिन उत्सव मनाते हैं, अर्थात् चंद्र कैलेंडर के अनुसार। दी आर्ट ऑफ़ लिविंग में, हम हर दिन उत्सव मनाते हैं।
प्राचीन काल में एक समय था जब पूरी दुनिया में हर व्यक्ति एक ही कैलेंडर मानता था; चंद्र कैलेंडर, आज भी, तुर्की और ईरान में, लोग चंद्र कैलेंडर ही मानते हैं; इसके अनुसार मार्च से नए वर्ष की शुरुआत होती है परंतु लंदन के राजा किंग जॉर्ज, जनवरी से नव वर्ष शुरू करना चाहते थे क्योंकि वह उस माह में पैदा हुए थे। यह उनका नव वर्ष था, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन उसने पूरे ब्रिटिश साम्राज्य पर यह नव वर्ष लागू कर दिया ! यह घटना आठवीं या नौवीं शताब्दी में किसी समय हुई थी, लेकिन लोगों ने अप्रैल में नए साल का जश्न मनाना बंद नहीं किया तो किंग जॉर्ज ने इसे अप्रैल फुल डे कहा। उन्होंने कहा कि अप्रैल में नव वर्ष मनाने वाले लोग मूर्ख होते हैं, और इसी तरह अप्रैल 1 को फूल्स डे के रूप में जाना जाने लगा।
नीम के पत्ते और गुड़ का महत्व
नए वर्ष के दिन, परंपरा के अनुसार थोड़ी नीम के पत्ते, जो बहुत कड़वे होते हैं और गुड़, जो मीठा है, को मिलाकर खाया जाता है। इसका अर्थ यह है कि जीवन कड़वा और मीठा दोनों प्रकार का है और आपको दोनों को ही स्वीकार करना होगा।
समय आपको कड़वे और मीठे दोनों प्रकार के अनुभव देता है। यह मत सोचो कि केवल दोस्त ही आपके जीवन में मिठास लाते हैं, दोस्त कड़वाहट भी ला सकते हैं। और यह भी मत सोचो कि दुश्मन हमेशा कड़वाहट लाते हैं, दुश्मन भी कुछ मिठास ला सकते हैं इसलिए, जीवन सभी विपरीत तथ्यों का मिश्रण है; जैसे यह यहां है, ठंड है और फिर भी अभी तक थोड़ी गर्मी है, है ना ? यहाँ चारों ओर बर्फ है, फिर भी यह सुखद है नव वर्ष ऐसे ही शुरू होता है।
क्या आप जानते हैं कि सभी महीनों और दिनों के नाम संस्कृत में हैं?
सप्ताह के दिनों को सात ग्रहों के नाम पर रखा गया था। जैसे कि आप कहते हैं
रविवार, तो यह सूर्य का दिन है सोमवार चंद्रमा का दिन है।
मंगलवार मंगल है,
बुधवार बुध है,
गुरूवार बृहस्पति होता है,
शुक्रवार शुक्र है और
शनिवार को शनि का दिन है।
ये सात ग्रह हैं जिनके नाम पर सप्ताह के दिनों के नाम दिए गए थे। दरअसल, यह सब संस्कृत में है। प्राचीन कैलेंडर, प्राचीन भारत में संस्कृत में बनाया गया था; वहां से यह कैलेण्डर मिस्र (Egypt) को गया।
बारह महीनों के नाम बारह राशि चिन्हों के नाम पर रखे गए थे, अर्थात् प्रत्येक नक्षत्र में सूर्य की स्थिति (मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या; आदि इसी प्रकार से, महीनों के नामों की व्यवस्था की गई थी)। इस प्रकार, महीनों के नाम संस्कृत के शब्दों के अनुरूप हैं।
दशअंबर दिसंबर है; दश का अर्थ संस्कृत में दस होता है, अंबर का अर्थ है आकाश, दशंबर का तात्पर्य दसवें आकाश से है। नवअंबर नवंबर है, जिसका तात्पर्य है नौंवा आसमान। अक्तूबर अष्टमबर है, तात्पर्य आठवें आसमान से है। सितंबर का तात्पर्य सातवें आसमान से है। देखिए, यदि सिर्फ एक ही शब्द ऐसा हो तो इसे संयोग माना जा सकता है परंतु यदि सभी नाम इसी प्रकार से मिलते हैं तो यह संयोगवश नहीं हो सकता।
शष्ठ का अर्थ होता है छठवाँ, अर्थात्, अगस्त यह आठवाँ महीना नहीं है, अगस्त छठा महीना है (यदि आप मार्च से शुरू करते हैं)। यदि आप फरवरी में आते हैं, तो हम अक्सर कहते हैं कि साल का अंत खत्म होता है! फरवरी माह का आखिरी महीना है, बारहवाँ महीना। मार्च नए साल का पहला महीना है।
चंद्र नववर्ष और चंद्र कैलेंडर क्या है ?
आमतौर पर, चंद्र नववर्ष 20 मार्च को आता है, ऐसा तब होता है जब नया वर्ष शुरू होता है। हालाँकि यह सब एक ब्रिटिश राजा द्वारा विकृत कर दिया गया था, जिसने अमेरिका और कनाडा सहित लगभग आधा दुनिया पर कब्जा कर लिया और प्रभावित किया था। इसलिए, किंग जॉर्ज ने अपने जन्मदिन के अनुसार नया साल बदल दिया। यह हकीकत है। दुर्भाग्य से, भारत में, बहुत से लोग महीनों के पारंपरिक नाम व अर्थ भूल गए हैं। चंद्र कैलेंडर के अनुसार महीनों के नाम हैं: चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाढ, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन। चंद्र कैलेंडर में हर महीने का नाम ब्रह्मांड में हमारी आकाश गंगा के 27 सितारों से मेल खाता है। दो और एक चौथाई सितारे से मिलकर एक नक्षत्र बनता है। इस संख्या को 12 से गुणा करने पर यह 27 सितारों के बराबर आती है।
जब पूर्णिमा का चांद स्पष्ट रूप से सितारों में से किसी एक सितारे के पास आ जाता है, तो उस महीने को उस तारे के नाम से जाना जाता है उदाहरण के लिए, चित्रा के नाम से एक तारा है। जब पूर्णिमा का चांद चित्रा के पास आता है, तो यह चंद्र कैलेंडर का पहला महीना है, अर्थात चैत्र अगला महीना वैशाख का होगा। आश्चर्यजनक है, कि चंद्रमा किस सितारे के नीचे आ रहा है यह देखने के लिए कितनी सटीक गणना की जाती थी, और महीनों की गणना भी कैसे की जाती है।
चंद्र कैलेंडर में, एक महीने में केवल 27 दिन होते हैं। इसलिए, हर 4 सालों में, एक लौंद का महीना होता है, अर्थात् एक अतिरिक्त महीना। जैसे लौंद वर्ष में, आपको फरवरी में 29 दिन मिलते हैं; चंद्र कैलेंडर में, आपको लौंद का एक महीना मिलता है, अर्थात् एक अतिरिक्त महीना।
सौर कैलेंडर में, अंग्रेज़ी कैलेंडर की तरह ही केवल एक दिन अतिरिक्त मिलता है। कभी-कभी, बैसाखी 13 अप्रैल को आती है, और कभी 14 अप्रैल को है। चार वर्षों में एक बार एक दिन का अंतर आता है।
(साभार – आर्ट ऑफ लीविंग)

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