अर्चना संस्था द्वारा स्वरचित ‘काव्यांजलि’ आयोजित

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कोलकाता । अर्चना संस्था की सदस्याओं ने ‘काव्यांजलि’  कार्यक्रम में ऑनलाइन स्वरचित रचनाओं और गीतों का पाठ किया। सर्वप्रथम इंदू चांडक ने सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की। कवयित्री मृदुला कोठारी ने सूर्य से संवाद,अरुणिमा आभा लिए साथ में, जब नभ पर आ जाते हो, स्वर्ण कलश तव लिए हाथ में, दिन भर तुम छिड़का ते हो, सुशीला चनानी – कवितायें, क्षणिकायें ( विभिन्न विषय आधारित, भोर की सुरभित बेला में जब चिडिया चहचहाती हैं, ऐसा लगता है जैसे वे, प्रभु को भजन सुनाती हैं, आती है अक्ल, प्रेम विवाह के बाद, प्रेम उड़ जाता परफ्यूम सा,बचा रहता है पतली दाल का स्वाद और सरसी छन्द-चमचम चमके बिजली नभ में, नेताजी तो मिलने आते, पांच साल के बाद, छन्द मुक्त कविता-लावारिसकुत्तों का अधिकार, हिम्मत चोरड़़िया ने दोहे- कीड़ा जो संदेह का, अपनी क्षमता पर कभी, जगह जगह धोखा मिला, पाना चाहो जीत तो, गीत- वंदन ले लो माते मेरा, गजल- चीर दे तूफान को तू हौसलों की धार से, मीना दूगड़ ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति की बखियां उधेड़ते, कुकुरमुत्तों की तरह बढ़ते ये बहुरूपिया दिवस, उषा श्राफ ने कोरोना का बादल छाया था, इंदू चांडक ने शब्दों केमोती पिरोकर, गूँथती हूँ मैं गीत माला, अहर्निश जिनको है मैंने,भावों के साँचे में ढाला, संगीता चौधरी ने बहे गुरु ज्ञान रसधार, जब भी देखती हूं आईना, सरसी छंद -दीन सुदामा विनय करे है ,अरजी बारम्बार, वसुंधरा मिश्र ने कविता युद्ध और शांति में पिसती कलम सुनाई, शशि कंकानी ने राजस्थान की महिमा-मायड पूत सपूत है जाया।, रण में शीश दान दे आया।, हँस हँस काम देश रे आया।, इण पर वारी जावाॅ।।, कब से दे रही थी चेतावनी,लेकिन तुमने नहीं मानी, बस करते रहे अपनी मनमानी सुनाई। भारती मेहता ने साहित्य ! बड़े चर्चे हैं तुम्हारे, तुम हो सुन्दर, गूढ़ – गम्भीर, दार्शनिक- प्रतिभावान !तुम से मिलने की आरजू दीवानी हुई…देश, भाषा, प्रकृति, सभ्यता और संस्कृति, युद्ध और शांति, शब्दों के मोती, गीत वंदना और छंद लय ताल से युक्त विषयों पर स्वरचित कविताएं सुनाई गईं ।

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