आम्रपाली : बुद्ध ने जिनके कारण स्त्रियों के लिए खोले संघ के दरवाजे

ऐ सखी सुन 16

सभी सखियों को नमस्कार। सखियों, यह आम धारणा है कि खूबसूरती बहुत बड़ी नियामत होती है। खासकर एक औरत के लिए खूबसूरती एक ऐसा उपहार माना जाता है जो उसके सफल और सुखी जीवन के लिए आवश्यक होता है। लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता कभी कभार यह खूबसूरती एक अभिशाप भी बन जाती है और उसका दुष्परिणाम औरत को ताउम्र झेलना पड़ता है। इतिहास ऐसी कई कहानियों का गवाह है जिसमें खूबसूरत औरत के लिए खून की नदियां तक बह गयीं और कई मर्तबा औरत की जिंदगी उसकी खूबसूरती के कारण तबाह भी हो गई।

प्रो. गीता दूबे

ऐसी ही एक खूबसूरत स्त्री थी आम्रपाली, जिसकी कहानी ने इतिहास में अपनी एक खास जगह बनाई है। आम्रपाली का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। एक ऐसी खूबसूरत स्त्री जिसे पाने के लिए उस युग में हर पुरुष लालायित था। आम्रपाली, अंबापाली या अम्बपालिका के नाम से ख्यात इस कुशल गायिका और नृत्यांगना का जन्म लगभग 600-500 ईसा पूर्व लिच्छवी गणराज्य वैशाली के वृज्जिसंघ में हुआ था।  एक अज्ञात कुल शीला बालिका जो आम के पेड़ के नीचे पड़ी हुई मिली और इसी कारण उसका नाम पड़ा, आम्रपाली। उसका पालन पोषण राज्य के‌ एक परिवार ने किया।  आम्रपाली जब युवा हुई तो उसकी सुंदरता के चर्चे राज्य भर में फैल गये और हर शक्तिशाली सामंत, व्यापारी या अधिकारी उसे अपनी पत्नी बनाने के लिए लालायित हो गया। आम्रपाली के पालक माता-पिता समझ गये थे कि आम्रपाली का विवाह जिस किसी से भी हुआ तो बाकी के लोग क्रोधित हो जाएंगे और वैशाली में खून की नदियां बहने लगेंगी।। यह समस्या इतनी बड़ी और‌ गंभीर थी कि इसके निदान के लिए  वैशाली गणराज्य की संसद‌ सभा बुलाई गई।  वैशाली राज्य की एकता और शांति के लिए  सब लोगों ने मिलकर सर्वसम्मति से यह तय किया कि आम्रपाली को नगरवधू बना दिया जाए। उसे फैसला सुनाया गया-“सब्बेसु हेतु” अर्थात सबकी हो जाओ और संसद के निर्णय को स्वीकार करने के अलावा आम्रपाली के सामने कोई और रास्ता नहीं था। अनिंद्य सौन्दर्य की स्वामिनी आम्रपाली किसी एक की नहीं बल्कि सामाजिक संपत्ति बन कर रह गई। यह बात और है कि उसने सौन्दर्य से सत्ता तक की यात्रा बखूबी तय की उसका कृपा कटाक्ष पाने के लिए बड़े -बड़े सामंत और अधिकारी आतुर रहते थे। अजातशत्रु उसका प्रेमी था। कुछ अन्य ग्रंथों के अनुसार अजातशत्रु के पिता बिम्बिसार को भी उसका प्रेमी माना जाता है‌ जिससे आम्रपाली को एक पुत्र भी था।

वैशाली

बुद्ध वैशाली आने पर आम्रपाली के अनुरोध पर उसके आम्रवन में ठहरते थे। कालांतर में आम्रपाली ने बुद्ध के प्रभाव में आकर बौद्ध धर्म अपना लिया और भिक्षुणी बन गई। हालांकि धम्मसंघ में पहले भिक्षुणियों को स्थान नहीं मिलता था, यहां तक कि यशोधरा को भी बुद्ध ने भिक्षुणी बनने की अनुमति नहीं दी थी, लेकिन आम्रपाली ने अपनी भक्ति, श्रद्धा और वैराग्य से बुद्ध को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने संघ के दरवाजे नारियों के लिए भी खोल दिए। बुद्ध स्वयं आदर से आम्रपाली को “आर्या अम्मा” कहकर संबोधित किया करते थे। 

जनपद कल्याणी से बौद्ध भिक्षुणी तक की यात्रा करनेवाली आम्रपाली को केन्द्र में रख कर, भारतीय साहित्य में बहुत सी रचनाएं लिखी गई  है। आचार्य चतुरसेन शास्त्री कृत “वैशाली की नगर वधू” तो अत्यंत चर्चित उपन्यास है। कवयित्री अनामिका ने भी इन पर कविता भी लिखी है। यह बात कम ही लोगों को मालूम है कि लिच्छवी राजनर्तकी आम्रपाली स्वयं एक कवयित्री थीं। “थेरीगाथा” में बहुत सी बौद्ध भिक्षुणियों की कविताएं संकलित हैं।

इनमें आम्रपाली की कविताओं को का स्थान अन्यतम माना जाता है। अपने ऐश्र्वर्य पूर्ण जीवन से विरक्त होकर रूपगर्विता नर्तकी जब भिक्षुणी बनकर जीवन के यथार्थ को को समझती है तो अपने जीवनानुभवों को वैराग्यसिक्त कविता में पिरोती है। उसमें उसका जीवन दर्शन ही नहीं उसके जीवन का‌ यथार्थ भी प्रतिभासित होता है। कवि ध्रुव गुप्त ने मूल पाली में रचित और अंग्रेजी में उपलब्ध इस कविता को  हिंदी में अनूदित किया है-

“कभी काले हुआ करते थे मेरे बाल

मधुमक्खियों के छत्ते जैसे

घने और घुंघराले

सुगंधित फूलों से भरी टोकरी की तरह

सोने के पिन से सजे और अलंकृत

उम्र के साथ इससे पशुओं के फर-सी

बासी गंध आ रही है।

एक कलाकार की कलाकृति जैसी

मेरी मोटी, घुमावदार और रसीली गर्दन

उम्र के साथ ढल चुकी है नीचे

मेरी दीप्तिमान, गहरी, भावपूर्ण आंखें

खो चुकी हैं अपनी चमक

पतली पर्वत-चोटी की तरह मेरी नाक

एक सूखी लंबी मिर्च जैसी है.अब

अद्वितीय थे कभी जो मेरे कान

उम्र के साथ सिलवटें लिए

नीचे ढल चुके हैं

मेरे श्वेत और चमकते दांत

पीले पड़कर टूट रहे हैं

मेरे उन्नत कुशाग्र स्तन हो चले हैं

किसी खाली पुराने झोले की तरह

लुंज-पुंज

गहरे घने जंगल में

कोयल की कूक की तरह

मेरी मीठी आवाज में

उम्र के साथ दरारें पड़ चुकी हैं

झुर्रियों से भरी मेरी काया

अब कमनीय नहीं रही

देह की सच्चाई बदल चुकी है

मायावी वस्तुओं के इस ढेर को

एक दिन तो भरभरा कर गिरना ही था

मुझे तलाश है उसकी

जो क्षणभंगुरता से परे है

मुझे उस सत्य तक ले चलो, तथागत !

सखियों, आम्रपाली ने तो अपने असाधारण व्यक्तित्व के बलबूते तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए भी इतिहास में अपनी जगह बना ली लेकिन उनका जीवन बताता है कि हमारे समाज में स्त्री कहीं और कभी सुरक्षित नहीं है। कभी वह पांच पतियों के बीच बांटी जाती रही तो कभी नगरवधू बनने को विवश होती रही है। स्त्री की नियति  में सबसे बड़ी भूमिका समाज की होती है और आज भी यह स्थिति कमोबेश बनी हुई है। आइए सखियों, हम दृढ़ निश्चय करें कि इस नियति को बदलने की पुरजोर कोशिश करेंगे।

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