‘इंसुलिन इंजेक्‍शन डे’ : बीडी-इंडिया द्वार इंसुलिन इंजेक्‍शन का जागरूकता अभियान

विशेषज्ञों का कहना है कि इंसुलिन इंजेक्‍शन की सही तकनीक मधुमेह के देखभाल के लिये अहम होती है
कोलकाता : अक्‍सर डायबिटीज की देखभाल के लिये इंसुलिन थैरेपी एक अहम हिस्‍सा होती है। ग्‍लाइसेमिक के प्रभावी नियंत्रण के लिये, टाइप 2 डायबिटीज में आखिरकार इंसुलिन थैरेपी की जरूरत होती है। इसमें इंजेक्‍शन थैरेपी अभी भी उतनी ही अहम है। इंसुलिन इंजेक्‍शन की सुरक्षित आदतों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिये, बीडी-इंडिया द्वारा एजुकेशनल कैम्‍पेन का आयोजन किया गया। यह अभियान प्रमुख एंडोक्राइनोलॉजिस्‍ट के साथ ‘इंसुलिन इंजेक्‍शन डे’ के दिन कई शहरों में आयोजित किया गया। ‘इंसुलिन इंजेक्‍शन डे’ की शुरुआत 11 जनवरी 1922 को इंसुलिन के सबसे पहले सफलतापूर्वक इस्‍तेमाल की 98वीं वर्षगांठ के अवसर पर, कनाडा के ‘टोरंटो जनरल हॉस्पिटल’ में मनाया गया।
कांफ्रेंस में, कोलकाता डायबिटीज एंड एंडोक्राइन फाउंडेशन के प्रेसिडेंट और एंडोक्राइन सोसायटी ऑफ इंडिया के पूर्व प्रेसिडेंट प्रोफेसर देबाशीष माजी ने कहा, ‘’इंसुलिन इंजेक्‍शन थैरेपी की सफलता और इसका पालन, कुछ कारणों पर निर्भर करता है, जैसे काउंसलिंग के साथ सहजता से इंसुलिन लगाने की प्रक्रिया के बारे में जानना ताकि सुईयों का डर कम हो सके, इंसुलिन रीजिम, सुई की लंबाई और इसे लगाने का तरीका। यह याद रखना जरूरी है कि इंसुलिन ट्रीटमेंट ब्‍लड ग्‍लूकोज के नियंत्रण के लिये जरूरी होता है और इंजेक्‍शन लगाने की कुशलता में किसी प्रकार की कमी से डोज की मात्रा और इसका प्रभाव प्रभावित हो सकता है। किस तरह और कहां आपको इंजेक्‍शन लगाना है उतना ही महत्‍वपूर्ण है जितना कि आपको किसके साथ इंजेक्‍शन लेना है उसके बारे में जानना। सुईयों को दोबारा इस्‍तेमाल ना करने की सलाह दी जाती है क्‍योंकि भोथी सुईयां टिशूज को क्षति पहुंचा सकती हैं और परेशानियां खड़ी कर सकती हैं। मुझे इस बात की खुशी है कि बीडी ‘इंसुलिन इंजेक्‍शन डे’ के मौके पर जागरूकता अभियान में सहयोग दे रहा है। इससे इंसुलिन इंजेक्‍शन को सही तरीके से लेने की प्रेरणा मिलेगी और मरीजों को बेहतर जीवन जीने में मदद मिलेगी।‘’
प्रोफेसर निलांजन सेनगुप्‍ता, प्रोफेसर एवं हेड, एंडोक्राइनोलॉजी डिपार्टमेंट-एनआरएस, मेडिकल कॉलेज, कोलकाता और वाइस प्रेसिडेंट, डायबेटिक एसोसिएशन ऑफ इंडिया (डीएआइ), पश्चिम बंगाल ने कहा, ‘’ग्‍लाइसेमिक पर सही तरीके से नियंत्रण करने के लिये इंजेक्‍शन की सही तकनीक बहुत ही जरूरी होती है और इससे इंसुलिन पर निर्भर डायबिटीज मरीजों को परेशानियों से बचाव होता है। यदि इंजेक्‍शन डिवाइस जैसे सुई को गलत तरीके से या फिर दोबारा इस्‍तेमाल किया जाये तो इसकी वजह से दर्द के साथ ब्‍लीडिंग और जख्‍म हो सकते हैं और सुई का टूटना अन्‍य परेशानी खड़ी कर सकती है। बीडी के ‘इंसुलिन इंजेक्‍शन डे’ अभियान के माध्‍यम से, इंजेक्‍शन की उचित तकनीक सीखने के लिये जागरूकता लाना भी उतना ही महत्‍पूर्ण होता है, जिसमें इंजेक्‍शन लगाने की जगह और साइट रोटेशन शामिल है।‘’
विशेषज्ञ इस बात पर भी जोर देते हैं कि इंसुलिन इंजेक्‍शन तकनीक के गलत तरीके की वजह से लिपोहाइपेट्रोफी हो सकती है, जोआमतौर पर मरीज के इंजेक्‍शन लगाने वाली जगह पर त्‍वचा के अंदर रबर जैसी सूजन होती है। लिपोहाइपेट्रोफी की वजह से ग्‍लाइसेमिक का सही रूप में नियंत्रण ना हो पाना, हाइपोग्‍लाइसेमिया और ग्‍लाइसेमिक वेरियेबिलिटी की समस्‍या हो सकती है।
एफआईटीटीईआर इंसुलिन इंजेक्‍शन के कुछ सुझाव
साइट रोटेशन
मरीज को शुरुआत से ही रोटेशन स्‍कीम का पालन करने का एक आसान तरीका बताना चाहिये
सुई/सिरींज की स्‍वच्‍छता
सुईयों का दोबारा इस्‍तेमाल ना करें। हर इंजेक्‍शन के लिये एक नई सुई का प्रयोग करें।
लिपोहाइपेट्रोफी – हर बार डॉक्‍टर के पास जाने पर इंजेक्‍शन लगाने वाली जगह की जांच की जानी चाहिये। मरीजों को भी इंजेक्‍शन वाली जगह को खुद देखना सिखाना चाहिये और साथ ही किस तरह लिपोहाइपेट्रोफी का पता लगाया जाता है उसकी ट्रेनिंग दी जानी चाहिये।
इंजेक्‍शन की जगह
इंजेक्‍शन साफ जगह पर और साफ हाथों से दिया जाना चाहिये।
इंजेक्‍शन लगाने से पहले उस जगह पर टटोल कर लिपोहाइपेट्रोफी और जख्‍म, खरोंच या फफोलों की जांच कर लेनी चाहिये।
फोरम फॉर इंजेक्‍शन तकनीक एंड थैरेपी एक्‍सपर्ट रिकंमडेशंस (एफआईटीटीईआर) इंडिया द्वारा बताये गये उपाय इस प्रकार हैं: डी-इंडिया के विषय में :बीडी दुनिया में सबसे बड़ी ग्‍लोबल मेडिकल टेक्‍नोलॉजी कंपिनयों में से एक है और यह चिकित्‍सकीय खोजों, परीक्षण और देखभाल को बेहतर बनाकर स्‍वास्‍थ्‍य की दुनिया को उन्‍नत बना रही है। बीडी ग्राहकों को परिणाम को बेहतर बनाने, खर्च को कम करने, क्षमता को बढ़ाने, सुरक्षा को बेहतर बनाने में मदद की है और साथ ही हेल्‍थ केयर तक पहुंच को विस्‍तार देने में।

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