ऐ वर्ष 23

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डॉ. वसुन्धरा मिश्र

ऐ वर्ष 23
तुझमें कुछ ख़ास नहीं
ये तो पिटारा है
पिछले हिसाब का
वही सुबह वही दिन वही रात
फिर वही रोज़ के काम

ऐ वर्ष 23
मत कर गुमान
ये तो बदले कैलंडर में
फिर से दोहराने के दिन हैं

ऐ वर्ष 23
मत रह अंजान
सोमवार हो या रविवार
आदमी के अपने पैमाने हैं
तुम सिर्फ नंबर हो

ऐ वर्ष 23
कुछ लोग पैदा होते हैं
कुछ अपनी उम्र गिनते हैं
कुछ मरते हैं
यूँ ही तुम भी आगे बढ़ते हो

ऐ वर्ष 23
लोग खुशियाँ मनाते हैं
गमों से दूर
एक रात को गुलज़ार करते हैं
तुम इस साल की तरह फिर आना ।।

 

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