कथाकार कपिल आर्य की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा 

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कोलकाता। सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन की ओर से कोलकाता के दिवंगत कथाकार कपिल आर्य की स्मृति में भारतीय भाषा परिषद में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर डॉ आशुतोष ने उनके सहज व्यक्तित्व और लेखन पर विस्तार से चर्चा की। कपिल जी के व्यक्तित्व पर एक ओर आर्यसमाज का और दूसरी ओर प्रगतिशील विचारों का प्रभाव पड़ा। प्रियंकर पालीवाल ने उनके जीवन संघर्ष के विविध पहलुओं पर चर्चा की। सामान्य जीवन का तानाबाना उनके लेखन में दिखता है। युवा कथाकार रवींद्र आरोही ने कहा कपिल जी हमेशा नये लेखकों को प्रोत्साहित करते थे।नगेंद्र कुमार ने कहा वे तमाम तकलीफों के बीच कभी अपनी पीड़ा साझा नहीं करते थे। मैं उनकी अप्रकाशित रचनाओं का संकलन करना चाहता हूँ। जीवन सिंह ने कहा कि मैं उनसे अक्सर प्रगतिशील लेखक संघ के आयोजनों में मिलता था।वे बराबर बांग्ला और हिंदी के बीच अनुवाद के लिए कहते थे। डॉ ब्रजमोहन सिंह ने कहा जब मैं कोलकाता आया तब कपिल जी ने मुझे प्रगतिशील लेखक संघ से जोड़ने का आग्रह किया। उनका भावबोध अपने समय की वैचारिकी से बनता है। वे जातिविहीनता की भी बात करते थे। वरिष्ठ लेखक सेराज खान बातिश ने कहा कि हमारे जैसे नये लेखकों को मंच तक लाते थे।प्रगतिशील लेखक संघ के भीतर की खींचतान के बीच भी वे संगठन के प्रति समर्पित रहे। कवि राज्यवर्धन ने कहा कि मैं जमालपुर प्रगतिशील लेखक संघ से आया था। उनसे जुड़ाव का एक बड़ा कारण कपिल जी का प्रगतिशील लेखक संघ का समर्पित कार्यकर्ता होना था। वे हर वर्ष नियमित कार्यक्रम आयोजित करते थे। रवि प्रताप सिंह ने कहा कि कपिल जी सहज व्यक्तित्व के धनी थे।अपने जीवन के अंतिम समय में कविताएं लिख रहे थे। मृत्युंजय ने कहा कि आज वे भले हमारे बीच नहीं हैं परंतु अपनी रचनाओं के लिए वे हमेशा हमारे बीच रहेंगे। हरेराम कात्यायन ने कहा कपिल जी बहुत जल्दी घुलमिल जाते थे।वे वैचारिक असहमतियों का सम्मान करते थे। रंगकर्मी महेश जायसवाल ने कहा कि कपिल जी विश्वास से भरे लेखक थे ।वे हमारे भीतर उम्मीद भरते थे। प्रो.विमलेश्वर द्विवेदी ने कहा कि कपिल की ख्याति तब हुई जब कमलेश्वर ने सारिका में उनकी कहानी छापी। वे बड़ी निडरतापूर्वक लिखते थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शंभुनाथ ने कहा कपिल जी से मेरा लगभग पांच दशकों का संबंध रहा है। वे प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े होने के बावजूद वे पार्टी लाइन से अलग थे। वे बांदा में प्रगतिशील लेखक संघ के कमजोर होने के पर वे कमजोर संगठन को छोड़ते नहीं है।उनमें एक वैचारिक दृढ़ता थी। कुसुम खेमानी, उषा किरण आर्य,विनय कुमार,अल्पना नायक,गीता दूबे,अरुण माहेश्वरी और अलका सरावगी ने अपना शोक संवाद भेजकर श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर श्रीप्रकाश गुप्ता,नारायण दास, सपना कुमारी, चंदन भगत ,विनोद ओझा ,संजय जायसवाल उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन सुरेश शॉ ने किया।

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