कश्मीर से कन्याकुमारी की पसन्द अलवर का कलाकंद

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी भाता था इसका स्वाद
अलवर : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जब भी सड़क मार्ग से जयपुर आते या जाते थे, तो बीच में एक जगह उनका काफिला जरूर रुकता था। ये जगह होती थी अलवर और रुकने की वजह होती दूध से बनी खास मिठाई कलाकंद। इस मिठाई को पसंद करने वालों की सूची काफी लंबी है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत के कोने-कोने तक इसका स्वाद पहुंच चुका है। मिल्क केक के नाम से प्रसिद्ध अलवर के कलाकंद का जायका आज कई सरहदें पार कर चुका है। राजस्थानी जायका की इस कड़ी में आपको ले चलते हैं कलाकंद के मीठे सफर पर।
कलाकंद बनने की कहानी काफी रोचक है। अभिषेक तनेजा बताते हैं आजादी से पहले पाकिस्तान में बाबा ठाकुर दास के हाथ से दूध फट गया था। तब बतौर हलवाई उन्होंने एक प्रयोग किया। दूध को फेंकने की बजाय इसमें चीनी मिलाकर ओटाने लगे। दूध से पानी खत्म होने के बाद इसे ठंडा करने के लिए खोमचे में रख दिया। जब इसे चखकर देखा तो स्वाद बेहतरीन लगा। ग्राहकों ने भी इसे काफी पसंद किया। आजादी के बाद बाबा ठाकुरदास का परिवार अलवर आकर बस गया। यहां छोटी सी दुकान खोली और कलाकंद बनाना शुरू किया। अभिषेक बाबा ठाकुरदास की तीसरी पीढ़ी से हैं। अलवर में आज उनके 5 स्टॉल हैं, यहां लगी भट्टियों में दिन रात कलाकंद तैयार होता है।


ठाकुरदास के हाथों बने कलाकंद का स्वाद लोगों की जुबान पर चढ़ने लगा। धीरे-धीरे स्थानीय हलवाईयों ने भी इसे बनाने का तरीका सीखा। आज पूरे अलवर में करीब ढाई हजार से ज्यादा दुकानों पर कलाकंद बनता है। कारोबारी बताते हैं कि अलवर शहर और गांवों में बनने वाले करीब 15 हजार किलो कलाकंद की खपत रोज होती है। अब तो अलवर का कलाकंद देश की सीमाओं के बाहर भी पहुंच चुका है। यहां आने वाले सैलानी तो इसे अपने साथ ले जाते ही हैं, लेकिन बाबा ठाकुरदास के नाम से इसका एक आउटलेट दुबई में भी खुलने जा रहा है।
ऐसे तैयार होता है कलाकंद
करीब 4 किलो दूध में 1 किलो मिल्क केक तैयार होता है। दूध को गर्म कर उसका छेना ( फाड़ा ) तैयार किया जाता है। फिर उसमें स्वाद के अनुसार चीनी मिलाई जाती है। केसर डालकर सांचे में जमाया जाता है। जरूरत के अनुसार ड्राई फ्रूट काम लेते हैं। ज्यादा भुना हुआ और कम भुना हुआ। दोनों का स्वाद अलग होता है।
सालाना कारोबार 200 करोड़ से ज्यादा
बाबा ठाकुर दास के पोते अभिषेक तनेजा ने बताया कि 1954 में मिल्क केक 2 रुपये प्रति किलो बिकता था। आज इसके भाव 400 रुपये किलो है। अभिषेक बताते हैं कि अकेले अलवर में कलाकंद का सालाना कारोबार 200 करोड़ से भी ज्यादा है। अगर जिले में ढाई हजार कारोबारियों को जोड़ा जाए तो इस काम में 10 हजार से ज्यादा लोग जुटे हुए हैं। अकेले बाबा ठाकुरदास की फैक्ट्री में करीब 1 हजार किलो मिल्क केक रोज तैयार होता है। फेस्टिवल सीजन में प्रोडक्शन दोगुना हो जाता है।
दूध पहुँचाने वालों की भी तीसरी पीढ़ी
खास बात ये भी है कि जो परिवार बाबा ठाकुरदास को दूध सप्लाई करता था, उसी परिवार की तीसरी पीढ़ी आज भी उन्हें दूध की आपूर्ति कर रहे हैं। मिल्क केक बनाने वाले कारोबारियों तक दूध गांवों से ही पहुंचता है।अलवर की मिल्क केक का स्वाद यहां आने वाले हर पर्यटक को अपनी ओर खींच लाता है।

(साभार – दैनिक भास्कर)

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