केदारनाथ मंदिर के पूरे गर्भगृह में चढ़ाई गई सोने की परत

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महाराष्ट्र के एक शख्स ने दान में दिया है पूरा सोना

देहरादून । उत्तराखंड में प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर के पवित्र गर्भगृह पर सोने की परत चढ़ाने का काम बुधवार को पूरा हो गया। यह काम मंदिर के शीतकाल के लिए छह माह तक बंद किए जाने से एक दिन पहले पूरा हो गया। केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह की दीवारों और छतों पर सोने की परतें चढायी गई है। गर्भगृह में सोने की परतें चढाने में करीब तीन दिन का समय लगा।
धनतेरस के अवसर पर शुरू हुए काम में अलग-अलग माप की 560-565 सोने की परतों का इस्तेमाल हुआ। ऐसे में गर्भगृह की दीवारें, छत, छत्र, शिवलिंग की चौखट, सब कुछ स्वर्णमंडित हो गया है। इससे पहले, केदारनाथ मंदिर में गर्भगृह की दीवारों पर चांदी परतें लगी हुई थीं। ​यह काम 2017 में किया गया था और इसमें 230 किलो चांदी का इस्तेमाल हुआ था।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चांदी की जगह सोने की परतें लगाने के लिए पूरा सोना महाराष्ट्र के एक परिवार की ओर से दान किया गया है। इस दानकर्ता के नाम का खुलासा नहीं किया गया है। समिति ने उत्तराखंड सरकार की अनुमति लेने के बाद सोने की परत लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।
इसके बाद गर्भगृह का आवश्यक माप इत्यादि लेकर उसके अनुरूप दिल्ली में सोने की परतें तैयार की गयीं और उन्हें ट्रक में भरकर भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच केदारनाथ के आधारशिविर गौरीकुंड तक लाया गया। माप लेने आदि की प्रक्रिया करीब डेढ़ महीने पहले पूरी की गई थी।
18 खच्चरों पर लाद कर सोने की परतें लाई गई
श्री बदरीनाथ – केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि गौरीकुंड से 18 खच्चरों पर लाद कर सोने की परतों को केदारनाथ पहुंचाया गया और मंदिर के गर्भगृह में लगाया गया। समिति के अध्यक्ष ने बताया कि गर्भगृह में सोने की परतें चढ़ाने के मामले में धार्मिक मान्यताओं, परंपराओं और पुरातत्व विशेषज्ञों की सलाह का पूरा पालन किया गया।
उन्होंने बताया कि गर्भगृह में सोने की परत चढाने से पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और रूड़की स्थित केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) के विशेषज्ञों के दल ने परियोजना का अध्ययन किया । उन्होंने कहा कि तीन दिन तक चले कार्य के दौरान एएसआई के दो अधिकारी मौके पर लगातार मौजूद रहे ।
शुरुआत में जब सोने की परत लगाने की पूरी प्रक्रिया शुरू हुई थी तो कुछ पुजारियों ने इस कदम का विरोध करते हुए कहा था कि यह परंपरा के खिलाफ है और सदियों पुरानी संरचना के साथ छेड़छाड़ की गई है।

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