कोलकाता के ट्रैफिक पुलिसकर्मी को ब्रिटिश संसद में मिलेगा ‘द प्राइड ऑफ बंगाल’ अवार्ड

अरुप मुखर्जी पुरुलिया में चलाते हैं शबर बच्चों के लिए निःशुल्क आवासीय स्कूल

कोलकाता, विशाल श्रेष्ठ। कोलकाता पुलिस के एक साधारण से ट्रैफिक पुलिसकर्मी को उनके असाधारण कार्यों के लिए ब्रिटिश संसद में ‘द प्राइड आफ बंगाल अवार्ड्स’ से सम्मानित किया जाएगा। ये हैं 47 साल के अरूप कुमार मुखर्जी। अरूप कोलकाता पुलिस के साउथ ट्रैफिक गार्ड में कांस्टेबल के पद पर हैं। अरूप वर्षों से बंगाल के पुरुलिया जिले के सबसे पिछड़े आदिवासी समुदायों में शामिल ‘शबर’ के सामाजिक उत्थान में जुटे हुए हैं। पुरुलिया में सब उन्हें ‘शबर पिता’ के नाम से जानते हैं। अरूप को आगामी 20 जुलाई को ‘हाउस आफ कामंस’ में सामाजिक कार्य एवं समुदाय समर्थन’ श्रेणी के तहत इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा और पुरुलिया के गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों को ब्रिटिश संसद में मान्यता प्रदान की जाएगी। ब्रिटिश संस्था एडवाटेक फाउंडेशन की तरफ से यह पुरस्कार दिया जाता है।
अरूप पुरुलिया के पुंचा थाना इलाके के पारुई गांव में शबर समुदाय के बच्चों के लिए आवासीय स्कूल चलाते हैं, जहां उनके रहने से लेकर खाने-पीने तक की सारी व्यवस्था निश्शुल्क है। अरूप ने इस स्कूल की शुरुआत 2011 में 15 बच्चों के साथ की थी। वर्तमान में स्कूल में 125 बच्चे पढ़ते हैं।
न्यूजीलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात की संस्थाएं भी कर चुकी हैं सम्मानित
इससे पहले न्यूजीलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात की संस्थाओं की ओर से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। न्यूजीलैंड की सामाजिक संस्था की ओर से अरूप को प्रेरणादायी पुलिसकर्मी की संज्ञा देते हुए उनका नाम ‘मार्वलस बुक आफ रिकार्ड्स’ में दर्ज किया गया है। एक अमेरिकी संस्था की ओर से उन्हें सम्मानित करते हुए उनका नाम ‘हाई रेंज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड्स’ में शामिल किया गया है। इसी तरह संयुक्त अरब अमीरात की सामाजिक संस्था ने उन्हें ‘ब्रेवो इंटरनेशनल बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड्स’ में जगह दी है।
अरूप ने बताया-‘अंतरराष्ट्रीय सामाजिक संस्थाओं से मिल रहे सम्मान से मैं अभिभूत हूं। पुरस्कार व सम्मान से निश्चित रूप से उत्साह बढ़ता है लेकिन मैं पुरस्कार या सम्मान की चाह में काम नहीं करता बल्कि ऐसा करके मुझे आंतरिक रुप से काफी खुशी मिलती है।’ अरूप ने लाकडाउन के समय फंड जुटाकर शबर समुदाय के चार हजार परिवारों के खाने-पीने की भी व्यवस्था की थी। अरूप मूल रूप से पारुई गांव के ही रहने वाले हैं। उनके परिवार में माता-पिता, चाचा-चाची, पत्नी और एक बेटा-बेटी हैं। अरूप 2011 से कोलकाता ट्रैफिक पुलिस में कार्यरत हैं।

(साभार – दैनिक जागरण)

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