कोलकाता पुस्तक मेला २०२०

सुनीता सिंह
  •  सुनीता सिंह

आज मन बहुत खुश था ,बड़े मुश्किल से विद्यालय से आधी छुट्टी मिली थी..बच्चों को बताया तो उन्होंने जल्दी जाने का कारण पूछा मैंने उन्हें बताया कि मैं आज पुस्तक मेला जा रही हूँ. फिर मैंने उनसे पूछा कि कौन कौन अब तक पुस्तक मेला गया है तो मुश्किल से दो चार हाँथ उठे”,बस! क्यों आप लोगो को कहानी की किताबें पढ़ना अच्छा नहीं लगता?”कुछएक हाँथ और उठे और बताया कि उनके पास काफी कहानी की किताबें है पर ज्यादा तर अंग्रेजी में..हितोपदेश ,पंचतंत्र की कहानियों का अंग्रेजी में अनुवाद भी है..परन्तु वे पुस्तक मेले में कभी नहीं गए.
मन कुछ खिन्न सा हुआ,उनसे विदा ले अपना सामान समेटा और निकल पड़ी ..
सप्ताह व्यापी पुस्तक मेला अपने अंतिम चरण में था..जब पुस्तक मेले में पहुंची तब तक गोधूलि बेला की पूर्व सूचना हो चुकी थी.हाँथ में काफी कम समय था मुश्किल से विशाल मेले का एक कोना ही खंगाल पाना ही संभव था.इतने सारे स्टालों के मध्य हिंदी के स्टाल खोज पाना डेढ़ी खीर ही लग रहा था.
सहायता केंद्र से मेले का नक्शा मिला जो कि हमेशा की तरह मददगार साबित हुआ..हमने हिंदी स्टाल चिन्हित किये और बढ़ चले गन्तव्य की और.
मेले में प्रवेश करते ही एक अद्भुत सम्मोहन मन को घेरे में ले लेता है कि आप हजारों, लाखों पुस्तकों के वलय में है..कोटि कोटि शब्द सम्वेदनाएँ अक्षरो के रूप में सूंदर सुघड़ पन्नों पे अंकित हो ,आपके स्पर्श के प्रतीक्षा में है.बड़े- छोटे विभिन्न भाषाओं के राष्ट्रीय ,अंतरास्ट्रीय पुस्तकों के स्टाल ,उनमे करीने से सजी पुस्तकें रंगीन रौशनी के झिलमिलाहट में सम्मोहक आमंत्रण प्रस्तुत कर रहे थे।
आगे बढ़ते हुए कुछ अंग्रेजी एवं बंगला के स्टालों का अवलोकन हुआ कुछेक उपन्यास की खरीदारी भी हुई..
हम बारी बारी दो तीन स्टालों पर गए कुछ हिंदी के उपन्यास एवं कविताओं संग्रह का संग्रह किया जिनमें केदारनाथ सिंह जी की पचास कविताओं का संग्रह,मैं जो हूँ ,जान एलिया हूँ, तथा रश्मिरथी उल्लेखनीय है,जिनकी मुझे अरसे से चाहत थी परंतु हरिवंश जी की ‘नीड़ का निर्माण फिर’ नहीं मिली.
अभी हम दूसरे स्टाल की तरफ बढ़ ही रहें थे कि वाणी प्रकाशन के स्टाल पर पत्रकार कवियत्री सुषमा जी मिली जो शुभ सृजन नेटवर्क के प्रचार प्रसार कार्यक्रम के अंतर्गत अनवर जी की रचना ‘रियल गर्लफ्रेंड ‘के लोकार्पण का संचालन कर रही थी.इतने व्यस्तता के मध्य वे काफी गर्म जोशी से मिली ,एवम अनवर जी से परिचय करवाया..पुस्तक मेले में सुषमा जी से मिलना अपने आप में एक सुखद अनुभव था,फिर मिलने के वादे के साथ मैं हिंदी के दूसरे स्टाल की तरफ बढ़ी.वहाँ मुझे काफी सारा मनचाहा, मनपसंद साहित्य संग्रह मिला.
वक्त काफी बीत चुका था.मेला अपने चरम पर था कहीं कवि मंच पर कविता पाठ कर रहे थे तो कहीं मधुर बाउल संगीत की स्वर लहरियाँ लोगो को मदमस्त कर रहीं थी.
किताबों के सुखद बोझ से झोला भारी हो चुका था और जेब हल्की.. बड़े बेमन से खुद को समझाया कि वक़्त कहाँ मिलेगा पढ़ने का,इतनी खत्म कर लो तो फिर ले लेना.इत्यादि ।

यह वीडियो शुभजिता युवा प्रतिभा सम्मान की पहली प्रतिभागी दीपा ओझा ने बनाया है। यह शुभ सृजन नेटवर्क की युवा प्रतिभा सम्मान योजना के तहत प्रोत्साहन योजना का हिस्सा है।

हल्की बूंदाबांदी के बीच वापस लौटते हुए मन मे कुछ प्रश्न थे कि पुस्तक मेले में हर बार की तरह हिंदी स्टालों पर भीड़ मुझे कम क्यों लगी..हिंदी ..पुस्तक मेले में सकुचाई सी कोने में खड़ी क्यों मिली.यह मेरा नितांत व्यक्तिगत सोच भी हो सकता है.. परन्तु सुबह का प्रश्न अब भी ज्वलन्त था कि बच्चों में हिंदी साहित्य के प्रति जागरूकता का अभाव क्यों है..बाल साहित्य का यथेष्ठ भंडार होते हुए भी बच्चे मंहगे अंग्रेजी साहित्य से ही परिचित क्यों है..उन्हें क्यों नही समझाया जा रहा है कि पुस्तक उनकी सबसे उपयोगी मित्र है.पुस्तक मेला से उनकी अनभिज्ञता क्यों..कौन दोषी है ..शिक्षक, अभिभावक, या समय और देशकाल.महंगे सुन्दर पेपर बैक में उपलब्ध अंग्रेजी साहित्य कहीं हमारा स्टेटस सिंबल तो नहीं बन चुका..बहुत जरूरी है कि हमारी भावी पीढ़ी साहित्य से प्रेम करना सीखें और हम उन्हें साहित्य से प्रेम करना सिखा सकें..अगले पुस्तक मेले तक तस्वीर कुछ तो बदलनी चाहिए..

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