गुरु पूर्णिमा पर मेरी कलम से

निखिता पांडेय

आज गुरु पूर्णिमा के विशेष अवसर पर सभी गुरुजनों को धन्यवाद ज्ञापित करती हूं कि मुझे इस काबिल बनाया कि हर काम को सही ढ़ंग से प्रस्तुत कर पाऊं। ‘गुरु’ शब्द अपने आप में सम्पूर्ण जगत है,इसे किसी विशेष सम्मान या पद की आवश्यकता नहीं,बल्कि इन्हें शिष्यों की चाह होती है। ये अपना सर्वस्व ज्ञान,मेहनत,सीख सब कुछ एकनिष्ठ भाव से अपने शिष्यों को समर्पित कर देते हैं। उनके लिये सदैव तत्पर रहते हैं। जिस प्रकार एक पेड़ को सींचने में पूरा जीवन न्योंछावर हो जाता है,उसी प्रकार हमारे गुरु हमारा पोषण करते हैं।

मेरी पहली गुरु मेरी ‘मां’ है,जब संतान उनकी गर्भ में रहता है,तभी से वह सीखना प्रारंभ कर देता है और पैदा होने के बाद सबसे पहला शब्द ‘मां’ ही निकलता है। एक मां के लिये इससे बड़ा सुखदायी पल और कुछ नहीं हो सकता और एक गुरु की यह सबसे मीठी दक्षिणा होती है। पिता रूपी गुरु के बारे में कहने पर शब्द कम पड़ जायेंगे,वे कष्टों का घूंट पीकर हमें बड़ा करते हैं। मेरे जीवन को बढ़ाने में इनकी सर्वश्रेष्ठ भूमिका है। भावी जीवन की शिक्षा-दीक्षा शिक्षक करते हैं और यही हमारे जीवन की नैया पार लगाते हैं। मेरे जीवन में खिचड़ी,आंगनबाड़ी स्कूल से लेकर काॅलेज समय तक के सभी गुरुजनों का विशेष महत्व है। चाहे वह छोटे में ड्रेस पर पानी गिरा देने से लेकर गणित की फटकार काॅलेज में पानी पूछकर पीने तक की यात्रा में इन्हीं की छाया रही है। यही है जिनके कारण कहीं भी समय से पहले पहुंचना और अनुशासन में रहना सीख पायी हूं। अपने गुरु के कारण ही सबकी दुलारी,बकबकिया और परेशान करने वाली बनी हूं। आज मैं जो भी हूं,जितना भी जानती हूं सब कुछ मेरे माता-पिता और मेरे गुरुजनों के आशीष के कारण संभव है। सिर्फ आज ही इनका गुणगान करूं यह मैं नहीं…किसी भी चीज़ को मनाने का एक दिन नहीं होना चाहिये….बल्कि हर पल खुद को खुशनसीब मानना चाहिये कि जो भी है इनकी बदौलत है,ये न हो तो सब असंभव है। मेरा अनुभव और मेरी धारणा यही है। संत कबीर की भक्त हूं,तो चंद पद उनका यह रहा –

“यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।

शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।”

गुरू की महिमा बताना तो सूरज को दीपक दिखाने के समान है। गुरु की कृपा हम सब को प्राप्त हो।ये रही गुरु के प्रति मेरे मन की बात।

 

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