जागृति

प्रो. प्रेम शर्मा

अपराधी दंडित हों-ठीक है,
भ्रष्टाचारी प्रताड़ित हों-मान्य है,
दुराचारी अपमानित हों-स्वीकार है,
पापी का संहार हो-प्रशंसनीय है।

निरपराधी को अलग-थलग करना
पाप है,
सच को सच न स्वीकार करना
दुराचार है,
विध्वंशक लोकतंत्र का विरोध न करना-अनाचार है,
पापियों को दंडित न करना
अधर्म है।

सच्चा कोई मरे नहीं
शर्मिंदगी से,
निरपराधी घुट घुट कर जिए नहीं
आत्मग्लानि से
सदाचारी चरित्र बदले नहीं
विद्रोह में,
धर्मनिष्ठ तिल तिल मरे नहीं
अराजकता में।

जागृति का एक तांडव होना चाहिए
युग परिवर्तन का संकल्प होना चाहिए
आडंबर रहित समाज होना चाहिए
नव आशा उपहार सबको मिलना चाहिए।।

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