जानिए महालया का महत्व

दुर्गा पूजा को लेकर तैयारियां अब अपने अंतिम चरण में है। महालया के साथ ही दुर्गा पूजा की शुरुआत हो जाएगी। दुर्गा पूजा के पहले महालया का अपना एक खास महत्व है। बंगाल में इस दिन को लोग खास तरीके से मनाते हैं। इसके साथ ही जिन राज्यों में दुर्गा पूजा धूमधाम से मनाया जाता है उन राज्यों में भी महालया का विशेष महत्व है। लोग महालया की साल भर लोग प्रतीक्षा करते हैं। हिंदू धर्म में महालया का अपना एक अलग महत्व होता है। यह अमावस्या के आखिरी दिन मनाया जाता है जो पितृपक्ष का भी अंतिम दिन होता है।

क्या है महालया

हिंदू शास्त्रों के अनुसार महालया और पितृ पक्ष अमावस्या एक ही दिन मनाया जाता है। इस बार यह 6 अक्टूबर को होगा। महालया के दिन ही मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखें तैयार करता है। इसके बाद से मां दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप दिया जाता है। दुर्गा पूजा में मां दुर्गा की प्रतिमा का विशेष महत्व है और यह पंडालों की शोभा बढ़ाती हैं। दुर्गा पूजा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। इस बार यह 7 अक्टूबर से शुरू हो रहा है जबकि मां दुर्गा की विशेष पूजा 11 अक्टूबर से शुरू होकर 15 अक्टूबर दशमी तक चलती रहेगी।

ऐतिहासिक महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन अत्याचारी राक्षस महिषासुर का संहार करने के लिए भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान महेश ने मां दुर्गा के रूप में एक शक्ति सृजित किया था। महिषासुर को वरदान था कि कोई भी देवता या मनुष्य उसका वध नहीं कर सकता है। ऐसा वरदान पाकर महिषासुर राक्षसों का राजा तो बन ही गया था साथ ही साथ उसे घमंड भी हो गया था और वह लगातार देवताओं पर ही आक्रमण करता रहता था। एक बार देवताओं से युद्ध हुआ और वे हार गए। इसके बाद देवलोक में महिषासुर का राज हो गया। तब सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ-साथ आदिशक्ति की आराधना की थी। इसी दौरान देवताओं के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली। उसने मां दुर्गा का स्वरूप धारण किया। 9 दिन तक चले भीषण युद्ध के बाद मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। महालया को मां दुर्गा के धरती पर आगमन का दिन माना जाता है। मां दुर्गा शक्ति की देवी है।

बंगाल में है खास महत्व

महालया का महत्व बंगाल में कुछ खास ही है। इसे धूमधाम से मनाया जाता है। मां दुर्गा में आस्था रखने वाले लोग इस दिन का लगातार इंतजार करते हैं और महालय के साथ ही दुर्गा पूजा की शुरुआत करते हैं। महालया नवरात्रि और दुर्गा पूजा की शुरुआत का प्रतीक है। कहा जाता है कि महालया के दिन ही सबसे पहले पितरों को विदाई दी जाती है। इसके बाद मां दुर्गा कैलाश पर्वत से सीधे धरती पर आती हैं और यहां 9 दिन तक वास करती है तथा अपनी कृपा के अमृत बरसाती हैं। महालया के दिन मां दुर्गा की आंखों को तैयार किया जाता है। मूर्तिकार इस में रंग भरते हैं। इससे पहले वह मां दुर्गा की विशेष पूजा करते हैं।

 

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