दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला में है भगवान शिव नटराज की प्रतिमा

आज देशभर में महाशिवरात्रि के मौके पर भगवान शिव की आराधना की जा रही है। शिव को सृष्टि का रचयिता माना गया है। हिंदू पुराणों में भगवान शिव की आराधना तो की जाती है। वहीं सात समंदर पार एक देश ऐसा भी है जहां पर शिव के तांडव स्‍वरूप यानी नटराज की मूर्ति लगी हुई है। नटराज की यह मूर्ति कहीं और नहीं बल्कि स्विट्जरलैंड के जिनेवा स्थित यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्‍यूक्लियर रिसर्च जिसे सर्न के नाम से जानते हैं, वहां पर स्‍थापित है। शिव को ऊर्जा का स्‍त्रोत माना गया है और दुनिया की सबसे बड़ी फिजिक्‍स लैब में स्‍थापित नटराज भी इस बात का परिभाषित करते हैं।

18 जून 2004 को हुई थी स्‍थापना – सर्न कैंपस में लगी इस मूर्ति को आस्था और विज्ञान का मेल माना जाता है। सर्न परिसर में लगी भगवान नटराज की यह मूर्ति दो मीटर ऊंची है। साल 2004 में भारत सरकार ने फीजिक्स लैब सर्न को तोहफे में ये मूर्ति दी थी। 18 जून 2004 को इस मूर्ति का अनावरण किया गया। एक लैबोरेट्री में भगवान की मूर्ति पर भी वैज्ञानिकों के पास अपने तर्क हैं। इस मूर्ति के नीचे एक पट्टी लगी है और इस पर मशहूर भौतिक विज्ञानी फ्रिटजॉफ कैप्रा की कुछ लाइनें लिखी हैं। कैप्रा ने भगवान शिव की अवधारणा की व्याख्या करते हुए लिखा है-‘हजारों साल पहले भारतीय कलाकारों ने नाचते हुए शिव के चित्र बनाए। कांसे के बने डांसिंग शिवा की सीरीज में मूर्तियां हैं। हमारे समय में हम फीजिक्स की एडवांस्ड टेक्नोलॉजी की मदद से कॉस्मिक डांस को चित्रित करते हैं। कॉस्मिक डांस का रूपक पौराणिक कथाओं से मेल खाता है। यह धार्मिक कलाकारी और मॉर्डन फिजिक्स का मिश्रण है।’


ब्रह्मांड के अस्तित्‍व को बताते नटराज – कैप्रा ने वो द ताओ ऑफ फिजिक्स में शिव की अवधारणा के साथ विज्ञान के मेल को लेकर लिखा है, ‘शिव का नाचता हुआ रूप ब्रह्मांड के अस्तित्व को रेखांकित करता है। शिव हमें याद दिलाते हैं कि दुनिया में कुछ भी मौलिक नहीं है। सबकुछ भ्रम सरीखा और लगातार बदलने वाला है।मॉर्डन फिजिक्स भी इस बात की याद दिलाता है कि सभी सजीव प्राणियों में निर्माण और अंत, जन्म और मरण की प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। ये इन-ऑर्गेनिक मैटर्स पर भी लागू होता है।’ कैप्रा ने आगे लिखा है, ‘क्वॉन्टम फिल्ड थ्योरी के मुताबिक किसी भी पदार्थ का अस्तित्व ही निर्माण और अंत के नृत्य पर आधारित है। मॉर्डन फीजिक्स इस बात को सामने लाता है कि सभी सब-एटॉमिक पार्टिकल ना सिर्फ ऊर्जा नृत्‍य करते हैं, बल्कि ये एनर्जी डांस ही निर्माण और संहार को संचालित करता है। मॉर्डन फिजिक्स के लिए शिव का डांस सबएटॉमिक मैटर का डांस है। ये सभी तरह के अस्तित्व की कुदरती अवधारणा है।’


वैज्ञानिक भगवान शिव से लेते हैं प्रेरणा – कहते हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी इस फिजिक्‍स लैब में भगवान शिव की मूर्ति वैज्ञानिकों को प्रेरित करती है। एक बार इस लैब में काम करने वाले रिसर्चर ने भी इस तरह की बात कही थी कि किस तरह से भगवान शिव की मूर्ति उन्‍हें प्रेरित करती है। उन्‍होंने बताया था कि दिन के उजाले में जब सर्न जीवन के साथ ताल से ताल मिलाता है तो शिव इसके साथ खेलते हुए दिखते हैं। शिव याद दिलाते हैं कि ब्रह्मांड में लगातार चीजें बदल रही हैं और कोई भी चीज स्थिर नहीं है। वहीं, रात के अंधेरे में जब हम इस पर गहराई से विचार करते हैं तो शिव हमारे काम से उजागर हुई चीजों की परछाइयों से रूबरू करवाते हैं।
शिव की मूर्ति पर जताई गई थी आपत्ति –  कुछ लोगों ने हालांकि लैब में शिव की मूर्ति लगाने पर आपत्ति भी दर्ज करवाई थी। ईसाई धर्म के अनुयायियों ने सर्न से पूछा था कि उन्होंने अपने इंस्टीट्यूट में हिंदू देवता की मूर्ति क्यों लगा रखी है। ये सवाल उस समय और ज्यादा उठने लगे जब साल 2013 में प्रयोगशाला में हीग्स बॉसन की खोज हुई थी, जिसे गॉड पार्टिकल का नाम दिया गया था। हालांकि सर्न ने इन सवालों के जवाब भी दिए थे। सर्न की तरफ से कहा गया था कि भारत इस लैब का एक ऑब्जर्वर देश है। यह सर्न की बहु-संस्कृतिवाद को सामने लाता है। दुनिया की सबसे मशहूर फीजिक्स लैब सर्न कई देशों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें भारत का सहयोग भी शामिल है।

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