देशराग अमृत – स्वरचित देशभक्ति कविता

पीयूष साव, गारुलिया मिल्स हाई स्कूल

मेरी जान तिरंगा

मेरी जान तिरंगा, मेरी ज्ञान तिरंगा |

सरहद पर लड़ने वालों की पहचान तिरंगा |

खाकी वर्दी में गले जिंदगी बिताऊँ पर मरते समय तिरंगे को गले से लगाऊ यह आरजू मेरी पूरी हो; तमन्ना न अधूरी हो,

मैं न सिख हूँ न ही इसाई न हूँ जाट मराठा, अपने देश की रक्षा में गैं भारत माँ का बेटा।

नन्ही चिड़िया को चहकता छोड़ आया मैं,

मेरी माँ की आँसुओ को बहता छोड़ आया मैं, नये गजरे को महकता छोड़ आया मैं। देश के लिए,

मर मिटने का गन लाया गैं

इस सरहद पर जब तक हम खड़े रहेंगे; दुश्मनों पर कहरो के पहाड़ दहेंगे।

और जब

भारत माँ के गोद में सोने का हँसते समय आयेगा, हुए दुनिया को अलविदा कहेंगे।


 

हम भारतवासी

दुनिया वालो जान लो हमें,

आँखे खोलो और पहचान लो हमे

हम वह है हेम जो बजर से नदी की धार बहा दे, वह है, जो पहार को भी भगवान बता दे,

हम ही हैं, जो धर्म की पहली परिभाषा कहलाते है, और ढंग ही है जो ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ गाते है;

विश्वगुरु नाम से विख्यात,

देश में रहने वाले है हम |

और पूरी धरा मेरा परिवार है, ऐसा कहने वाले है हम | हमारे हार से कोई याचक निराश हो न जाते हैं, हमारे शौर्य की गाथा सदा पुराण गाते है।

कोई हो दुःखी ऐसी बात हम बोलते नहीं है, और कोई हमें बोल जाए ! तो उसे, छोड़ते नहीं है।

हम वीरता का चिन्ह और गौरव का अतीत है। युद्ध का घोष तो कहीं शांति का प्रतीक है,

हम ही शिव का ताण्डव और राम की विनय सुनाने वाले हैं,

आगे अब और क्या चाहिए! हम भारत के रहने वाले है।

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