देश का 80 फीसदी अनाज-सब्जियां उगाने वाली महिलाओं को ‘किसान’ का दर्जा क्यों नहीं?

13% ही जमीन की मालकिन
नयी दिल्ली । महंगाई बढ़ी तो खेती किसानी में आमदनी कम होने लगी। नफा-नुकसान का तोल-मोल करने वाले पुरुष खेती-बाड़ी छोड़ कमाने खाने शहर चले गए और पीछे रह गईं महिलाएं। खेत की बुआई से लेकर सिंचाई, निराई-गुड़ाई और फसल की कटाई में जी-तोड़ मेहनत करती हैं। अनाज और सब्जियों को मंडी ले जाकर बेचती हैं।
ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, देश का 80% अनाज और सब्जियां महिलाएं उगाती हैं। इसके बावजूद सिर्फ 13% महिलाएं उस जमीन की मालकिन हैं, जिस पर वे खेती करती हैं। खेती-किसानी से जुड़ी सरकारी योजनाएं भी पुरुषों को ध्यान में रखकर ही बनाईं जाती हैं, जिनमें महिलाओं के लिए कोई जगह नहीं है। महिलाओं को तो आधिकारिक रूप से ‘किसान’ कहे जाने की मान्यता भी नहीं मिली है। खेत-खलिहान से जुड़े ज्यादातर सरकारी संस्थानों पर भी पुरुषों का ही कब्जा है। किसान भाइयों के साथ किसान बहनों का जिक्र तक नहीं किया जाता है। 10 माह के रोते बच्चे को गोद में लेकर चुप कराने की कोशिश करती किसान सरिता राउत बताती हैं कि पूरे-पूरे दिन खेतों में काम करते हैं। रोपाई करते हुए कमर टेढ़ी हो जाती है। खेत पर जाने से पहले और लौटकर आने के बाद घर के काम निपटाने के साथ ही बच्चों को संभालते हैं। जब फसल पककर तैयार हो जाती है तब काट-छांट कर घर ले आते हैं। जब बेचने की बारी आती है, तब महिलाओं का खून-पसीना याद नहीं आता है। महिलाएं अगर उस पैसे से अपनी पसंद की एक साड़ी भी खरीद लें तो बहुत बड़ी बात हो जाती है। सरिता राउत मध्य प्रदेश के बाला घाट जिले में खुद खेती करने के साथ ही अपने जैसी अन्य महिला किसानों को आधुनिक खेती के गुर सिखाती हैं।
‘समाज की सोच में नहीं है महिला किसान का अस्तित्व’
महिला किसान अधिकार मंच (मकाम) से जुड़ कर महिला किसानों के हक की लड़ाई लड़ने वाली सीमा कुलकर्णी कहती हैं, ”ग्रामीण क्षेत्र में 85 फीसदी से अधिक महिलाएं खेती किसानी का करती हैं। फिर भी हमारे समाज में अभी तक महिला किसान जैसा कुछ अस्तित्व में है ही नहीं। चमकदार व नुमाइशी सरकारी नीति-दस्तावेज में भले ही ‘महिला किसान’ का जिक्र मिल जाए, लेकिन लोगों की सोच और कृषि योजनाओं में किसान लफ्ज का मतलब सिर्फ मर्द ही है। किसानों को मिलने वाले खाद और बीज उन्हीं को मिलते हैं। जमीन हो या फसल दोनों की खरीद और बेच मर्द ही कर सकते हैं।
सरकारी योजनाओं में नहीं है महिला किसानों का जिक्र
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के डाटा के मुताबिक, देश के ग्रामीण क्षेत्र में सबसे ज्यादा पैसा महिलाएं बैंक में जमा कराती हैं। बावजूद इसके महिलाओं को कर्ज नहीं मिलता। उन्हें कर्ज के लिए मुद्रा योजना या फिर अन्य स्कीमों का सहारा लेना पड़ता, जिसकी ब्याज दर भारी-भरकम होती है। कृषि क्षेत्र में सरकारी योजनाओं का फायदा, कर्ज और क्रेडिट कार्ड की व्यवस्था भी पुरुषों के लिए ही है।
महिलाओं के अनुकूल नहीं है मार्केटिंग संरचना
भारतीय किसान यूनियन उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष सचिन शर्मा कहते हैं कि महिलाएं जब फसल को मंडी लेकर जाती हैं या गन्ने को मिल पर लेकर जाती हैं तो वहां 4-4 दिन बाद नंबर आता है। गन्ने की फसल का भुगतान होने में साल बीत जाता है, इससे सबसे ज्यादा दिक्कत महिला किसानों को होती है। वे कैसे बच्चों को पढ़ाएं, कैसे अपना घर चलाएं। बता दें कि गल्ला-मंडियों में महिलाएं काम करती मिल जाएंगी, लेकिन आज तक मार्केटिंग संरचना महिलाओं के अनुकूल नहीं बनायी गयी। मंडियों में महिलाओं के लिए अलग से टॉयलेट तक नहीं होते हैं। न ही अलग बैठने की जगह।
जमीन पर नहीं है मालिकाना हक
इंडियन ह्यूमन डेवलपमेंट सर्वे-2018 के मुताबिक, 2% से भी कम पैतृक संपत्ति में महिलाओं के नाम हैं। सीमा कुलकर्णी बताती हैं कि महिला किसानों का जमीन पर मालिकाना हक न के बराबर है, जिससे उनकी संसाधनों तक पहुंच सीमित हो जाती है। पति की मौत के बाद महिला किसान को जमीन का स्वामित्व नहीं मिलता है। जमीन पति से सीधे बेटे या भाई के नाम ट्रांसफर कर दी जाती है। महिला किसान सरिता राउत बताती हैं कि जो महिलाएं अकेली हैं, लेकिन खेती है तो उनका गुजारा जैसे-तैसे चल जाता है। लेकिन जिन महिलाओं के पास खेती नहीं है। उन महिलाओं को बटाई या उगाई पर खेती नहीं मिलती है। उन्हें मजबूरन दूसरों के खेत में मजदूरी करने पड़ती है, जहां उन्हें पैसा पुरुषों की तुलना में कम मिलता है।
दरअसल, केंद्र सरकार के पास भूमिहीन किसानों का आंकड़ा नहीं, इसलिए भूमिहीन महिला किसानों की संख्या कितनी है, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है। ऐसे में वे खेतों में खून पसीना बहाती हैं, लेकिन उन्हें इसका फायदा नहीं मिलता। किसान सम्मान निधि, सौर पंप जैसी मदद हो फिर सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से फसल नष्ट होने पर मिलने वाला मुआवजा नहीं मिलता है। भूमिहीन महिलाओं को किसान सम्मान निधि, सौर पंप जैसी मदद हो फिर सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से फसल नष्ट होने पर मिलने वाला मुआवजा, कुछ नहीं मिलता।
भूमिहीन महिलाओं को किसान सम्मान निधि, सौर पंप जैसी मदद हो फिर सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से फसल नष्ट होने पर मिलने वाला मुआवजा, कुछ नहीं मिलता।
महिला किसानों की मांगें

किसान की परिभाषा जमीन के मालिकाना हक के आधार पर न तय हो।
पैतृक जमीन के दस्तावेजों में महिलाओं के नाम भी शामिल हों।
बजट में महिलाओं पर खर्च किया जाने वाला हिस्सा तय हो।
महिला किसानों को ध्यान में रखकर कृषि उपकरण और योजनाएं बनाई जाएं।
महिला किसानों को भी मिले सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा।
महिला किसानों को मान्यता देने के क्या होंगे फायदे?
महिलाओं को खेती, पशुपालन, मछली पालन के लिए कर्ज मिल सकेगा।
किसान सम्मान निधि, फसल बीमा और मार्केटिंग सेवाओं को लाभ मिलेगा।
कृषि क्षेत्र में महिलाओं को समान हक देने से 20-30% बढ़ेगी कृषि उत्पादकता।
कृषि उत्पादन भी 2.5% से 4% तक बढ़ जाएगा।

(साभार – दैनिक भास्कर)

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