नदी के नीचे सुरंग और उसमें दौड़ती मेट्रो, कोलकाता ने रचा इतिहास

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नयी दिल्ली । जमीन के ऊपर और जमीन के नीचे मेट्रो चलते तो आपने बहुत देखी होगी। लेकिन क्या आपने नदी के नीचे चलती हुई मेट्रो कभी देखी है? कोलकाता मेट्रो ने यह कमाल कर दिखाया है। देश में पहली बार कोई मेट्रो नदी के नीचे होकर गुजरी है। मेट्रो ने हुगली नदी के नीचे सुरंग बनाई है। इस सुरंग में होकर मेट्रो कोलकाता से हावड़ा पहुंची है। इस अंडरवाटर मेट्रो के ट्रायल रन की एक वीडियो रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने गत शुक्रवार को ट्विटर पर शेयर की है। उन्होंने कहा कि यह इंजीनियरिंग का एक और चमत्कार है। हुगली नदी के नीचे मेट्रो रेल सुरंग स्टेशन बनाया गया है। कोलकाता से हावड़ा के इस रूट पर मेट्रो की सेवाएं इसी साल शुरू होने की उम्मीद है। यह सेवा शुरू होने पर हावड़ा देश का सबसे गहरा मेट्रो स्टेशन बन जाएगा। यह सतह से 33 मीटर नीचे है। नदी के नीचे मेट्रो के लिए दो सुरंगे बनाई गई हैं।
आधा किलोमीटर लंबी है यह सुरंग
हुगली नदी के नीचे बनी यह मेट्रो सुरंग 520 मीटर लंबी है। हावड़ा से एस्प्लेनेड तक का रास्ता कुल 4.8 किलोमीटर लंबा है। इसमें 520 मीटर की अंडरवाटर सुरंग है। सुरंग की पूरी लंबाई की बात करें, तो यह 10.8 किलोमीटर अंडरग्राउंड है। यात्री पानी के नीचे बनी इस आधा किलोमीटर की सुंरग से 1 मिनट से भी कम समय में गुजरेंगे। लंदन और पेरिस के बीच चैनल टनल से गुजरने वाली यूरोस्टार ट्रेनों की तरह ही कोलकाता मेट्रो की इन सुरंगों को बनाया गया है। अप्रैल 2017 में एफकॉन ने सुरंगों की खुदाई शुरू की थी और उसी साल जुलाई में उन्हें पूरा किया गया।
7 महीने तक रोज होगा ट्रायल
कोलकाता मेट्रो के महाप्रबंधक पी. उदय कुमार रेड्डी ने कहा, ‘यह तो बस शुरुआत है। इस रूट पर नियमित अंडरवाटर ट्रायल होगा। अगले सात महीने तक इस रूट पर नियमित ट्रायल रन किया जाएगा। इसके तुरंत बाद आम जनता के लिए नियमित सेवाएं शुरू हो जाएंगी।’
पानी की सतह से 36 मीटर नीचे है सुंरग
इस अंडरवाटर मेट्रो सुरंग का निचला भाग पानी की सतह से 36 मीटर नीचे है। यहां ट्रेनें जमीनी स्तर से 26 मीटर नीचे चलेंगी। यह एक इंजीनियरिंग चमत्कार से कम नहीं है। इसके निर्माण में पानी की जकड़न, वॉटरप्रूफिंग और गास्केट की डिजाइनिंग प्रमुख चुनौतियां थीं। सुरंग के निर्माण के दौरान 24×7 चालक दल की तैनाती की गई। टीबीएम के कटर-हेड हस्तक्षेप नदी के नीचे गिरने से ठीक पहले किए गए थे। जिससे शुरू होने के बाद किसी हस्तक्षेप की जरूरत न हो। टीबीएम रिसाव रोकने वाले तंत्र से लैस थे और खराब मिट्टी की स्थिति के माध्यम से खुदाई कर सकते थे। यहां मजबूत नदी सुरंग प्रोटोकॉल का पालन किया गया था। इन सुरंगों को 120 साल तक सेवा के लिए बनाया गया है। पानी की एक बूंद भी नदी की सुरंगों में नहीं आ सकती है।

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