पंजाब के ‘लंगर बाबा’ और भोपाल गैस कांड पीड़ित 2300 महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने वाले अब्दुल जब्बार समेत 118 को पद्मश्री

उत्तर प्रदेश: मोहम्मद शरीफ ने 25 हजार से ज्यादा लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया।
पद्म पुरस्कार 2020: इस बार 7 पद्म विभूषण, 16 पद्म भूषण और 118 पद्मश्री अवॉर्ड दिए जाएंगे
 पर्यावरण के लिए काम करने वालीं तुलसी गौड़ा और भजन गायक मुन्ना मास्टर का नाम भी शामिल
नयी दिल्ली. सरकार ने शनिवार को 2020 के लिए पद्म पुरस्कारों का ऐलान किया। इस बार 7 पद्म विभूषण, 16 पद्म भूषण और 118 पद्मश्री अवॉर्ड दिए जाएंगे। पद्मश्री सम्मान पाने वालों में जगदीश लाल आहूजा, मोहम्मद शरीफ, तुलसी गौड़ा और मुन्ना मास्टर का नाम शामिल है। 1984 भोपाल गैस कांड के बाद 2300 महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल जब्बार को मरणोपरांत पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा।

लंगर बाबा के नाम से विख्यात जगदीश लाल आहूजा

जगदीश लाल आहूजा: सैंकड़ों गरीब मरीजों को हर दिन मुफ्त भोजन मुहैया करवाते हैं। उन्होंने 1980 में इसकी शुरूआत की थी। बीते 15 सालों से हर दिन आहूजा जी 2 हजार लोगों को मुफ्त भोजन करवाते हैं।
अब्दुल जब्बार: 1984 में हुए भोपाल गैस कांड के बाद उन्होंने ‘भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन’ की स्थापना की। इस संगठन ने 2300 गैस पीड़ित महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 35 साल तक काम किया।

मोहम्मद शरीफ

मोहम्मद शरीफ: 25 सालों से फैजाबाद, आसपास के इलाकों में 25 हजार से ज्यादा लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया। उन्होंने कभी अपने धर्म को आड़े नहीं आने दिया। उन्हें लोग ‘चाचा शरीफ’ नाम से भी पुकारते हैं।
तुलसी गौड़ा: अशिक्षित होने के बाद भी उन्हें पौधों-जड़ी बूटियों की जानकारी थी। 60 सालों में हजारों पौधे लगाए। शुरुआत में वे बतौर वॉलेंटियर वन विभाग से जुड़ीं। बाद में कर्नाटक सरकार ने स्थायी नौकरी दी।
कुशल कोंवर सरमा: पेशे से वेटेरनरी डॉक्टर ने हाथियों के संरक्षण में पूरा जीवन लगाया। तीन दशक से छुट्टी नहीं ली। वे हर साल 700 से ज्यादा हाथियों का इलाज करते हैं।

तुलसी गौड़ा

हिम्मत राम भंभू: पेशे से किसान हिम्मत राम ने राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में पौधे लगाए। वे रोजाना 1000 से ज्यादा पक्षियों-जानवरों को अनाज खिलाते हैं। राज्य के कई जिलों के लोगों को जंगल बचाने के लिए प्रेरित किया।
डॉ रवि कन्नन: 2007 में चेन्नई से नौकरी छोड़कर सपरिवार असम आए ताकि बराक घाटी में रह रहे लोगों को चिकित्सा सुविधाएं मुहैया करा सकें। वे अब तक 70 हजार कैंसर के मरीजों का मुफ्त में इलाज कर चुके हैं।

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