“पचहत्तर वाली भिंडी” का लोकार्पण

कोलकाता : कोलकाता की सुपरिचित संस्था ‘साहित्यिकी’ द्वारा डॉ. नुपूर अशोक के व्यंग्य संग्रह “पचहत्तर वाली भिंडी” का लोकार्पण कार्यक्रम किया गया। गूगल मीट पर आयोजित वर्चुअल संगोष्ठी में यह पुस्तक लोकार्पण प्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ. प्रेम धनमेजय और उनकी धर्मपत्नी आशा जी ने किया।
कार्यक्रम के आरंभ में डॉ. नुपूर अशोक ने अपने व्यंग्य-संग्रह में से ‘पचहत्तर वाली भिंडी’ रचना का प्रभावशाली पाठ किया। पुस्तक  की समीक्षा करते हुए डॉ. रूपा गुप्ता ने कहा कि ‘व्यंग्यकार तात्कालिकता की रस्सी पर अपना संतुलन बनाए रखने की कोशिश करता है|’ पुस्तक हर दृष्टि से सराहनीय है| ‘पचहत्तर वाली भिंडी ‘ सत्ता के मोह और राजनीति की सड़ान्ध पर  टिप्पणी करती है| उन्होंने “ज़माना तो है फैशन का ” से लेकर “शिकार होकर चले’ तक फैले हुए बाज़ारवाद  का ज़िक्र विशेष रूप से  किया|
प्रसिद्ध व्यंग्यकार डा. प्रेम जनमेजय ने पुस्तक के मुखपृष्ठ को कलात्मक बताते हुए उसके लिए कुमार अमित की सराहना की।  प्रियदर्शन जी की लिखी भूमिका पर उन्होंने व्यंग्य को समझने की दृष्टि के लिए इसे महत्वपूर्ण बताया | उन्होंने कहा कि व्यंग्य रचनाएँ कई पगडंडियों से गुजरती हुई अपनी राह बनाती है| ‘पचहत्तर वाली भिंडी’ रचना भी जिज्ञासा से आरंभ होते हुए राजनीतिज्ञों और उसके बाद अधिकारियों के कुर्सी से चिपके रहने की आदत तक का तार्किक सफ़र तय करती हैं| उन्होंने ‘बेटा बनाम बकरा’ को सामाजिक सरोकारों की रचना बताया और कहा कि व्यंग्य विसंगतियों से गुजरकर ही साहित्य में अपना मुकाम हासिल करता है|
अपने लेखकीय वक्तव्य में नूपुर अशोक ने रचनाओं के पुस्तक बनने तक की यात्रा पर दिलचस्प ढंग से प्रकाश डालते हुए कहा कि वह वक्ताओं द्वारा दिए गए सुझावों के मद्देनजर अपनी रचनाशीलता को और भी गंभीरता से लेते हुए उन्हें निखारने का प्रयास करेंगी।
संवाद सत्र में डॉ. पूनम पाठक द्वारा पूछे गए  प्रश्न, “क्या व्यंग्यकार बनने के लिए शास्त्र पढ़ने की जरूरत होती है?” के उत्तर में प्रेम जनमेजय ने कहा, नैसर्गिक प्रतिभा व दृष्टि की जरूरत होती है| अध्यक्ष कुसुम जैन ने के सवाल  कि “व्यंग्य की आलोचना कैसे अच्छी लिखी जा सकती है?” के जवाब में प्रेम उन्होंने  गौतम सान्याल ,डॉ. रुपा गुप्ता, रविश तिवारी जैसे अच्छे आलोचको का ज़िक्र करते हुए कहा  कि व्यंग्य का विधिवत आलोचना शास्त्र नहीं होता| व्यंग्य का आधार विसंगति होता है और साहित्य की हर विधा से जुड़ने पर ही व्यंग्यकार ,साहित्यकार बन सकता है।
 अध्यक्षीय वक्तव्य में कुसुम जैन ने दिया।  कार्यक्रम का संचालन संजना तिवारी ने किया एवं  पूनम पाठक ने तकनीकी व्यवस्था को संभाला।

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