पर्यावरण, रोजगार और स्वास्थ्य के लिए फायदे का सौदा है पत्तलों में खाना

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एक समय था जब किसी भी मांगलिक कार्य में या दुकानों पर पत्तलों का उपयोग हर जगह किया जाता था । पत्तलें उपयोग में तो अब भी लायी जा रही हैं मगर प्लास्टिक एवं थर्मोकॉल के कारण लोग इनका उपयोग कम करते हैं । दरअसल, पत्तल में खाना भारत की प्राचीन संस्कृति का अंग रहा है और रामायण से लेकर महाभारत में पत्तल के उपयोग का उल्लेख है । राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण पत्तल उठाते हैं तो पत्तलों में छिपाकर पन्ना धाय महाराणा के पिता उदय सिंह के प्राण बचा लेती हैं । समय बदला और पत्तलों में सब्जी का रस या कोई भी तरल पदार्थ आम लोगों के लिए समस्या बन गया । पत्तलों में खाना लेकर खड़ा होना एक समस्या थी । हालांकि समस्या होती है तो समाधान होता ही है मगर समस्या यही है कि हम समाधान से अधिक विकल्प खोज लेते हैं । पत्तल को लेकर यदि शोध किये जाते, उसे मजबूत बनाने के तरीखे खोज लिए जाते तो योग की तरह पत्तल भी विश्व को भारत की अनुपम देन होता, जो है भी मगर इसके प्रचार की जरूरत है और उससे भी अधिक उपयोग की जरूरत है । अच्छी बात यह है कि आज स्टार्टअप की दुनिया में पत्तलों की वापसी हुई है और अब तो यह ई कॉमर्स साइटों पर भी बिक रहा है….मजे की बात यह है कि हमारी पत्तलों को विदेशी कम्पनियाँ हमें ही हर्बल और इको फ्रेंडली कहकर बेच रही हैं ।
ध्यान रखने वाली बात यह है कि सुपारी के पत्तों से बनी पत्तल या ऐसे कई पत्ते हैं, जिनसे बनी पत्तलें मजबूती वाली समस्या का समाधान कर चुकी हैं । बहरहाल हम आपको पत्तलों की बहुरंगी, पर्यावरण अनुकूल दुनिया में लिए चलते हैं और हमें लगता है कि पत्तल पर खाने के फायदे पढकर आप भी पत्तलों पर खाने से पीछे नहीं हटेंगे –


हमारे देश मे 2000 से अधिक वनस्पतियों की पत्तियों से तैयार किये जाने वाले पत्तलों और उनसे होने वाले लाभों के विषय में पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान उपलब्ध है पर मुश्किल से पांच प्रकार की वनस्पतियों का प्रयोग हम अपनी दिनचर्या में करते हैं। आम तौर पर केले के पत्तों में खाना परोसा जाता है। प्राचीन ग्रंथों में केले के पत्तों पर परोसे गये भोजन को स्वास्थ्य के लिये लाभदायक बताया गया है।
आजकल महंगे होटलों और रिसोर्ट मे भी केले के पत्तों का प्रयोग होने लगा है। हर्बल आचार्य डॉ. दीपक आचार्य बताते हैं कि डिस्पोजल थर्माकोल में खाना खाने से उसमे उपिस्थ्त रसायन पदार्थ खाने में मिलकर पाचन क्रिया पर प्रभाव डालता, जिससे कैंसर होता है एंव डिस्पोजल के गिलास में बिस्फिनोल नामक केमिकल होता है जिसका असर छोटी आंत पर पड़ता है।                                                                                                                           ये हैं लाभ – पलाश के पत्तल में भोजन करने से स्वर्ण के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है। रक्त की अशुद्धता के कारण होने वाली बीमारियों के लिये पलाश से तैयार पत्तल को उपयोगी माना जाता है। पाचन तंत्र सम्बन्धी रोगों के लिये भी इसका उपयोग होता है। आम तौर पर लाल फूलों वाले पलाश को हम जानते हैं पर सफेद फूलों वाला पलाश भी उपलब्ध है। इस दुर्लभ पलाश से तैयार पत्तल को बवासीर (पाइल्स) के रोगियों के लिये उपयोगी माना जाता है। केले के पत्तल में भोजन करने से चांदी के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है। जोड़ों के दर्द के लिये करंज की पत्तियों से तैयार पत्तल उपयोगी माना जाता है। पुरानी पत्तियों को नयी पत्तियों की तुलना मे अधिक उपयोगी माना जाता है। लकवा (पैरालिसिस) होने पर अमलतास की पत्तियों से तैयार पत्तलो को उपयोगी माना जाता है।

ये भी मिलेगी राहत – सबसे पहले तो उसे धोना नहीं पड़ेगा, इसको हम सीधा मिट्टी में दबा सकते हैं। न पानी नष्ट होगा, न ही घरेलू सहायक की जरूरत पड़ेगी, मासिक खर्च भी बचेगा। न केमिकल उपयोग करने पड़ेंगे, न केमिकल द्वारा शरीर को आंतरिक हानि पहुंचेगी। अधिक से अधिक वृक्ष उगाये जायेंगे, जिससे कि अधिक आक्सीजन भी मिलेगी।                प्रदूषण भी घटेगा- सबसे महत्वपूर्ण झूठे पत्तलों को एक जगह दबाने पर, खाद का निर्माण किया जा सकता है, एवं मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है। पत्तल बनाए वालों को भी रोजगार प्राप्त होगा। सबसे मुख्य लाभ, आप नदियों को दूषित होने से बहुत बड़े स्तर पर बचा सकते हैं, जैसे कि आप जानते ही हैं कि जो पानी आप बर्तन धोने में उपयोग कर रहे हो, वो केमिकल वाला पानी, पहले नाले में जायेगा, फिर आगे जाकर नदियों में ही छोड़ दिया जायेगा, जो जल प्रदूषण में आपको सहयोगी बनाता है।
(साभार – गाँव कनेक्शन)

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