बिहार से आनंद कुमार, सुभद्रा और कपिल देव प्रसाद को पद्मश्री

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पटना । भारत सरकार ने पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी है। देश के विभिन्न हिस्सों की महान विभूतियों को 6 पद्म विभूषण, 9 पद्म भूषण और 91 पद्मश्री जैसे पुरस्कार से नवाजा गया है। बिहार के तीन लोगों को पद्म श्री पुरस्कार मिला है। जिसमें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में सुपर थर्टी के मेंटॉर आनंद कुमार को पद्म श्री पुरस्कार से नवाजा गया है। वहीं ओर कला के क्षेत्र में सुभद्रा देवी को पुरस्कार दिया गया है। उसके अलावा कपड़ा कला के मामले में नालंदा के कपिल देव प्रसाद को पद्म श्री से सम्मानित किया गया है।
कपिल देव प्रसाद को पद्मश्री
68 वर्षीय कपिल देप प्रसाद नालंदा जिले के रहने वाले हैं। उन्होंने कपड़ा कला में बेहतरीन काम किया है। जिसकी वजह से उन्हें ये पुरस्कार दिया गया है। बिहार को गौरव दिलाने वाले कपिल देव प्रसाद बवन बूटी कला के मर्मज्ञ हैं। इन्होंने अपने अब तक कई बड़े और लंबे कपड़ों पर अपनी कला उकेरी है। कपिल देप प्रसाद ने बसवनबिगहा की बुनकरी को 20 साल बाद राष्ट्रीय स्तर की कला के रूप में पहचान दिला चुके हैं।
आनंद कुमार को पद्मश्री
उसके अलावा आनंद कुमार को शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में पद्मश्री का पुरस्कार मिला है। 1 जनवरी 1973 को जन्म आनंद बिहार के शिक्षाविद् और विद्वान माने जाते हैं। इन्होंने सुपर थर्टी के माध्यम से गरीब बच्चों का दाखिला आईआईटी जैसे संस्थानों में कराने की जिम्मेदारी ली। इन पर विश्व की कई बड़ी नामी कंपनियों ने फिल्म बनाई है। डिस्कवरी इंडिया के साथ मुंबई के फिल्म निर्माताओं ने भी आनंद के जीवन पर फिल्म बनाई है। आनंद के पिता डाक विभाग में एक लिपिक रहे। आनंद ने सरकारी स्कूल से पढ़ाई की है और सुपर थर्टी चलाते हैं। सरकार ने उनके योगदान को देखते हुए उन्हें पुरस्कार दिया है।

पेपरमैसे कला के लिए सम्मानित सुभद्रा देवी

सुभद्रा देवी को पेपरमेसी के लिए पद्मश्री मिला है। पेपरमेसी मूल रूप से जम्मू-कश्मीर की कला के रूप में प्रसिद्ध है, लेकिन सुभद्रा देवी ने बचपन में इस कला से खेला करती थीं। सबसे पहले यह जानना रोचक है कि पेपरमेसी होता क्या है? दरअसल, कागज को पानी में गलाकर उसे रेशे के लुगदी के रूप में तैयार करना और फिर नीना थोथा व गोंद मिलाकर उसे पेस्ट की तरह बनाते हुए उससे कलाकृतियां तैयार करना पेपरमेसी कला है। सुभद्रा देवी दरभंगा के मनीगाछी से ब्याह कर मधुबनी के सलेमपुर पहुंचीं तो भी इस कला से खेलना नहीं छोड़ा। आज जब पद्मश्री की घोषणा हुईं तो करीब 90 साल की सुभद्रा देवी दिल्ली में बेटे-पतोहू के पास हैं। घर से इतनी दूरी के बावजूद वह पेपरमेसी से दूर नहीं गई हैं। वहां से भी इस कला के विस्तार की हर संभावना देखती हैं। बड़े मंचों तक इसे पहुंचाने की जद्दोजहद में रहती हैं। भोली-भाली सूरत और सरल स्वभाव की मालकिन सुभद्रा देवी को वर्ष 1980 में राज्य पुरस्कार और 1991 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पेपरमेसी से मुखौटे, खिलौने, मूर्तियां, की-रिंग, पशु-पक्षी, ज्वेलरी और मॉडर्न आर्ट की कलाकृतियां बनाई जाती हैं। इसके अलावा अब प्लेट, कटोरी, ट्रे समेत काम का आइटम भी पेपरमेसी से बनता है। पेपरमेसी कलाकृतियों को आकर्षक रूप के कारण लोग महंगे दामों पर भी खरीदने को तैयार रहते हैं।

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