भारत की धरोहर हैं महाराणा प्रताप का स्मृति चिह्न बने ये किले

मेवाड़ के शासक और वीर योद्धा महाराणा प्रताप की जयंती हर साल अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 9 मई को मनायी जाती है। महाराणा प्रताप ने मुगलों से युद्ध करते हुए सभी राजसी वैभव को त्याग कर जंगलों में भटकना मंजूर किया लेकिन मुगल शासकों के सामने कभी घुटने नहीं टेके।
साल में दो बार मनायी जाती है जयंती
महाराणा प्रताप का जन्म अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक 9 मई 1540 को हुआ था। इस साल उनकी 489वीं जयंती मनायी गयी लेकिन हिंदू पंचांग के मुताबिक उनका जन्म जेष्ठ माह की तृतीया को गुरु पुष्य नक्षत्र में हुआ है। विक्रम संवत के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म 22 मई को हुआ था। इसी वजह से साल में दो बार मेवाड़ के महाराणा प्रताप की जयंती मनायी जाती है।
चित्तौड़गढ़ के किले में कभी नहीं रख पाए कदम
चित्तौड़गढ़ के किले को महाराणाओं की शान कहा जाता था। सन् 1303 में चित्तौड़गढ़ के किले पर अलाउद्दीन खिलजी ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। 1540 में जब महाराणा प्रताप को जयवंता बाई ने जन्म दिया उसी समय उनके पिता महाराणा उदय सिंह ने खोए हुए चित्तौड़गढ़ के किले को फिर से जीत लिया और यहां एक विजय स्तंभ स्थापित किया। अपने जीवनकाल में महाराणा प्रताप कभी भी चित्तौड़गढ़ के किले में कदम नहीं रख सके। दरअसल, मुगल बादशाह अकबर ने 1568 को खुद इस किले पर चढ़ाई की और इसे जीत लिया। 27 साल की उम्र में गद्दी संभालने के बाद से लेकर मृत्यु तक महाराणा प्रताप मुगलों से युद्ध लड़ते रहे और बाबर से लेकर अकबर तक जितने किले भी मुगलों ने जीते थे, सबको वापस ले लिया। सिर्फ चित्तौड़गढ़ का किला ही बचा हुआ था। इसके बाद अकबर ने अपनी पूरी ताकत इस किले की सुरक्षा में झोंक दी और हजारों सैनिकों को तैनात कर दिया। सन् 1597 को महाराणा प्रताप ने अपनी मृत्यु तक इस किले को वापस लेने के लिए संघर्ष किया लेकिन वह ना तो इसे जीत सकें और ना ही इस किले में उन्होंने कभी कदम रखा।


गोगुन्दा
उदयपुर, जिसे महाराणा प्रताप के पिता महाराणा उदय सिंह ने बसाया था, से करीब 35 किमी दूर स्थित गोगुन्दा का किला कई महाराणाओं की आपातकालिन राजधानी भी रही है। इसी किले में महाराणा प्रताप का राजतिलक हुआ था। महाराणा प्रताप ने भी अपने पिता के निधन के बाद गोगुन्दा को अपनी राजधानी बनाया था लेकिन बाद में वह उदयपुर चले गये। जब अकबर ने उदयपुर छीन लिया तो महाराणा प्रताप फिर से गोगुन्दा आ गये।
मायरा की गुफा
गोगुन्दा के पास ही मायरा की गुफा है जिसे महाराणा प्रताप ने अपना शस्त्रागार बनाया था। इसी भूलभुलैया जैसी गुफा में वह अपने प्रिय घोड़े चेतक को भी बांधा करते थे और इसी गुफा में खुफिया मंत्रणा भी करते थे। महाराणा प्रताप ने प्रण लिया था कि जब तक वह मेवाड़ से मुगलों को पूरी तरह से खदेड़ नहीं देते, तब तक महलों को छोड़कर जंगलों में ही रहेंगे। प्रताप के जंगलों में रहने के दौरान यह गुफा काफी महत्वपूर्ण रहा है।
कुंभलगढ़ किला
हल्दीघाटी के युद्ध के बाद काफी समय तक महाराणा प्रपात कुंभलगढ़ किले में रहे थे। इस किले या दुर्ग से प्रताप की कई स्मृतियां जुड़ी हुई है। इस किले में ही पन्नाधाय ने महाराणा उदय सिंह (प्रताप के पिता) का लालन-पालन किया था। यह किला सात पहाड़ियों के बीच बना हुआ है, इसी वजह से नजदीक पहुंचने पर ही यह शत्रु को नजर आता था। यह किला सैनिक और सुरक्षा की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण था जिस कारण यह दुर्ग अजेय रहा है।
चावण्ड
उदयपुर से लगभग 60 किमी की दूरी पर चावण्ड गांव की पहाड़ी पर महाराणा प्रताप का महल बना हुआ है। उनसे जुड़ा होने की वजह से इस स्थान का ऐतिहासिक महत्व है। इसी महल में महाराणा प्रताप ने अपनी आखिरी सांसे ली थी। हालांकि अब यह महल टूट कर किसी खंडहर में तब्दील हो चुका है।
(स्त्रोत – नेटिव प्लानेट)

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