भाषा सेतु : गीत चतुर्वेदी की कविताओं का बांग्ला अनुवाद

अनुवादक – रेशमी सेन शर्मा

নীমের চারা (नीम का पौधा)
এটি একটি নিমগাছের চারা,
যাকে ঝুঁকে দেখো
আরেকটু ঝুঁকে দেখো,
তো একটি প্রকান্ড নিমগাছ মনে হবে/দেখতে পাব l
আরও ঝোঁক,আরেকটু,
মাটির সঙ্গে মিশে যাও l
তুমি ওর ছায়া পাবে/ছায়ার অনুভূতি পাবে l
একটি ছোট্ট মেয়ে জল দিয়ে দিয়ে এটিকে বড় করে তুলেছে
এর সবুজ পাতাগুলিতে এমন একটি তিক্ততা আছে ,
যা মুখের ভাষা কে মিষ্টতা শেখায়
যারা উচ্চতা কে ভয় পায়
তারা এসে এর নীচতা/লঘুতা র থেকে সাহস জুটাক

नीम का पौधा
यह नीम का पौधा है
जिसे झुक कर
और झुक कर देखो
तो नीम का पेड़ लगेगा
और झुको, थोड़ा और
मिट्टी की देह बन जाओ
तुम इसकी छाँह महसूस कर सकोगे

इसे एक छोटी बच्ची ने पानी दे-देकर सींचा है
इसकी हरी पत्तियों में वह कड़ुआहट है जो
ज़ुबान को मीठे का महत्त्व समझाती है
जिन लोगों को ऊँचाई से डर लगता है
वे आएँ और इसकी लघुता से साहस पाएँ

কথা বলার আগে ,( बोलने से पहले)
বুদ্ধিমান লোকেদের মতো করে কথা বলো,
নয়তো এমন কথা বলো,
যাতে মনে হয়,যে তুমি বুদ্ধিমান l
কথা বলার আগে,
ওই তরোয়ালগুলির ব্যাপারে/কথা ভাবো,
যারা জীভ কে ক্ষত বিক্ষত করে l
এটাও ভাবো,
যে একান্ত নীরবতার মাঝে,তোমার কর্কশ স্বর,
কাউকে অস্থির করে তুলতে পারে,
বহু সমাজে,কেবল একটি বাক্যই নিয়ে আসে ঝড় l
নিজেকে খুলে দিয়োনা,
কিন্তু খুলে কথা বলো,l
নিজের বুলিকে/কথাকে এইভাবে খুলে ধরো,
যে সে তারমধ্যে মিলিয়ে যাক
সে তোমাতে মিলিয়ে যাবে,তো তুমি বেঁচে যাবে l
কথা বলার আগে অনেকবার ভাবো,
তবুও বলা হয়ে গেলে উন্মুক্ত হয়ে যাও,
তরোয়ালগুলি ভেঙে যাবে l
( बोलने से पहले)

बुद्धिमान लोगों की तरह बोलो
नहीं तो ऐसा बोलो
जिससे आभास हो कि तुम बुद्धिमान हो

बोलने से पहले
उन तलवारों के बारे में सोचो
जो जीभों को लहर-लहर चिढ़ाती हैं

यह भी सोचो
कि कर्णप्रिय सन्नाटे में तुम्हारी ख़राश
किसी को बेचैन कर सकती है
कई संसारों में सिर्फ़ एक बात से आ जाता है भूडोल

खुलो मत
लेकिन खुलकर बोलो
अपने बोलों को इस तरह खोलो
कि वह उसमें समा जाए
वह तुममें समाएगा तो तुम बच जाओगे

बोलने से पहले ख़ूब सोचो
फिर भी बोल दिया तो भिड़ जाओ बिंदास
तलवारें टूट जाएँगी

কায়া/দেহ /শরীর (काया)
তুমি এতক্ষন ধরে আঁধারের দিকে চেয়েছিলে,
যে চোখের মণির রং কালো হয়ে গেছে,
বইগুলিকে এভাবে আষ্টেপৃষ্টে জড়িয়েছো,
যে শরীর যেন কাগজ হয়ে গেছে l
বলছিলে যে,
মৃত্যু আসে তো ওইভাবেই আসুক,
যেভাবে জলের কাছে আসে,
আর জল বাষ্প হয়ে যায় l
যেভাবে বৃক্ষের কাছে আসে,
আর বৃক্ষ দরজা হয়ে যায় l
যেভাবে আগুনের কাছে আসে,
আর আগুন ছাই হয়ে যায় l
তুমি গরুর থন হয়ে যেও,
আর দুধ হয়ে ঝরে পড়ো,
বাষ্প হয়ে বড়ো বড়ো ইঞ্জিন চালিয়ো l
ভাত রেঁধো ,
যেই পথ সর্বদা বন্দ থাকার জন্য অভিশপ্ত,
সেখানে দরজা হয়ে খুলো l
অসুস্থ মায়ের পালঙ্কের তলায় রাখা বাসন ছাই ঘষে মেজো
একটি দেশলাই কাঠি জ্বালিয়ো
আর সেটিকে অনেক্ষন ধরে দেখতে থেকো l

काया

तुम इतनी देर तक घूरते रहे अंधेरे को
कि तुम्हारी पुतलियों का रंग काला हो गया
किताबों को ओढा इस तरह
कि शरीर कागज़ हो गया

कहते रहे मौत आए तो इस तरह
जैसे पानी को आती है
वह बदल जाता है भाप में
आती है पेड़ को
वह दरवाज़ा बन जाता है
जैसे आती है आग को
वह राख बन जाती है

तुम गाय का थान बन जाना
दूध बनकर बरसना
भाप बनकर चलाना बड़े-बड़े इंजन
भात पकाना
जिस रास्ते को हमेशा बंद रहने का शाप मिला
उस पर दरवाज़ा बनकर खुलना
राख से मांजना बीमार माँ की पलंग के नीचे रखे बासन

तुम एक तीली जलाना
उसे देर तक घूरना

তাদের ব্যাপারে,যাদের আমি চিনিনা,
(उनके बारे में,जिन्हे मैं नहीं जानता)

আমি অনেক্ষন অবধি জেগে থাকি,
কখনো কখনো সকাল অবধি,
ঘরে পায়চারি করতে থাকি,
মেঝেতে ধূপধুপ আওয়াজ হয় l
যা নীচের ফ্ল্যাটে শোনা যায় ,
কেউ সেটা শুনে তার লয় তে ঘুমায় l
আমার জেগে থাকার ফলে/জাগরণে কেউ শান্তিতে ঘুমোতে পারে
তার ভয়,বিশ্বাস আর অন্ধকার , আমার কাছে অজ্ঞাত/অপরিচিত,
তার তৃষ্ণা আর চেষ্টাগুলিও আমার কাছে অজ্ঞাত /অপরিচিত,
তার কাশির আওয়াজে আমার ভেতরটা কেঁপে ওঠে ,
তার প্রতিটি গতি র সাথে আমার জড়তা নড়ে বসে l
কিছু জিনিষকে আটকানো যায়না,
যেমন কিছু শব্দ,বাক্য,বিচার আর রং,
কিছু হাসি কিছু রোদন,
প্রেম ও অভিমানের কিছু পৃথক মুহূর্ত,
যাদের আমরা বিশেষ চিনিনা,
তাদের চেনার প্রয়াসে,
চেনা মানুষগুলির আরও নিকটে চলে/পৌঁছে যাই,
আশেপাশে তাদের মতোই যেন কিছু খুঁজতে থাকি l
আর মনের ভেতর পুষে রাখিl
তাদের চিনে ফেলার,
এক বিনম্র ভ্রম l
उनके बारे में,जिन्हे मैं नहीं जानता

मैं जागता हूँ देर तक
कई बार सुबह तक
कमरे में करता हूं चहलक़दमी
फ़र्श पर होती है धप्-धप् की ध्वनि
जो नीचे के फ्लैट में गूँजती है
कोई सुनता है और उसकी लय पर सोता है
मेरी जाग से किसी को मिलती है सुकून की नींद

मैं नहीं जानता उसके भय, विश्वास और अंधकार को
उसकी तड़प और कोशिशों को
उसकी खाँसी से मेरे भीतर काँपता है कोई ढाँचा
उसकी करवट से डोलता है मेरा जड़त्व

कुछ चीज़ों को रोका नहीं जा सकता
जैसे कुछ शब्दों, पंक्तियों, विचारों और रंगों को
किसी हँसी किसी रुलाहट
प्यार और ग़ुस्से के पृथक क्षणों को
उन लोगों को भी जिनके बारे में हम ख़ास नहीं जानते
उन्हें जानने की कोशिश में
जाने हुए लोगों के और क़रीब आ जाते हैं
आसपास उनके जैसा खोजते हैं कुछ
और एक विनम्र भ्रांति सींचते हैं उन्हें जान चुकने की

(रेशमी विद्यार्थी हैं। प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है और अभी अनुवाद में डिप्लोमा कोर्स कर रही हैं। शुभ सृजन युवा की सदस्य रेशमी हमारी अनुवाद टीम का हिस्सा हैं।)

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