मजदूर और प्रेम

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आनंद श्रीवास्तव

मेरे फटे हुए हाथों में क्या तुम अपनी कोमल हथेली देकर आनंदित हो पाओगी?
क्या मेरे पसीने से लथपथ बदन से सटकर बैठना तुम्हें मंजूर होगा?
क्या मेरे जिस्म से आती गंध को बर्दाश्त कर पाओगी?
क्या मेरे फटे पुराने कपड़ों के साथ तुम्हें सहजता महसूस होगी?
मैं नहीं दे सकता तुम्हें
पांच सितारा होटल में कैंडल लाइट डिनर
मैं नहीं दिखा सकता किसी एरिस्टोक्रेट मॉल के मल्टीप्लेक्स में तुम्हें सिनेमा
मैं नहीं घुमा सकता समुंद्र के किनारे का रिजॉर्ट
मैं नहीं दे सकता आई फोन या कोई कीमती तोहफ़ा तुम्हें
बस दे सकता हूं सोने से भी शुद्ध और खरा प्यार तुम्हें
एक सुरक्षित हाथों का एहसास तुम्हें
मैंने ही रचा है ये पांच सितारा होटल
ये मॉल, ये मल्टीप्लेक्स
मैंने ही बनाया है
समुंद्र के किनारे का रिजॉर्ट
मेरे पास उपभोग के लिए कुछ भी नहीं
सिर्फ़ ये दोनों हाथ हैं
जो रच सकता है सारे कायनात की कारीगरी को ।
जो रच सकता है सृष्टि के हर आयाम को।
जो रच सकता है धरती के श्रृंगार को ।
मैं अपना हाथ तुम्हें देना चाहता हूं
अगर तुम करो स्वीकार तो
मैं तुम्हारे लिए
सपनों और उम्मीदों की आगाज़ रच सकता हूं।
तुम्हें बेपनाह प्यार कर सकता हूं।।।।।।

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