साहित्यिकी ने ‘मधुपुर आबाद रहे’ पर आयोजित की परिचर्चा

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संलग्न चित्र: मधुपुर आबाद रहे पर हुई परिचर्चा में शामिल लेखक तथा विशिष्ट श्रोता.

कोलकाता । महिलाओं के लेखन को दिशा देने और उपयुक्त मंच प्रदान करने के लिए समर्पित संस्था साहित्यिकी ने पिछले दिनों अपनी सदस्य लेखिका गीता दूबे के पहले काव्य संकलन- ‘मधुपुर आबाद रहे’ पर एक विशेष परिचर्चा का आयोजन जनसंसार सभागार में किया। साहित्यिकी की सचिव मंजू रानी गुप्ता ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए गीता दूबे की कविताओं में बहुआयामी परिदृश्य का जिक्र किया और उसे शुभकामनाएं दीं। उसके पश्चात मधुपुर आबाद रहे संग्रह से कुछ कविताओं का पाठ बाल कथा लेखिका बबिता मांधणा ने किया।
परिचर्चा में भाग लेते हुए मुख्य वक्ता के तौर पर उपस्थित प्रख्यात आलोचक अरुण होता ने कहा कि इस संग्रह की कविताएँ स्व से ऊपर उठ कर पर की संवेदना को मुखरित करते हुए अपने समय की बड़ी चिंताओं और समस्याओं को विभिन्न बिंबों और भाव बोध के साथ व्यक्त करती हैं। स्त्री संवेदना, प्रेम, पर्यावरण, भूमंडलीकरण, प्रकृति- सौंदर्य, विवाह, कोरोना काल आदि कविताएँ शिल्प और विषय के स्तर पर विविधता लिए हैं।

जानी मानी समीक्षक और शिक्षाविद् इतु सिंह ने गीता दूबे की कविताओं पर अपने वक्तव्य में कहा कि नारी जीवन के संघर्ष और अनुभव के अलावा जिस तत्व ने मुझे सबसे ज़्यादा आकर्षित किया,वह प्रेम है पर उस पर कहीं पर्दा पड़ा है, उन कविताओं का दरवाज़ा जाने कब खुलेगा। गीता की कविताएँ अंतरजगत की अपेक्षा बहिर्जगत के आवेग की ज़्यादा हैं, वह उन्हें व्यथित करती हैं। उनकी छोटी कविताएँ अल्प शब्दों में ही बहुत कुछ कह जाती हैं और देर तक हमें स्पंदित करती रहती हैं और यह उनकी छोटी कविताओं का जादू है।
वरिष्ठ कवि पत्रकार रावेल पुष्प ने कहा कि गीता की अधिकतर कविताएं नारी मन की व्यथा का इज़हार करती हैं और वे रूमानियत के प्रतीक चांद की चाहत नहीं करतीं बल्कि तपते हुए सूरज को मांगती हैं जिसकी तेज रोशनी में वे तपकर निखर सकें। इसके अलावा बाबूलाल शर्मा,शंभुनाथ, आशुतोष सिंह, विजय गौड़ ने भी गीता दूबे के काव्य संकलन की कविताओं की विविधता के साथ उनके विभिन्न साहित्यिक पहलुओं का भी जिक्र किया।
गीता दूबे ने आभार व्यक्त करते हुए अपने काव्य लेखन के विभिन्न पड़ावों का जिक्र किया । उन्होंने कहा कि कविताएं तो उनकी सखी की तरह हैं, जिनसे वे अपने मन की बातें दिल खोलकर बखूबी कर सकती हैं। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में वरिष्ठ लेखिका रेणु गौरीसरिया ने पुनरावृत्ति से बचते हुए कहा कि गीता की कविताओं में प्रेम का शाश्वत अद्भुत राग सर्वत्र बिखरा हुआ है। धर्म, राजनीति और समाज में व्याप्त विद्रूपताएँ और विसंगतियों से उपजी कचोट उनकी कविताओं में स्पष्ट झलकती है।
इस परिचर्चा की महत्वपूर्ण उपस्थिति में शामिल थे- सर्वश्री शैलेन्द्र,शर्मिला बोहरा जालान, उमा झुनझुनवाला, प्रेम कपूर, सुषमा हंस, सुषमा त्रिपाठी, सूफ़िया यास्मीन, दुर्गा व्यास, अनिता ठाकुर, प्रमिला धूपिया, नमिता जायसवाल, सरिता बेंगानी, चंदा सिंह, कविता कोठारी, अल्पना नायक, रचना पांडेय, प्रीति सिंघी, लिली शाह, सत्य प्रकाश तिवारी, रोहित राम, विशाल सिंह, पूर्ति खंडूरी, महेन्द्र नारायण पंकज, शाहिद फरोगी, सेराज खान बातिश, प्रभाकर चतुर्वेदी तथा अन्य।
इस जीवन्त परिचर्चा तथा अच्छी उपस्थिति से जन संसार सभागार एक बार फिर गुलजार हो गया।

 

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