मान्यता : देवराज इन्द्र ने सतयुग में स्थापित किया था सुनासीर नाथ मंदिर का शिवलिंग

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में मल्लावां क्षेत्र में सुनासीर नाथ मंदिर है। माना जाता है कि यहां स्थापित शिवलिंग की स्थापना सतयुग में देवराज इंद्र ने की थी। वैसे तो पूरे वर्ष यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन सावन महीने में यहां देश-विदेश से भी लोग पूजा-अर्चना करने आते हैं। पूर्व में इस मंदिर में सोने के कलश, दरवाजे और जमीन पर गिन्नियां जड़ी थीं, लेकिन 16वीं शताब्दी में मुगल बादशाह औरंगजेब ने इस मंदिर का सोना लूट लिया और शिवलिंग पर आरी चलवाकर इसे काटने की कोशिश भी की, लेकिन नाकाम रहा, उसकी बर्बरता का सबूत आज भी मौजूद है। मल्लावां कस्बे से तीन किलोमीटर दूर इस मंदिर के विषय में पुजारी राम गोविंद मिश्र बताते हैं कि यहां के शिवलिंग की स्थापना इंद्र देव ने की थी। 16वीं शताब्दी में मुगल बादशाह औरंगजेब ने मंदिर में जड़ा सोना लूटने के लिए यहां आक्रमण किया था।
गौराखेड़ा के शूरवीरों ने किया डटकर मुकाबला
औरंगजेब की सेना की भनक जैसे ही क्षेत्र के गौराखेड़ा के लोगों को लगी तो वहां के शूरवीरों मुगल बादशाह की फौज के आगे चट्टान की तरह खड़े हो गए। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। जिसमें सैकड़ों सैनिक मारे गए। मुगल बादशाह की भारी फौज के आगे गौराखेड़ा के शूरवीर ज्यादा देर नहीं टिक पाए और उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, इसके बाद मुगल सेना को मढ़िया के गोस्वामियों ने भी चुनौती दी, लेकिन उनको भी हार झेलनी पड़ी।
मंदिर का सोना लूट लिया
मुगल बादशाह के सैनिक मंदिर के अंदर पहुंचकर मंदिर को लूटने लगे। मंदिर में लगे दो सोने के कलश, फर्श में जड़ी सोने की गिन्नियां और सोने के घंटे व दरवाजे सब लूट लिए। इसके बाद मुगल बादशाह ने मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया। सैनिकों ने मंदिर को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया। इसके बाद सैनिक शिवलिंग को खोदने लगे और जब वह इसमें सफल नहीं हुए तो शिवलिंग पर आरी चलाकर काटने की कोशिश की।
शिवलिंग से निकली बर्रैयों ने किया हमला
बताते हैं कि जब शिवलिंग पर सैनिकों ने आरी चालाई तो पहले शिवलिंग से दूध की धारा बाहर निकली और फिर असंख्य बर्रैया और ततैया निकल आईं। उन्होंने मुगल बादशाह की फ़ौज पर हमला बोल दिया। जिसके बाद सैनिक भाग खड़े हुए। बरैया और ततैयों ने शुक्लापुर गांव तक फ़ौज का पीछा किया। तब जाकर बादशाह और सैनिकों के प्राण बचे। शिवलिंग पर आरे का निशान आज भी देखा जा सकता है।
(साभार – नवभारत टाइम्स)

 

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