युवा प्रतिभाओं की सृजनात्मकता से निखरा 25वाँ हिन्दी मेला

कोलकाता : हिन्दी मेला अपने 25वें साल में युवा संस्कृति का एक अनोखा राष्ट्रीय उदाहरण बना। सातवें दिन चुनी गई श्रेष्ठ हिन्दी प्रतिभावों ने लोक संस्कृतियों के साथ हिन्दी काव्य संगीत, सुंदर नृत्य और आवृत्तियां प्रस्तुत की। लगभग 90 शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों और युवाओं ने सात दिनों तक हिन्दी मेला को जीवंत और रंगारंग बना के रखा। इसमें हिन्दी के अलावा संस्कृत, बांग्ला, उड़िया, पंजाबी, भोजपुरी, राजस्थानी भाषाओं की विशेष उपस्थिति थी। शुभजिता में पेश है हिन्दी मेले की सात दिवसीय रपट –

सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन के संयुक्त महासचिव प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि हिन्दी मेला सिर्फ हिन्दी नहीं सभी भारतीय भाषाओं का आंगन है और आगे भी बना रहेगा। हमें हिन्दी मेला को एक आंदोलन का रूप में देना है । हिन्दी मेला कोलकाता में पिछले 25 सालों से लगातार आयोजित हो रहा है। इसमें हिन्दी के लेखकों, शिक्षकों, साहित्य प्रेमियों तथा विद्यार्थियों की विशेष भूमिका होती है। इसमें दूर-दूर से लोग आते हैं। नव वर्ष का पहला दिन भारतीय सोच के युवाओं ने अपने उच्च कलाओं, साहित्य और संस्कृति के साथ मनाया। डॉ. राजेश मिश्र ने कहा कि हिन्दी मेला ने साहित्य को आनंदोत्सव का रूप दे दिया है।
हिन्दी मेला में कविताओं को विशेष राग से गाने वाले संगीतज्ञ अजय राय का उनके बड़े योगदान के लिए सम्मानित किया गया। अजय राय ने कहा कि हिन्दी परिवारों में हिन्दी काव्य के गायन की बाकायदा शिक्षा दी जानी चाहिए जिसका अभाव है। हिन्दी मेले में अजय विद्यार्थी को युगल किशोर सुकुल पत्रकारिता सम्मान और भोगेन्द्र झा को प्रो. कल्याणमल लोढ़ा शिक्षक सम्मान दिया गया। रांची से आये प्रो. रवि भूषण ने कहा कि हिन्दी के ऐसे समर्पित युवाओं के जैसा उत्साह हिन्दी राज्यों में दुर्लभ है। कोलकाता कभी आधुनिक हिन्दी की गंगोत्री रही है। आज यह महानगर फिर एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का साक्षी बन रहा है।

इस अवसर पर विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित यूको बैंक के कार्यपालक निदेशक चरण सिंह ने कहा कि हिन्दी मेला एक अनोखा सांस्कृतिक उत्सव है जिसका विस्तार होना चाहिए। मिशन के संरक्षक रामनिवास द्विवेदी ने कहा कि हिन्दी मेला भारतीय आत्मा की अभिव्यक्ति है जिसका सन्देश मानवता है। नरेश कुमार ने हिन्दी मेला के युवा आयोजकों को सफल आयोजन के लिए बधाई दी।  नववर्ष पर होने वाले हिन्दी मेला के समापन के अवसर पर ढाई सौ से अधिक युवाओं को स्मृति चिन्ह, उपहार, मैडल और नगद राशि से सम्मानित किया गया।  संचालन विकास जायसवाल, सुशील पांडेय, मधु सिंह, राहुल गौड़, धनंजय प्रसाद, विशाल कुमार साव, पंकज सिंह, सूर्यदेव रॉय, रूपेश कुमार यादव, अनिल कुमार साह, और संजय सिंह ने किया।

छायावाद पर आयोजित हुई संगोष्ठी

मानवतावाद और प्रकृति प्रेम का संदेश है छायावाद

गत 31 दिसम्बर को छायावाद के विविध पक्षों पर सेमिनार आयोजित किया गया। वक्ताओं ने कहा कि  छायावाद ने मानवतावाद और प्रकृति-प्रेम का संदेश दिया। इसने बुद्धिवाद और वैज्ञानिक विकास के साथ-साथ हृदय को महत्व दिया। हिंदी के प्रमुख छायावादी कवि प्रसाद,निराला,पंत और महादेवी ने उच्च मानव मूल्यों का पक्ष लिया तथा कट्टरवाद और आडम्बर का विरोध किया। हिन्दी मेला के केंद्रित “छायावाद, मानवतावाद और वर्तमान परिदृश्य” पर आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद में विद्वानों ने यह बात कही। बंगबासी कॉलेज के शिक्षक पीयूषकान्त राय ने कहा कि छायावाद ने मानवता को जो कुछ दिया, वह आज भी भाईचारा,सहिष्णुता,प्रेम और हिंदी मेला जैसे आयोजनों के सिलसिला में बचा हुआ है। हम छायावाद की मानवता को खोकर देश की प्रगति नहीं कर सकते। विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. दामोदर मिश्र ने कहा कि आज का विश्व भौतिकवाद से काफी आकर्षित है, जहाँ चमक-धमक है लेकिन मानव हृदय का क्षय हुआ है। छायावादी साहित्य इसलिए महान है कि इसने विज्ञान और टेक्नोलॉजी के समानांतर मानव हृदय को महत्व दिया। जालान गर्ल्स कॉलेज के प्रो. विवेक सिंह ने कहा कि छायावाद का संबंध 19वीं सदी के नवजागरण से है। छायावाद ने धर्म,नस्ल और जाति से ऊपर उठकर सोचने की दृष्टि दी। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि छायावाद ने जब सौ साल पहले साहित्य में कदम रखा था तब लोगों ने प्रसाद,निराला,महादेवी,पंत जैसे विद्रोही कवियों पर अंगुलियाँ उठाई थी लेकिन उनकी युगवाणी के समक्ष निंदा के लिए उठी अंगुलियाँ धीरे-धीरे स्वागत में जुड़ गई। उन्होंने कहा- निराला ने नए विचारों का अध्ययन किया था “प्रिय स्वतंत्र नव अमृत छंद नव,भारत में भर दे”। छायावाद ने मनुष्य की आत्मा को विराट बनाना चाहा था। प्रथम सत्र का अध्यक्षीय भाषण देते हुए डॉ विजय बहादुर सिंह ने कहा कि छायावादी कविता गुलामी के दिनों की आजादी की कविता है। यहाँ सिर्फ राजनीतिक आजादी ही नहीं, संस्कृति आजादी की भी कविता है। यदि हम छायावाद को नहीं समझते तो भारत को भी नहीं समझ सकते। यह परंपरा के पुनर्निर्माण का काव्य है।
राष्ट्रीय परिसंवाद के दूसरे सत्र में विद्यासागर विश्वविद्यालय के प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि हम इतिहास और परंपरा से विच्छिन्न हो रहे हैं। छायावाद इसी मानवजीवन को समझने का साहित्य है। विश्वभारती विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की प्रो. मंजूरानी सिन्हा ने कहा कि जीवन में आचरण के बिना सिद्धांत का कोई अर्थ नहीं है। वागर्थ के संपादक प्रो. शंभुनाथ ने कहा कि छायावादी काव्य व्यक्ति के स्व का उद्घोष है। इसके कवि बाहर से अभावग्रस्त और भीतर से भाव से परिपूर्ण हुआ करते थे जबकि आज ठीक इसके विपरीत है। वर्तमान समय में हो रहे तोड़-फोड़ और वस्तुकरण से लड़ने की प्रेरणा हम छायावाद से ले सकते हैं। प्रसिद्ध आलोचक रविभूषण ने कहा कि छायावाद सांस्कृतिक जागरण का काव्य है। उन्होंने यह भी कहा कि यह स्वतंत्रता का काव्य है। राष्ट्रीय परिसंवाद में दिव्या प्रसाद और निखिता पांडेय ने अपना आलेख पाठ किया। रचनात्मक लेखन प्रतियोगिता में प्रथम सम्मान पवन कुमार, महात्मा गांधी कॉलेज, बिहार,द्वितीय स्थान सूर्यदेव रॉय, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, तृतीय स्थान पंकज सिंह, विद्यासागर विश्वविद्यालय, मधु सिंह, विद्यासागर विश्वविद्यालय को मिला। कार्यक्रम का सफल संचालन राहुल शर्मा, पूजा गुप्ता और धन्यवाद ज्ञापन विनोद यादव ने दिया।

प्रशस्ति तिवारी, वाराणसी की प्रस्तुति

30 दिसम्बर – मानवजाति के विकास के लिए पर्यावरण सरंक्षण की जगह औद्योगिक विकास जरूरी है। इस विषय पर वाद-विवाद में कुछ विद्यार्थियों ने हिन्दी मेला के पांचवें दिन मत व्यक्त किया कि पर्यावरण संरक्षण का आंदोलन विकास विरोधी है। कुछ एनजीओ पर्यावरण आदोलन के नाम पर वस्तुत: विकास राह में रुकावट पैदा कर रहे हैं। वहीं कई युवाओं ने कहा कि कुछ सालों से जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण की तरफ विकसित देश ध्यान नहीं दे रहे हैं। इसलिए पृथ्वी संकट में है, मनुष्यता संकट में है और संस्कृति विकृति में बदल रही है। वाद विवाद के अंत में यह बात स्थापित हुई कि हमें विकास की ओर बढ़ना है लेकिन पर्यावरण संरक्षण के संकल्प को पूरा करते हुए। सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा आयोजित 25वें हिंदी मेला में वाद-विवाद प्रतियोगिता के अलावा आशु भाषण भी हुए, जिनमें युवाओं ने अपनी सोचने की क्षमता का परिचय दिया। इस दिन दूसरे सत्र में हिंदी मेले के दूसरे हिस्से में हिंदी कविता उत्सव आयोजित किया गया था जिसमें बाहर आए लगभग 45 कवियों ने अपनी कविताएँ सुनाई। कविता उत्सव में काली प्रसाद जायसवाल के ‘काव्य संग्रह तुम नहीं थे’ तथा मुम्बई से आये विनोद प्रकाश गुप्ता ‘शलभ’ के काव्य संग्रह ‘आओ नई सहर का नया शम्स रोक लें’ का लोकार्पण भी सम्पन्न हुआ। इसकी अध्यक्षता विजय बहादुर सिंह, रविभूषण और अवधेश प्रधान ने की। काली प्रसाद जायसवाल, सेराजखान बातिश, आशुतोष, महेश जायसवाल,निर्मला तोदी, गीता दूबे राज्यवर्द्धन, राजेश मिश्रा, विनोद प्रकाश गुप्ता, अतीश कुमार, अभिज्ञात, य़तीश कुमार, आनंद गुप्ता, सुषमा त्रिपाठी,राजेश कमल, ज्योति शोभा, घुंघरू परमार, पूनम सोनछात्रा, राहुल शर्मा, इबरार खान, विनोद यादव, मधु सिंह, राहुल गौड़, सूर्यदेव यादव आदि ने अपनी कविता सुनायी।

पटना से आमंत्रित हिरावल ने पेश किया काव्य संगीत व लोकगीत

 

29 दिसम्बर – इस दिन काव्य संगीत, लोकगीत तथा भाव नृत्य प्रतियोगिता आयोजित की गयी। इसके अतिरिक्त वाराणसी से आमंत्रित प्रशस्ति तिवारी ने कबीर के पदों पर कत्थक का अद्भुत प्रदर्शन किया जबकि पटना से आमंत्रित हीरावल ने शानदार काव्य व लोक गीत की प्रस्तुति की।  लोकगीत समूह का शिखर सम्मान डगलस मेमोरियरल स्कूल, प्रथम स्थान रश्मि त्रिपाठी दल, द्वितीय नवीन मिश्रा एवं दल को, विशेष स्थान प्रीति साव एवं दल, एकल का शिखर सम्मान रूपांजलि सिंह, हमारा प्रयास, प्रथम स्थान कालीचरण तिवारी, द्वितीय स्थान अजीत पांडेय, तृतीय स्थान ,कुमारी,हराप्रसाद प्राइमरी, विशेष स्थान रेणू सिन्हा, प्रकाश खरवाल, नैना प्रसाद, अदिति दूबे, राजेश सिंह को मिला। भाव नृत्य एकल का शिखर सम्मान मनीषा चक्रवर्ती, सेंट ल्यूक्स डे स्कूल, प्रथम स्थान प्रेमशंकर पांडेय, द्वितीय स्थान अदिति दास,तृतीय स्थान प्रकाश पासवान, चतुर्थ स्थान अंतरा विश्वास, विशेष स्थान नंदिनी साव, नैहा चौबे, शिवानी सिंह, एकता प्रसाद और अंजलि सिंह को मिला। भाव नृत्य समूह का शिखर सम्मान संयुक्त रूप से विद्या विकास हाई स्कूल एवं मणिशंकर कलाकेंद्र, प्रथम स्थान डगलस मेमोरियल हाई स्कूल, द्वितीय स्थान सोहनलाल देवरालिया, तृतीय स्थान विद्या विकास डे स्कूल, चतुर्थ रूबी शर्मा एवं दल को मिला। आशु भाषण वर्ग अ का शिखर सम्मान शिखा झा,सोहनलाल देवरालिया, प्रथम स्थान संयुक्त रूप से इंदु तारा माली एवं आशुतोष रावत, द्वितीय स्थान प्रेरणा प्रसाद, तृतीय स्थान सौरभ कुमार मिश्रा, आरपी हाई स्कूल, चतुर्थ स्थान जय प्रकाश यादव को मिला। आशु भाषण क का शिखर सम्मान नूपुर श्रीवास्तव, पांडुआ कॉलेज, प्रथम स्थान श्वेता त्रिपाठी, प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय, द्वितीय स्थान, पूजा बोथरा, श्रीशिक्षायातन कॉलेज, एवं अदिति दूबे, हावड़ा नवज्योति, तृतीय संचिता पांडेय, सुरेंद्रनाथ कॉलेज, विशेष प्रिंस राज, ओम कुमार चौरसिया, रूपेश यादव को मिला।
वाद-विवाद प्रतियोगिता वर्ग क का शिखर सम्मान मनीष गुप्ता, प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय,प्रथम स्थान रूपेश कुमार यादव, विद्यासागर विश्वविद्यालय, द्वितीय नूपुर श्रीवास्तव एवं प्रदीप कुमार प्रसाद, तृतीय स्थान संचिता पांडेय, स्वाति प्रजापति एवं स्वेता त्रिपाठी को मिला। वाद-विवाद अ वर्ग का शिखर सम्मान आशुतोष कुमार रावत, लाजपत हाई स्कूल, प्रथम जयप्रकाश यादव, सेंट ल्यूक्स डे स्कूल, द्वितीय प्रेरणा प्रसाद, सोहनलाल देवरालिया, तृतीय स्थान अंकित कुमार, आदर्श हिंदी स्कूल को मिला।

 

कविताओं और गजलों ने समां बांधा हिंदी मेला में

28 दिसम्बर –  हिन्दी मेले के तीसरे दिन काव्य आवृत्ति प्रतियोगिता आयोजित की गयी तथा प्रख्यात गजल गायक हरिओम की प्रस्तुति हुई। हिन्दी मेला के तीसरे दिन काफी संख्या में युवाओं ने निराला, दिनकर, अज्ञेय, सर्वेश्वर, केदारनाथ सिंह आदि की कविताएं सुनाई। लखनऊ से आए प्रसिद्ध गजल गायक डॉ. हरिओम तथा उनके संगीतकारों का कोलकाता के नागरिकों की ओर से कवि व भोजपुरी कथाकार मृत्यंजय कुमार सिंह ने सम्मानित किया। डॉ. हरिओम ने गालिब, फैज अहमद फैज, सुल्तानपुरी तथा अपनी लिखी गजलों के गायन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। डॉ. हरिओम लखनऊ की उच्च प्रशासनिक सेवा में हैं। उनकी यह पंक्ति ‘मैं सिकंदर हूं पर हारा हुआ हूं, फिर भी मैं नई दुनिया का हरकारा हुआ हूं’, काफी सराही गई। इसके अलावा ‘ये मेल हमारा झूठ न सच क्यों रार करो, क्यों दोष धरों किस कारण झूठी बात करौ’ इन पंक्तियों पर भी श्रोताओं ने जमकर तालियां बजाई। आगरा से आए प्रो. प्रेमशंकर ने कहा कि हिन्दी मेला जैसे सांस्कृतिक आयोजन युवकों को नई प्रेरणा देते हैं। यूको बैंक के महाप्रबंधक नरेश कुमार ने कहा कि हिन्दी मेला जैसे आयोजनों को अधिक से अधिक प्रोत्साहन देने की जरूरत है। उन्होंने मेला के प्रतिभागी युवाओं को बधाई दी। वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी अमल दास ने इसे हिन्दी के विकास के लिए जरुरी अभियान बताया। डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने कहा कि हिन्दी मेला का यह आयोजन हमें सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध करता है। इस अवसर पर विशिष्ट समाज सेवी प्रियांगु पांडेय ने प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि हिन्दी मेला का यह आयोजन एक साहित्यिक और सांस्कृतिक आंदोलन है।

प्रो. रेखा सिंह ने कहा कि हिन्दी मेला हमारे भीतर पर्यावरण को बचाने का संस्कार निर्मित कर रहा है। कवि राज्यवर्द्धन ने कहा कि 25 वर्षों से हिन्दी मेला उदारीकरण और वैश्विककरण के बरक्स एक सृजनात्मक प्रतिरोध निर्मित कर रहा है। प्रो. शुभ्रा उपाध्याय ने कहा कि हिंदी मेला का यह मंच विद्यार्थियों के लिए एक सृजनात्मक प्रयोगशाला है। प्रो. अल्पना नायक ने कहा कि हिन्दी मेला ने उपनगरीय शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों को प्रतियोगिताओं के लिए आत्मविश्वास दिया है। पत्रकार जितेंद्र जितांशु ने कहा कि हिन्दी मेला ने तीन पीढ़ियों को मंच प्रदान किया है।
कविता आवृत्ति प्रतियोगिता वर्ग शिशु का शिखर सम्मान अनुप्रिया सिंह, द हेरिटेज, प्रथम स्थान वत्सल पांडेय, डॉन बास्को(लिलुआ), द्वितीय स्थान संचिता डोमनिया, लक्ष्मीपत सिंघानिया, तृतीय स्थान पर रिद्धिमा सिंह, हरियाणा विद्या, विशेष अरमान आनंद, आर.पी. मेमोरियल, श्री राव,सेंट ल्यूक्स डे स्कूल, अंकिता पंडित, विद्या विकास हाई स्कूल, अलीना परवीन, टर्निंग प्वाइंट स्कूल, निर्मल दास, विद्या विकास हाई स्कूल, संजना गौड़, नैहाटी म्युनिसिपल प्री प्राईमरी स्कूल, वैष्णवी महतो, विद्या विकास स्कूल को मिला। वर्ग अ का शिखर सम्मान रौनक पांडेय, प्रथम स्थान धीरज चौधरी, द्वितीय स्थान लावण्या साव, तृतीय स्थान पूर्वी भंडारी, नलिनी साहा, संजना जायसवाल, अलफिया खुर्शीद, अदिति ए संजय, विकास कुमार ठाकुर, राहुल कुमार गुप्ता, अनन्या मिश्रा, आंचल साव, अश्विका सिंह, कोमल कुमारी को मिला। गत 27 दिसम्बर को दूसरे दिन चित्रांकन व कविता पोस्टर प्रतियोगिता आयोजित की गयी।

उद्धघाटन तथा लघु नाटक प्रतियोगिता – हिन्दी मेला के रजत जयंती आयोजन की शुरुआत फेडरेशन हॉल से निकली प्रभातफेरी से हुई। 25 साल पूरे होने पर विश्वविद्यालयों- कॉलेजों के युवाओं में विशेष रूप से उत्साह था। वे हिंदी नाट्य मेले में भाग लेने आए थे। प्रभात फेरी में सैकड़ों नौजवानों के अलावा लेखक, शिक्षक और बुद्धिजीवी हाथ में तख्ती लेकर खड़े थे – ‘हम देश की एकता और अखंडता से प्रतिबद्ध हैं’, ‘डर के विरुद्ध शब्द की दहाड़’, ‘यौन अत्याचार बंद करो’, हिंदी मेला का सुपरिचित नारा मुखर था – ‘पढ़ना लड़ना है’।

हिन्दी मेला का उद्घाटन करते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ विजय बहादुर सिंह ने कहा कि, ‘हिंदी मेला के 25 सालों का सफर पूरे भारत के लिए संदेश है कि हर शहर में हिंदी मेला हो। दिल्ली में भी रोज ड्रामा हो रहा है लेकिन आज का नाट्य मेला सामाजिक यथार्थ की अभिव्यक्ति है।‘हिंदी मेला के उद्घाटन सत्र और नाट्य मेला का संचालन अनिता राय ने किया। उनके सहयोगी आरंभ में सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन के संयुक्त सचिव प्रोफेसर संजय जयसवाल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि हिंदी मेला युवाओं का, युवाओं के द्वारा और युवाओं के लिए है। प्रोफेसर राजेश मिश्र ने हिंदी मेला कि 25 सालों की यात्रा को कोलकाता में हिंदी की ऐतिहासिक यात्रा से जोड़ा। इस अवसर पर प्रसिद्ध रंगकर्मी सुशील कांति को ‘माधव शुक्ल नाट्य सम्मान’ प्रदान किया गया।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डॉक्टर शंभुनाथ ने कहा कि, हिंदी मेला युवाओं का सांस्कृतिक जनतंत्र है जिसके आधार हैं बंधुत्व, बौद्धिक स्वतंत्रता और कलात्मक सृजन की भावना। सृनात्मकता हर युग में कट्टरवाद की चुनौती बनी है। उन्होंने कहा कि आज राजनीति और सोशल मीडिया को झूठ का लाउड स्पीकर बना दिया गया है। ऐसे समय में युवाओं को प्रह्लाद की कथा से सीखना है कि हमें सत्य पर दृढ रहना चाहिए। हमें एक भेदभाव और भयमुक्त समाज बनाना है।बतौर निर्णायक उपस्थित थे महेश जायसवाल, जितेंद्र सिंह एवं अर्धेन्दु चक्रवर्ती ।जूही कर्ण, पूजा गुप्ता, दिव्या प्रसाद, सुशील पांडे,पूजा सिंह, रतन राजभर, विनोद कुमार यादव (मास्टर जी) और धनंजय प्रसाद की प्रमुख भूमिका रही। रामनिवास द्विवेदी ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि हिंदी मेला सांस्कृतिक पुनर्निर्माण का संकल्प हैं।

शुभजिता

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