रसोई – कहानी सतना के रामपुर के खुरचन की

खुरचन… यह पढ़कर आपको लगेगा कि यह किसी चीज को जलाने के बाद खुरच-खुरचकर बनाई जाने वाली कोई मिठाई है, लेकिन ऐसा नहीं है। इसका सिर्फ नाम ही खुरचन है। यह मिठाई शुद्ध दूध की मलाई से बनाई जाती है। मलाई की कई परतें जमने से मखमली सी दिखने वाली यह मिठाई मप्र की प्रसिद्ध मिठाइयों में से एक है। बात हो रही सतना के रामपुर बाघेलान की ‘खुरचन’ की। यह मिठाई यहां 80 साल पहले अस्तित्व में आई थी। रामपुर बाघेलान के हाईवे से इस मिठाई का स्वाद प्रदेश ही नहीं देशभर में फैल चुका है। इस सप्ताह जायका में पढ़िए रामपुर बाघेलान की ‘खुरचन’ की कहानी।

बारापत्थर गांव में यादवों ने बनाना शुरू किया

कुछ समय बाद नागौद के करीबी और नेशनल हाईवे के किनारे बसे बारापत्थर गांव में कुछ यादवों ने आशियाना बनाए। वे भी मवेशी पालते थे लिहाजा दूध का इस्तेमाल उन्होंने भी खुरचन बनाने में करना शुरू कर दिया। उस वक्त वे नागौद के घरों और कुछ दुकानों में भी खुरचन पहुंचाते थे। अब भी रामपुर की ही तरह नागौद के बारापत्थर में भी नेशनल हाईवे के किनारे खुरचन की दुकानें लगती हैं।

रामपुर में शक्कर नागौद में दूध की मिठास

खुरचन की रेसिपी नागौद से रामपुर पहुंची तो उसके बनाने के तरीके में बदलाव भी हो गए। नागौद की खुरचन में शक्कर का इस्तेमाल नहीं किया जाता। रामपुर में इस पर पिसी शक्कर छिड़की जाती है। नागौद की खुरचन शुगर फ्री होती है। दूध की मिठास को ही खुरचन की मिठास के लिए इस्तेमाल किया जाता है लिहाजा नागौद में बनी खुरचन रामपुर की खुरचन के मुकाबले महंगी बिकती है। यहां इसकी कीमत 500 रुपए किलो तक है।

बड़े होटल से ज्यादा बिक्री हाईवे की दुकानों पर

खुरचन कस्बे के अन्य बड़े होटलों में भी बिकती है, लेकिन रोजाना खुरचन की उनसे कहीं ज्यादा बिक्री सड़क किनारे की छोटी-छोटी दुकानों में होती है। ये दुकानें किसी और नाम से नही बल्कि विक्रेता के सरनेम से पहचानी जाती हैं। मसलन दुकानों के नाम, पटेल खुरचन, मिश्रा खुरचन, पांडेय खुरचन वगैरह हैं। ये दुकानें उन्हीं की होती हैं जो खुद खुरचन बनाते हैं।

धीमी आंच पर पकाते हैं

दूध को एक-एक पाव की मात्रा में लोहे की कड़ाहियों में पकाया जाता है। दूध के ठंडा होने के बाद बेहद बारीकी से इसकी मलाई उतारी जाती है और उसे थाली में फैलाया जाता है। पिसी शक्कर छिड़ककर एक के ऊपर एक मलाई की परतें डाली जाती हैं।

पहले बेचने के लिए रीवा जाते थे

वीरेंद्र मिश्रा बताते हैं कि खुरचन बनाने और बेचने का काम उनके यहां तीन पीढ़ियों से हो रहा है। पहले दादी खुरचन बनाती थीं और बेचने के लिए रीवा ले जाती थीं। बाद में पिता जी ने इस काम को आगे बढ़ाया और अब वे पढ़ाई करने के बाद भी खुरचन बनाने और बेचने के काम में लग गए। उन्होंने बताया कि यहां डेढ़ सौ से अधिक दुकानदारों की आजीविका का साधन खुरचन ही है। त्योहारों के दिनों में सामान्य दिनों की अपेक्षा बिक्री भी अच्छी होती है। कई बार यहां से निकलते वक्त विदेशी सैलानी भी रुकते हैं और खुरचन ले जाते हैं।

अब रेलवे ने भी किया प्रमोट

रामपुर बाघेलान की खुरचन को अब भारतीय रेलवे ने भी प्रमोट किया है। रेलवे ने बघेलखंड की इस जायकेदार विरासत को वन स्टेशन वन प्रोडक्ट प्रोग्राम के तहत शामिल किया है। हावड़ा-मुम्बई रेल मार्ग के प्रमुख जंक्शन सतना के प्लेटफॉर्म में इसका स्टॉल लगाया गया है। स्टाल संचालक लक्ष्मी नारायण मिश्रा बताते हैं कि नेशनल हाईवे पर यात्रा करने वालों के जरिए ही खुरचन देश के अन्य स्थानों तक पहुंचती थी, अब रेल यात्रियों के माध्यम से भी इसका जायका भारत के कोने-कोने तक पहुंच रहा है।

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