रेडियो वाले दोस्त अमीन सयानी और बिनाका गीतमाला

ये बात है साल 1952 की सर्दियों की। जब एक विज्ञापन कंपनी के अधिकारी जाने माने रेडिया सीलोन पर ग्राहकों के लिए हिंदी फिल्मों के गानों की एक सीरीज की योजना बना रहे थे। विज्ञापन कंपनी एक रासायनिक और फार्मास्युटिकल ग्रुप के लिए विज्ञापन बना रही थी, जो कई उत्पादों के अलावा एक टूथपेस्ट बनाती थी। मशहूर रेडियो आर्टिस्ट हामिद सयानी द्वारा अंग्रेजी गीतों का एक शो रेडियो सीलोन पर बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा था। विज्ञापन कंपनी हिंदी फिल्मी गीतों की लोकप्रियता को देखते हुए हिंदी बाजार में टैप करने के लिए उत्सुक थी।
हामिद सयानी ने अमीन को हिंदी शो के लिए किया राजी
विज्ञापन कंपनी की इस योजना के लिए कोई लेखक या कंपेयर तैयार नहीं हो रहा था, क्योंकि इसके बदले में मिलने वाले 25 रुपये प्रति सप्ताह हिट परेड पर रिसर्च करने, पटकथा लिखने और फिर इसे पेश करने के लिए कम थे लेकिन हामिद भाई ने जोर देकर मुझे इसमें शामिल कर लिया। उन्होंने मुझे शो करने के लिए राजी कर लिया और इस तरह एक लंबी, शानदार रेडियो यात्रा की शुरुआत हुई। जिसका नाम था- ‘बिनाका गीत माला। ये बात रेडियो किंग अमीन सयानी ने कही। उन्होंने बताया कि 1986 में ‘बिनाका गीत माला’ का नाम बदलकर ‘सिबाका गीत माला’ कर दिया गया।
सयानी सीनियर इस महीने 90 साल के हो जाएंगे। उनकी नाजुक तबियत को देखते हुए बेटे राजिल ने बिनाका गीत माला कहानी में पिता की कमी को पूरा करने में मदद की, जो स्वतंत्रता के बाद के भारत के सांस्कृतिक आख्यान से जुड़ी हुई है। दरअसल, सयानी इस प्रोजेक्ट को लेकर थोड़ी नर्वस थे। वो एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते हैं जो साहित्य, गांधीवादी मूल्यों और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत को फॉलो करता है। जबकि ‘गीत माला’ का मतलब सबसे कम कॉमन डिनोमिनेटर होई पोलोई को खुश करना था।
कॉलेज के स्टूडियो से शुरू हुआ सिलसिला
कॉलेज से निकलते ही सेंट जेवियर्स के टेक्निकल इंस्टीट्यूट के एक स्टूडियो में सयानी ने हिट परेड में अपना पूरा ध्यान लगा दिया। युवा अमीन ने ब्रॉडकास्टिंग की कला सीखने और उसे फॉलो करने में जी जान लगा दिया। उनकी मेहनत वे जाति-समुदाय-पंथ के भेदों को सहजता से धुंधला कर दिया। मशहूर विजुअलाइजर विनायक पोंक्षे ने कहा, “समय आ गया है कि हम इस तथ्य को पहचानें कि बीआरसीसी और आईआईटी की तरह बिनाका गीत माला भी नेहरूवादी भारत का प्रतीक है।”
सयानी की घर में बुनी हुई हिंदुस्तानी और आसान शैली के लोग कायल थे। उन्होंने ‘सरताज’ जैसे नए शब्द गढ़े। अमीन हर रैंक को पायदान कहते थे, जिससे बिनाका गीतमाला टॉप पर पहुंच जाता था। एक गाना दूसरे से या तो एक पायदान ऊपर होता था या नए गाने से पीछे होकर इसकी रैंक नीचे चली जाती थी। धीरे-धीरे वो रेडियो श्रोताओं के लिए दिल में बसने लगे। जब 1950 के दशक में ऑल इंडिया रेडियो ने सिनेमा संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया था। उनका मानना था का ये युवाओं को भटका रहा है।
1952 को शुरू हुआ पहला शो
इसके बाद 3 दिसंबर, 1952 को सात गानों की सीरीज का पहला शो रिले किया गया। ये शो काफी सफल रहा। एक साल के भीतर सयानी के कोलाबा के दफ्तर में हर हफ्ते 65000 चिठ्ठियां आने लगीं। बाद में इस शो में गानों की संख्या सात से बढ़कर 16 हो गई। बुधवार को प्रसारित होने वाले इस शो के लिए पिछले शनिवार को ही रिकॉर्डिंग की जाती थी। 1952 में आई हिंदी फिल्म आसमान का गाना ‘पोम पोम बाजा बोले’ काफी मशहूर हुआ। इसे ओ. पी. नय्यर द्वारा ट्यून किया गया है। कहा जाता है कि ये ‘जिंगल बेल, जिंगल बेल’ पर आधारित है। ये गीत माला की सिग्नेचर ट्यून थी।
अमीन सयानी हर दिन 12 घंटे काम करते थे। उनके काम में उनकी पत्नी रमा भी मदद करती थीं। सयानी की बेटे राजिल ने कहा, “मैं रविवार को छोड़कर कभी भी पापा से नहीं मिल सका। वह अपने स्टूडियो में व्यस्त रहते थे। उनके मन में बुधवार को होने वाले गीत माला के प्रसारण की बात चलती रहती थी।’ 1989 में सयानी ने ऑल इंडिया रेडियो के लोकप्रिय शो विविध भारती में शिफ्ट कर दिया।
सयानी मजबूती से रेडियो को आगे ले जाने की कोशिश करते रहे। उन्होंने उसके लिए कई प्रयोग भी किए। धीरे-धीरे देश के हर कोने में उनके श्रोता हो गए। गीत माला के सहयोगी पीयूष मेहता ने बताया कि श्रोताओं के दिल पर सयानी की आवाज ने अलग छाप छोड़ी। वो केवल एक रेडियो जॉकी नहीं बल्कि लोगों के दोस्त थे। उन्होंने आगे कहा कि हर बुधवार को 6 बजे जब सयानी की शो रेडियो पर आता तो पूरा भारत एक साथ ठहर जाता।
सयानी के शो में कौन से गाने जाने चाहिए इसके लिए देशभर के प्रमुख रिकॉर्ड डीलरों से रिपोर्ट मांगा जाती थी। पहले दो दशकों तक नौशाद अली, सी. रामचंद्र, हेमंत कुमार, रोशन और मदन मोहन साप्ताहिक हिट परेड में प्रमुखता से शामिल रहे। वहीं 1960 का दशक शंकर-जयकिशन, ओ. पी. नय्यर और एस. डी. बर्मन का था। इधर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंदजी और आर. डी. बर्मन ने उनकी जगह लेने के लिए तैयार थे।
प्रसिद्ध लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जोड़ी के प्यारेलाल ने कहा, “मैं और लक्ष्मीभाई दोनों बिनाका गीत माला के प्रबल प्रशंसक थे। मुंबई के रिकॉर्डिंग स्टूडियो में जूनियर संगीतकार के रूप में संघर्ष करते हुए, हमने एक दिन का सपना देखा था जब हमारे गीत गीत माला चार्ट-बस्टर होंगे।”
हालांकि, 1970 के दशक में निजी टीवी चैनलों के आने और फिल्मी गीतों की गुणवत्ता में लगातार गिरावट के कारण गीत माला ने अपनी चमक खोनी शुरू कर दी थी। वहीं, रेडियो किंग अमीन सयानी खुद को व्यस्त रखते हैं। अपने आरामदायक न्यू मरीन लाइन्स अपार्टमेंट में पढ़ना और लिखना उनका डेली रूटीन है। रेडियो के जादूगर अपने होठों पर एक गीत के साथ अपने संस्मरण लिख रहे हैं।
(साभार – नवभारत टाइम्स)

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