लक्ष्मी वहीं रहती हैं जहाँ सृजन भी हो और विवेक भी

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उत्सव चल रहे हैं…दुर्गा पूजा के बाद दिवाली की तैयारी… माँ लक्ष्मी के स्वागत को सब तैयार हैं। भव्यता…ताम -झाम…ठाठ – बाट…दिवाली ऐसा त्योहार है जो इन सबका मौका देता है। लक्ष्मी की पूजा करते हुए हम सभी चाहते हैं कि घर में उनका वास हो मगर लक्ष्मी का सही अर्थ और सही सन्देश हम नहीं समझते। लक्ष्मी का अर्थ सिर्फ घर की लक्ष्मी नहीं है। लक्ष्मी का अर्थ सिर्फ गृहिणी होना भर नहीं है बल्कि हर वह स्त्री लक्ष्मी है जो घर से लेकर देश की अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने में अपनी भूमिका किसी न किसी तरीके से अपनाती हैं। पता है समस्या क्या है, लक्ष्मी चाहिए सबको मगर खुद लक्ष्मी क्या चाहती हैं, यह कोई नहीं समझना चाहता। राम से लेकर रावण तक, कुबेर से लेकर दुर्योधन तक.हर कोई लक्ष्मी पर अधिकार जताना चाहता है मगर लक्ष्मी चंचला हैं…वह टिकती वहीं हैं…जहाँ उनकी बहन सरस्वती हों…..जहाँ सृजन हो…कोई गुण हो..जहाँ लक्ष्मी और सरस्वती का वास होता है..वहाँ महालक्ष्मी रहती हैं। कहने का मतलब यह कि अपनी लक्ष्मी को सिर्फ मोम की गुड़िया मत बनाइए बल्कि उसे मजबूत, आत्मनिर्भर और सृजनात्मक व्यक्तित्व बनाइए। धन की देवी विवेक और बुद्धि दें…सबका जीवन मंगल करें…यही शुभकामना है…शुभ उत्सव

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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