साहित्य कुंभ छंदशाला के रचनाकारों द्वारा पर्यावरण दिवस पर काव्य पाठ 

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कोलकाता । साहित्य कुंभ छंदशाला के रचनाकारों द्वारा ऑनलाइन काव्य पाठ का आयोजन किया गया। आ.धर्मपाल धर्म नीमराना की अध्यक्षता में दिनांक पांच मई को हुआ जिसमें तेरह रचनाकारों ने पर्यावरण विश्व दिवस के अवसर पर मिलीजुली रचनाओं की प्रस्तुति दी। पर्यावरण सहित कई विषयों पर रचनाएँ पढी़ गईं। कार्यक्रम का संचालन हिम्मत चौरडिया ने एवं सरस्वती वंदना इन्दु चांडक द्वारा की गई साथ ही तकनीक व्यवस्था का कार्य किया । आ.धर्मपाल ने गजल ‘धड़कनें दिल की छिपाकर देख लो’,व हास्य रचना ‘चोरी करने के लिए घुसा एक घर’, कल्पना सेठिया दिल्ली ने ‘अनिवार्य वही अब मेरे लिए जो जीवन सार्थक बनाता है’ कविता, सुशीला चनानी ने रास लीला रचाते वे दुनिया को खूबसूरत बनाने के लिए, प्रकृति के अवदान व गीत मेघा बरसो-2 गीत,शशि कंकानी ने ‘उत्थान हो या पतन विचलित ना होना’, इन्दु चांडक ने ‘कोई गीत गायें, चलो गुनगुनाएँ, दिशायें सुरों से सजायें ‘मधुर प्रस्तुति दी गई। मीना दूगड़ ने ‘एक और भौतिकता का विकास दूसरी तरफ मानवता का संहार’, कुसुम अग्रवाल दिल्ली द्वारा ‘निरर्थक बातों में जीवन गुजर न जाये प्रेरक रचना पढ़ी गई। प्रभा जी लोढ़ा मुम्बई ने ‘फिर से मैं उडा़न भरूँगी , आसमान से ऊँची होगी उडा़न’ पढ़ी गई ।सरोज दूगड़ आसाम ने ‘राजस्थानी नर हीरों की कहाँ होती चमक पुरानी’ ओज पूर्ण काव्य पाठ किया गया। मंजू शर्मा ने ‘मैं चैतन्य हूँ-ऐसा जानती हूँ लेकिन समझती नही हूँ मैं,शायद अभी मोह में हूँ-अध्यात्म से परिपूर्ण कविता , उषा सराफ ने ‘प्रेम तो ढ़ाई आखर का /पर सितम कितना ढहाता है’ कविता सुनाई। हिम्मत चोरडि़या ने मारवाड़ी भाषा में आज वास्तविकता पर चोट करती कविता ‘मिलावट की तो बात छोड़ नकली पर असली रो लेबल लग जावे’ सुनाई । अंत में, सुशीला चनानी ने सभी रचनाकारों को धन्यवाद दिया ।

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